For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत (जब से अपने जुदा हो गए)

गीत (जब से अपने जुदा हो गए)

.

जब से अपने जुदा हो गए, ख्वाहिशें सब फ़ना हो गईं,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई।

 

दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,

तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,

ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,

चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,

गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

 

छोड़कर हमको यूँ बीच मँझधार में,

उनके दिल को सुकूँ कैसे आया भला,

हम तो यादों की नैया में रोते रहे,

सोचते थे ये किस्मत ने कैसा छला,

दिन से धूलों का पर्दा हटा, रात भी आइना हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

 

रिश्ते नातों से बढ़कर ना कोई बड़ा,

जानकर भी क्यों अनजान बनते हैं वो,

मोह माया के चक्कर में जो भी फँसा,

चाह कर भी न इन्सान बनते हैं वो,

अपने साये से भी तब बड़ी, रुपयों की लालसा हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई,

जब से अपने जुदा हो गए....

.

----- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 10, 2013 at 8:47pm
भाई सुशील जी! सुन्दर गीत है। बधाई।
सच है जब व्यक्ति दुखी होता है, तब वह सिर्फ का वरण करना चाहता है लेकिन वह भी आसानी से आती।
Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 8:46pm

आपकी टिप्पणी मेरा उत्साह बढ़ाने में सक्षम है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... सादर धन्यवाद....

Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 8:45pm

आप गीत के मर्म तक पहुँची एवं अपनी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी....

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 10, 2013 at 4:57pm


आदरणीय सुशील जी बहुत बढ़िया छंद लिखा है । सही कहा है आपने --जब से अपने जुदा हो गए , ख्वाहिशें सब फना हो गयी ।  गम और ख़ुशी में अपनों का साथ होना  बहुत ज़रूरी है । क्योंकि  अपनों के  बिना  ख्वाहिशें बेमानी हो जाती हैं । आपको बहुत-बहुत बधाई ।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 10, 2013 at 4:40pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत के लिये हार्दिक बधाई !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2013 at 10:59am

दर्द के कुछ थपेड़ों ने आकर के फिर,

तोड़ डाला मेरे एक अरमान को,

ज़ख्म जितने मिले, सारे दिल पे लगे,

चोट पहुँची मेरे मान सम्मान को,

गल्तियाँ उनको सब माफ़ थीं, हमने की तो ख़ता हो गई,

मौत भी जैसे नाराज़ है, ज़िंदगी बेवफा हो गई, वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी गीत ,बहुत बढ़िया लिखा है ,हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service