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ग़ज़ल – द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी (अभिनव अरुण)

ग़ज़ल –
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२

द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी |
आज या कल के उस दौर में मैं कहाँ कब संभाली गयी |

सब्र तक मुझको मोहलत मिली कब कली अपनी मर्ज़ी खिली ,
एक सिक्का निकाला गया मेरी इज्ज़त उछाली गयी |

लड़का लूला या लंगड़ा हुआ गूंगा बहरा या काला हुआ ,
मुझसे पूछा बताया नहीं सबको मैं ही दिखा ली गयी |

दौर कैसा अजब आ गया एक सबको नशा छा गया ,
सब हैं पैसे के पीछे गए सबकी होली दिवाली गयी |

है न चौकी पुलिस की जहां चाय पीते रहे तुम वहाँ ,
एक काली सफारी रुकी एक लड़की उठा ली गयी |

दिन में जो थी बरामद हुई रात भर थाने में वो रही ,
रात भर जांच उसकी हुई तुमने सोचा बचा ली गयी |

चार कसमों की बाते हुईं चार वादों की रातें हुई ,
चार तोह्फ़े दिखाए गए इस तरह वो मना ली गयी |

बाप की सांस टूटी ही थी माँ को बंधक बनाया गया ,
फिर अंगूठा लगाया गया फिर वसीयत बना ली गयी |

अपने सारे पराये हुए लोग भाड़े के लाये हुए ,
मौत तनहाइयों में हुई और रोने रुदाली गयी |


* मौलिक एवं अप्रकाशित

- अभिनव अरुण

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Comment by Abhinav Arun on June 11, 2014 at 5:42pm
आभार आ. डॉ प्राची साहिबा , आपने जिस और इंगित किया है उसे दूर करने की कोशिश करता हूँ !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 11, 2014 at 2:41pm

महिलाओं की स्थिति पर बहुत ही सशक्त अशआर कहे हैं आ० अभिनव अरुण जी 

सभी कहन के स्तर पर बहुत पसंद आये 

लेकिन कुछ अश'आर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब बन रहा है ....एक नज़र देख अवश्य ही लें

प्रस्तुति के लिए मेरे दिली बधाई स्वीकार करें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2014 at 11:47am

बहुत सुंदर सामयिक गजल कही आपने आदरणीय अभिनव जी

दौर कैसा अजब आ गया एक सबको नशा छा गया ,
सब हैं पैसे के पीछे गए सबकी होली दिवाली गयी............बहुत कुछ कह देता हुआ शेर, दिली बधाई स्वीकार करें

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