*जीवन चुपके से बीत गया*
जीवन का जो पल बीत गया
जो पल जीने से शेष रहा
पहचान नहीं कर पाया मन,
पल धीरे धीरे रीत गया
जीवन .....
ऐसे जी लूँ वैसे जी लूँ
जीवन कैसे कैसे जी लूँ
तैयारी मन करता ही रहा,
रोज लिखूँ कोई गीत नया।
जीवन....
सब अंधी दौड़ के प्रतियोगी
योगी मन भी बनते भोगी
अजब निराली मन की तृष्णा,
जब भी जीती मन भीत गया।
जीवन.....
खुद को जानूँ जग को मानूँ
जीवन रहस्य सब पहचानूँ
जग सृजक रहा फिर अनजाना,
वह अंतिम पल फिर जीत गया।
जीवन....
सीमा हरि शर्मा 16.10.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर गीत ..जीवन की उलझनों को सुन्दरता से शब्द बद्ध किया है ,हार्दिक बधाई आपको सीमा जी
आज नहीं कल जी लेंगे /इस उलझन में गुब्बारा फुट गया /जीवन ऐसे ही बीत गया
सुंदर भावपूर्ण गीत |
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. " |
अति सुंदर. जीवन की कश्मकश को बखूबी संजोया आपने. बधाई आदरणीया सीमाहरी जी
सीमा जी
आप ? अभी से जीवन रीत गया जैसी कविता --- i कविता अतीव सुन्दर i भाव सधे हुए i आपको बधाई i
सुन्दर पँक्तियाँ, सादर बधाई!
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