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ग़ज़ल : आजमाते पंख के फैलाव को.

2122,2122,212

सह सके ना फूल के टकराव को.

हैं मुकाबिल झेलने सैलाव को.

थामना पतवार सीखा है नहीं.

हैं चले खेने बिफरती नाव को.

हौसला उनका झुकाता आसमां.

आजमाते पंख के फैलाव को.

हर सफलता चूमती उनके कदम,

आजमाते वक़्त पर जो दाव को.

भाव उनके भी गिरेंगे एक दिन,

भूल जाते हैं सरे सद्भाव को.

.

हरिवल्लभ शर्मा दि. 04.01.2015

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 4:05pm

आदरणीय Dr. Ashutosh Mishra जी आपने ग़ज़ल पर स्नेहिल प्रतिक्रिया देकर हौसला बढाया ..हार्दिक आभार  आपका.

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 4:01pm

आदरणीय khursheed khairadi साहब आपके प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 4:00pm

आदरणीय सुबेसिंह सुजान जी आपका हार्दिक आभार आपने हौसला बढाया.

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 3:59pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी आपका हार्दिक आभार आपने ग़ज़ल पर हौसला बढाया.

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 3:58pm

आदरणीय Hari Prakash Dubey जी आपका हार्दिक आभार ग़ज़ल पर आपका प्रोत्साहन मिला..सादर 

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 3:56pm

आदरणीय ram shiromani pathak जी आपका हार्दिक आभार सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु...सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2015 at 5:29pm

हौसला उनका झुकाता आसमां.

आजमाते पंख के फैलाव को.

हर सफलता चूमती उनके कदम,

आजमाते वक़्त पर जो दाव को..आदरणीय हरिवल्लभ जी ..सार्थक सन्देश देती इस शानदार ग़ज़ल के लिये तहे दिल बधाई सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 11:27am

हौसला उनका झुकाता आसमां.

आजमाते पंख के फैलाव को.

आदरणीय हरिवल्लभ सर ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 5, 2015 at 11:13pm

bhut bhut badhai.....khoob

Comment by दिनेश कुमार on January 5, 2015 at 9:40pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है सर जी। वाह

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