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गज़ल -- ' व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है '( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122  

लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है

हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है

 

व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है  

कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है

 

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है

 

सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम

मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है

 

आप अपनी राह में चलते ही रहिये

बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है

 

उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै

राज अपने कौन किसपे खोलता है

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2014 at 10:11am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, एक बेहतरीन ग़ज़ल हुई है , सभी असआर मन को छू गए . हार्दिक बधाई .

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 11:16pm

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है...वाह,वाह!! बहुत सुंदर गजल कही है आदरणीय गिरिराज जी, मेरी बधाई स्वीकार कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:50pm

आदरणीय शकील भाई , ज़र्रा नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:47pm

आदरणीय अशोक रक्ताले भाई  , आपकी उपस्थिति ने ग़ज़ल का मान बढा दिया है , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:45pm

आदरणीय मुकेश भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:44pm

आदरणीया सविता जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:43pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सरहाना ने ग़ज़ल का मान बढा दिया , आ[पका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:42pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया ने मेरा हौसला बढ दिया ! सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 5:40pm

आदरणीय जिंतेन्द्र भाई , ग़ज़ल पर आपकी विस्तार से प्रतिक्रिया और सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!

Comment by शकील समर on April 24, 2014 at 4:38pm

दानवों सा इस जगह जो लग रहा है

सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है

वाह! वाह! क्या कहने गिरिराज सर। बहुत ही सटीक आब्जर्वेशन।

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