For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजनीति में पार्टियाँ निभा रहीं पहचान
डंडे पत्थर गालियों  का आदान-प्रदान

जो बोले तू झूठ वो   मैं बोलूँ वो तथ्य
लफ़्फ़ाज़ी के रंग में लिपा-पुता हर कथ्य

झंडे टोपी भीड़ से  रोचक दिखे प्रसंग
देख जमूरा नाचता पब्लिक होती दंग  

जो जितना दम चीखता, उतना पाये मान
लोकतंत्र का रूप यह, अब इसकी पहचान  

तूने खाया आजतक, अब खाने दे यार’
लक्कड़-बग्घा  लोमड़ा, चट्टे-बट्टे यार
**************
--सौरभ
**************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 7, 2014 at 7:43pm

इन छंदों को अनुमोदित करने के लिए आपसभी सुधीजनों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2014 at 6:47pm

आदरणीय सौरभ भाई , सुन्दर सामयिक दोहों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on March 7, 2014 at 4:13pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 6, 2014 at 11:07pm

पांच चुनावी दोहरे, राजनीति पर चोट |

सफल हुआ श्रम आपका, बाहर आया खोट || 

आदरणीय सौरभ सर को कोटिशः बधाइयां

Comment by नादिर ख़ान on March 6, 2014 at 10:22pm

जो बोले तू झूठ वो   मैं बोलूँ वो तथ्य 
लफ़्फ़ाज़ी के रंग में लिपा-पुता हर कथ्य .....लफ़्फ़ाजियों का समय आ गया है।  

जो जितना दम चीखता, उतना पाये मान 
लोकतंत्र का रूप यह, अब इसकी पहचान.....  सही कहा सर चिल्लाकर खुद को उठाने की कोशिश हो रही है, मगर वहम है ....

तूने खाया आजतक, अब खाने दे यार’ 
लक्कड़-बग्घा  लोमड़ा, चट्टे-बट्टे यार .... बहुत सही कहा चट्टे-बट्टे यार..

अदरणीय सौरभ जी बहुत खूब कहा और बहुत सही भी ........

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 6, 2014 at 10:14pm

तूने खाया आजतक, अब खाने दे यार’ 
लक्कड़-बग्घा  लोमड़ा, चट्टे-बट्टे यार 

आदरणीय गुरुदेव 

सादर अभिवादन 

दोहे ये तो पांच हैं 

पार्टी हैं पचास 

वक्त इनका आज है 

मिलकर खायेंगे घास 

मिलकर खायेंगे घास 

रेस कोर्स में दौडेंगे 

मिले रस्ते में जो तुम

देख  अपना मुह मोडेंगे 

सादर बधाई, 

Comment by Maheshwari Kaneri on March 6, 2014 at 9:25pm

सुन्दर और सामयिक दोहे , बहुत खूब...हार्दिक बधार्इ सौरभ जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 6, 2014 at 8:21pm

यथार्थ भाव रचित सुन्दर और सामयिक दोहे | हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Neeraj Neer on March 6, 2014 at 7:24pm

वाह आदरणीय , बहुत खूब ..सुन्दर दोहे सामयिक एवं यथार्थपरक ..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 6, 2014 at 7:17pm

आ0 सौरभ सर जी, बहुत खूब...। लोकतंत्र की चिलम में सभी पार्टियां दम लगाकर अजमा रहे है। आपने यथार्थ कटु सत्य वचन ही कहा है। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service