जनमत जिसके साथ में, उसकी होती जीत,
अहंकार जिसने किया, जनता करे न प्रीत |
जनता करे न प्रीत, जीत न उसे मिल पाए
जो भी चाहे जीत, काम जनता के आए
कह लक्ष्मण कविराय, मिटावे दिल से नफरत
जनहित की हो सोच, उसे ही मिलता जनमत |
दिल में भाव अभाव है,कोरा है वह चित्र
दुख में कभी न छोड़ता,वह है सच्चा मित्र |
वह है सच्चा मित्र, श्रेय न कभी वह लेता
कपट धूर्तता बैर, पास न फटकने देता
लक्ष्मण देती साथ,ह्रदय से पत्नी इसमें
रहे भाव परमार्थ,लोभ न रखे जो दिल में ||
आटा गीला हो रहा, सूझे नहीं निदान,
दीन हीन इन्सान का, मन्दी में नुकसान
मन्दी में नुकसान, झेलता आया प्राणी
करे कौन सहयोग,सुने न दीन की वाणी
जिसमे डाले हाथ, उसी में होता घाटा
जिसके नहीं नसीब,मिले न उसको आटा ||
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
बहुत बहुत आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी | आपकी प्रकाशित पुस्तक में गजलें पढकर ख़ुशी है |आपको हार्दिक बधाई
कुण्डलिया छंद आपको सुंदर लगे यह मेरे लिए प्रसन्नता के बात है | आपका अतिशय आभार श्री हरी प्रसाद दुबे जी और डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी | सादर
कुण्डलिया छंदों पर आपकी प्रतिक्रिया पढकर प्रसन्नता हुई श्री अरुण कुमार निगम जी |
कुण्डलिया छंद सराहने के लिए शुक्रिया श्री खुर्शीद खैराडी जी
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर, सभी कुण्डलिया बहुत सुन्दर हुई हैं, हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बढ़िया कुंडलियों की रचना की है , बधाई स्वीकार करें ॥
आ 0 लड़ीवाला जी
क्रमशः अच्छी होती गयी हैं कुण्डलिया i आपको बधाई i सादर i
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर , सभी कुण्डलिया छन्द बहुत सुन्दर हैं , हार्दिक बधाई ! सादर
अंतिम छंद पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री उमेश कटारा जी
छंद पसंद कर सराहने के लिए बहुत बहुत आभार आपका श्री maharshi tripathi जी
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