For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिगड़ता है किसी का क्या?---(मिथिलेश वामनकर)

1222--1222—1222--1222

 

लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या?

निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या?                                 

 

अगर दो वक़्त की रोटी जुटा पाए तो बढ़िया है.

वगरना फिर मुझे करना तेरी दीवानगी का क्या?

 

बहुत रंगीन कर बैठे हो  नकली-ताजमहलों को

मगर सबसे जुरुरी है जो उसकी, सादगी का क्या?

 

अगर दे तो मुअज्ज़िज़* फित्रतन् खुद्दार दुश्मन दे                                     *सम्मानित 

मेरे कद का नहीं होगा, तो मतलब दुश्मनी का क्या?

 

मरासिम और कुछ वादें, कभी तुमसे किये थे जो

निभा लेते, मगर यारों करें कम-फुरसती का क्या?

 

ख़ुदा-हाफ़िज़ अजी कह लूं जरा साहिल से, ठहरो तो   

सफ़र ये है समंदर का, भरोसा वापसी का क्या?

 

बुलाते थे कभी तहजीब से, वो आज कहते है-

“जो महफ़िल में नहीं आओ, बिगड़ता है किसी का क्या?”

 

ये टुकड़े जिस्म के जलते हुए बिखरे पड़े है क्यों?

जो मजहब पे सियासत की, ये मंजर है उसी का क्या?

 

अमावस से चरागों की अजल से यारियां, सुन लो,

कभी सूरज के डूबे से  हुआ है रौशनी का क्या?

 

इसी डर में अगर जीते रहे तो जी लिए साहिब

यकीनन मौत होती है, भरोसा जिंदगी का क्या ?

 

जो झूठी दाद, नाकस वाहवाही के अदीबों में

रहे उलझे सुखनवर तो, भला हो शायरी का क्या?

 

 

-----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

Views: 982

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2015 at 3:24pm

मुझे रब्बा! अगर दुश्मन भी दे तो खानदानी दे.
मेरे कद का नहीं होगा, तो मतलब दुश्मनी का क्या?

वाह आदरणीय वाह रकीब भी माँगा है तो खानदानी माँगा है … आपकी ये अदा भा गयी हमें आदरणीय मिथलेश जी .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर जी।

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 1, 2015 at 2:50pm
बहुत खूब गजल हुई है आदरणीय बधाइयाँ स्वीकार करें
Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:41am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर  जी आपने  अपनी इस रचना में सच्चाई को पूरी तरह सामने रख छोड़ा है शेर दर शेर दिल को छू गया...

"मुझे रब्बा! अगर दुश्मन भी दे तो खानदानी दे.

मेरे कद का नहीं होगा, तो मतलब दुश्मनी का क्या?"......कितना रब्त है आजकल के माहौल का...हर इंसान का अहम किता ऊंचा है सर | गहरे अहसास !! हर शेर से बांधे हुए रखते हो इसी खासियत से आखिरी शेर में जो कह गए .ये सच तो दुनियां का असल है...बिना कुछ किये ही पा लेना ..वाह वाही के सबब में |

"जो झूठी दाद, नाकस वाहवाही के अदीबों में

रहे उलझे सुखनवर तो, भला हो शायरी का क्या?"

 


दिली दाद सर ढेरों दाद ....

और आखिर में वही बात ....आपकी हर रचना में कुछ सीखने का सबब होता है....इन काफियों का चलन एक नयी राह भी उजागर करता है ..किस तरह पिरोते और नीभाते हैं आप |

साभार

हर्ष महाजन

Comment by Tanuja Upreti on August 1, 2015 at 11:37am

बहुत सुन्दर लिखते हैं मिथिलेशजी बधाई स्वीकार करें

Comment by विनय कुमार on August 1, 2015 at 11:35am

// इसी डर में अगर जीते रहे तो जी लिए साहिब
यकीनन मौत होती है, भरोसा जिंदगी का क्या ?
जो झूठी दाद, नाकस वाहवाही के अदीबों में
रहे उलझे सुखनवर तो, भला हो शायरी का क्या?// वाह , वाह , बहुत उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , दिली दाद क़ुबूल करें..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2015 at 10:49am

वाह वाह बस वाह ....मजा आ गया ये ग़ज़ल पढ़ के यदि मैं यूँ कहूँ की आपकी सभी ग़ज़लों का सिरमौर है ये ग़ज़ल तो गलत नहीं होगा हर शेर पर दिल से वाह निकल रही है 

बहुत रंगीन कर बैठे हो  नकली-ताजमहलों को

मगर सबसे जुरुरी है जो उसकी, सादगी का क्या?

 

ख़ुदा-हाफ़िज़ अजी कह लूं जरा साहिल से, ठहरो तो   

सफ़र ये है समंदर का, भरोसा वापसी का क्या?

 

इसी डर में अगर जीते रहे तो जी लिए साहिब

यकीनन मौत होती है, भरोसा जिंदगी का क्या ?

 इन तीनो शेर के लिए तो विशेष विशेष दाद कबूलें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service