For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस बार वह अकेली मायके आई थी. वो जब भी आती, बाबा से लिपट जाती. बाबा खूब दुलारते. बाबा की परी थी वो.

लेकिन इस बार बाबा बस ससुराल वालों की खैर-खबर पूछकर बाहर चले गए. माँ ने भी उसकी पसंद का भोजन पकाया था. तृप्त तो हो गई वो, मगर उसे घर के माहौल में आये बदलाव को भांपते देर न लगी. आज पूरे पंद्रह दिन हो गए थे उसे यहाँ आये हुए. बाबा बेटे की बेरोजगारी और आवारागर्दी से अब अधिक ही परेशान दिखने लगे थे. उसकी उलटी सीधी मांगों को इसी भय से मान लेते कि कहीं कुछ कर न ले. उसे भी भइया को देख कर बहुत दुःख होता था. मगर कभी कुछ कहती भी तो बाबा झिड़क देते – “आखिर औलाद है मेरी.”

इतना कहने के बाद ऐसी नज़रों से उसकी तरफ देखते कि बस वह सहम के चुप रह जाती. 

लेकिन उसने अब ठान लिया था कि बाबा को वो ‘बाबा की परी’ बन कर समझाएगी. सुबह बाबा बाहर जाने के लिए तैयार बैठे थे.
“बाबा, ऐसे कब तक चलेगा. घर का माहौल .........अगर यही हाल.............. इससे तो अच्छा मैं यहाँ से चली जाऊं.....”
“कब की टिकट करानी है?” 
बाबा के इस सवाल ने ‘बाबा की परी’ को आसमान से उठा कर सीधा जमीन पर पटक दिया था.

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 12:53pm

//"बेटे आखिर बेटे ही रहेंगे " और बेटियाँ पराया  धन . बदलाव आयें हैं पर अभी भी ये मानसिकता बरक़रार है . बहुत कुशलता से रचा आपने ये भेद .//- लघुकथा के मर्म को उभारती और विस्तार देती  इस सटीक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीया रीता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 12:50pm

आदरणीय विजय निकोर सर, आप जैसे गहन वैचारिक रचनाधर्मी से सकारात्मक प्रतिक्रिया पाना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है. सराहना हेत हार्दिक आभार, नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 12:49pm

आदरणीया सविता मिश्रा जी, संक्षिप्त किन्तु सटीक प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 12:47pm

आदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा के मर्म तक पहुँच कर एक सार्थक प्रतिक्रिया देकर आपने मेरे प्रयास को आश्वस्त किया है. इस विधा का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ इसलिए थोड़ा भय बना रहता है इस विधा के शिल्प को लेकर. आपकी आत्मीय सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल बढ़ा है. हार्दिक आभार नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 12:43pm

आदरणीय विनय जी, लघुकथा के प्रयास पर आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by TEJ VEER SINGH on July 16, 2015 at 11:30am

आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी कथा ने तन और मन दौनों को ही झकझोर दिया! आज के परिवेश में अधिकांश मध्यम वर्गीय  परिवारों की यही स्थिति है!बहुत ही सजीव चित्रण किया है!हार्दिक बधाई!

Comment by Archana Tripathi on July 16, 2015 at 1:47am
आज भी बेटी ऐसी ही परी हैं जिसके पंख कतर दिए जाते हैं।और छोटी छोटी बातों में अहसास कराया जाता हैं की वह पराई हैं
बहुत हो उम्दा लघुकथा लिखी हैं आ.मिथिलेश वामनकर जी आपने हार्दिक बधाई।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 10:59pm

अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल कीजिए आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by pratibha pande on July 15, 2015 at 10:03pm

बहुत  अच्छी कथा  आ०  मिथिलेश  जी  ,  हार्दिक  बधाई  स्वीकार करें I   पहले परियों  को पंख   दे  दिए  जाते  हैं  उड़ने के लिए और  फिर  कभी  भी  बेदर्दी  से  पंखों  को  काट  दिया  जाता है I

Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 10:02pm
आज भी हमारे समाज में बेटी को पराया ही माना जाता है।बहुत ही सुंदर और मार्मिक कथा है आ.मिथिलेश वामनकर जी,जो दिल को कहीं गहरे छू गई।बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
9 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service