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घास उगने लगी है मेरी कब्र पर

212 212 212 212
---------------------------------------
जिन्दगी थी बहुत ही सुहानी मेरी
मौज मस्ती कभी थी निशानी मेरी
------
एक ज़लसा हुआ था मेरे गाँव में
मिल गयी उसमें परियों की रानी मेरी
------
सिलसिला चल पडा फिर मुलाकात का
मुझको लगने लगी जिन्दगानी मेरी
------
बात अबकी नहीं है मेरे दोस्तो
ये कहानी बहुत ही पुरानी मेरी
------
एक साज़िश रची थी रक़ीबों ने फिर
और साज़िश में शामिल दिवानी मेरी
------
मैं तो मरने लगा था मेरी जान पर
ये हकीकत भी उसने न जानी मेरी
------
एक बारात आई मेरे गाँव में
हो गयी जिन्दगी पानी-पानी मेरी
-------
घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
दास्तां बन चुकी है कहानी मेरी 
 

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 680

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Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:38am

एक बारात आई मेरे गाँव में
हो गयी जिन्दगी पानी-पानी मेरी

आदरणीय उमेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 22, 2015 at 3:41pm

ग़ज़ब ! बहुत खूब ! आदरणीय उमेश भाई.

इस शेर को ऐसा कुछ करें -

घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
सो रही है यहाँ हर कहानी मेरी...

 

वैसे ऐसा करना किसी अन्यथा दवाब का कारण नहीं समझना चाहिये.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 3:39pm

आदरणीय उमेश भाई जी ग़ज़ल का वज्न अवश्य लिख दे निवेदन है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 3:23pm

वाह वाह.... आदरणीय उमेश भाई जी, बेहतरीन, उम्दा और कमाल की ग़ज़ल हुई है, मंच पर पहली बार कोई मुसल्सल ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ. आपने पूरी दास्ताँ इतनी नजाकत से कही है कि बस मुग्ध हो गया हूँ. हरेक अशआर कमाल हुआ है. हरेक अशआर का स्वतंत्र प्रभाव चकित करता है कि ये अशआर एक मुसल्सल ग़ज़ल का है. दिल से दाद कुबूल कीजिये. कोई शेर कोट नहीं कर रहा हूँ क्योकि सभी शेर एक से बढ़कर एक है. ग़ज़ल की लय इतनी मधुर है कि बस शब्द कम पढ़ पाहे है तारीफ के लिए. बस दिल से आभार और धन्यवाद इतनी सुन्दर ग़ज़ल से रु-ब-रु कराने के लिए और मुसल्सल ग़ज़ल कहने के लिए मुझे प्रेरित करने के लिए. इस ग़ज़ल पर सैकड़ों गज़लें कुर्बान कर दूं. बधाई और कलम को नमन.

Comment by umesh katara on February 22, 2015 at 12:51pm

Dr. Vijai Shanker जी आभार

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 22, 2015 at 11:51am
सुन्दर , बधाई,आदरणीय उमेश कटारा जी, सादर।

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