For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

झाड़

खामोश और बेकार

न पौधा न पेड़

न छाया न आराम न हवा

सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल

जो भूख नही मिटाते इंसान की

और पशु की भूख

वह कभी मिटती नहीं

झाड़

एक आस जरूर देता है

काँटे सी चुभती आस

किसी के पुकारने की

उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन

उफ ये रात

सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा 

घूरता हुआ दिन

भभकता हुआ सूरज

धकेलता है दिन अकेला

कोई तो रास्ता हो

तर्क- कुतर्क के परे

सब खत्म होना है एक रोज

तो फिर चीखना क्यों

झाड़ होना ही ठीक है

मैंने मौन बो दिया है! 

            -गीतिका 'वेदिका'

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 11:15pm

झरबेरियों की बहुतायत तृषितभूमि की परिचायक है. इनके होने का भाव भले खूब कुरेदता है लेकिन नियति का दुर्निवार प्रारूप चुप रह जाने को आश्वस्त कर दे तो किया ही क्या जा सकता है ! फिर, क्योंकर मान लिया जाय कि झरबेरियाँ मात्र भौतिक मरु की आरोपित नियामत हैं, या बाह्यांतर की अनचाही संगिनी ! मनोदशा के मरु भी उतने ही शापित हुआ करते हैं. और, यही श्राप परिचय बन जाय तो हर कचोटता भाव परे रख कर जीना वैयक्तिक शैली बन जाती है. कुछ इन्हीं मनोभावों की सार्थक उपज है यह अद्भुत रचना.


मैं विस्मित हूँ, गीतिकाजी. इसलिये नहीं कि एक विशिष्ट रचना निस्सृत हुई पढ़ी जाने को आग्रही हुई जा रही है, बल्कि इसलिये कि एक कितनी सुगढ़ रचना आपके संयत प्रयास की परिचयात्मकता को स्थापित कर रही है.
 
इन पंक्तियों के माध्यम से सम्बन्धों में व्याप चुके खालीपन को कितनी सहजता से व्यक्त किया है आपने ! ग़ज़ब !  
झाड़ / एक आस जरूर देता है / काँटे सी चुभती आस / किसी के पुकारने की

या फिर, एकाकीपन को मिला स्वरालाप जो षड्ज के घोष के साथ साधिकार नकधुन्नी करता दीखता है.  
सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा / घूरता हुआ दिन / भभकता हुआ सूरज / धकेलता है दिन अकेला / कोई तो रास्ता हो / तर्क- कुतर्क के परे

कविता ’झाड़’ के प्रतीक न केवल सटीक हैं, बल्कि भावदशा को शुद्धता से अभिव्यक्त करने में सक्षम हैं. चाहे, चाँद की संज्ञा हो या मौन बोने का प्रासंगिक बिम्ब !
लेकिन, एक नैतिक सुझाव के साथ इस रचना के हो जाने पर आपको हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ कि अपने आप को संयत करने क्रम में स्थायी भाव को मान देना उचित है. परन्तु, हताशा को ओटना उचित नहीं. कहीं यह शौक का प्रतिबिम्ब हो गया तो बड़ा भारी उत्पात करता है.
शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on November 19, 2013 at 10:45pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया गीतिका जी। ।हर्दिक बधाई आपको///सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 19, 2013 at 10:28pm

पेड़ पौधों पे तो कई कवितायें कही जा चुकी झाड़ियों पे पहली बार देखा है, बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही बधाई आपको इस कामयाब रचना के लिये

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 10:20pm

आ0 चंद्र शेखर जी! आपकी प्रतिक्रिया रचना का छनित्र हुआ करती है| आपने जिस सतह पर रचना को अनुमोदन किया है, वाकई मैंने उसी सतह पर ही रचना लिखी| 

आभार ! 

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 10:15pm

आ0 राजेश दी! आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया ने मुझमें तीव्र खुशी का संचार किया है| सदैव आपसे मार्गदर्शन और स्नेह की आकांक्षा है|

सादर!!

Comment by MAHIMA SHREE on November 19, 2013 at 10:05pm

वाह !!!!!!!!! गजब ...... आज तो आपने चौंका दिया ..... बहुत ही शानदार गहन अभिव्यक्ति ..........बार बार पढने को मजबूर कर रहा है .... बहुत-२ बधाई प्रिय वेदिका जी ...

 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 19, 2013 at 10:01pm

सघन अनुभूतियों की मुखर अभिव्यक्ति! कुछ प्रश्न छोड़ती रचना! अनन्त मानवीय लिप्साएं, इच्छाओं की विस्तीर्ण मरुभूमि, और उनके बीच उम्मीदों की एक हल्की झाड़ मन को कहाँ आराम दे पाती है? इस झाड़ से भरी राह के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं प्रतीत होता । मौन को तुष्ट और पुष्ट करना एक अच्छा रक्षोपाय भी प्रतीत हुआ। रचना ने सोचने पर मजबूर किया, आपको हार्दिक बधाई संप्रेषित करता हूं, आदरणीया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2013 at 9:59pm

झाड़ होना ही ठीक है

मैंने मौन बो दिया है! 

       वाह्ह्ह्हह जबरदस्त अंत कविता का जो इस प्रस्तुति को उत्कृष्ट श्रेणी में खड़ा का रहा है ,बहुत- बहुत बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर प्री गीतिका जी 

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 9:55pm

आ0 सौरभ जी!  आपका आशीष रचना को मिला, उत्साहित हूँ| ब्रेक के बाद वाली प्रतिक्रिया के लिए बेसब्री से प्रतीक्षारत हूँ|  

सादर!!

Comment by वेदिका on November 19, 2013 at 9:52pm

आ0 अरुण जी! आपकी शुभकामनायें पाकर बहुत उल्लासित हूँ! स्नेह बनाए रखिए!

सादर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
2 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
2 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service