For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए !

ग़ज़ल - 
हमने कुछ पौधे लगाए नाम पाने के लिए ।
और जंगल काट डाले आशियाने के लिए

टंग गए हर छत हर एक मुंडेर पर पिंजरे मिया,
हसरते सब मर गयीं चिड़िया चुगाने के लिए ।

 अब खबर में खेल में और ख़्वाब में बन्दूक हैं,
 कौन आगे आएगा बचपन बचाने के लिए ।

 पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
 बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।

 क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
 हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए ।

 उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
 एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।

आदमीयत का तरक्की से है उल्टा वास्ता ,
झुग्गियां गिर जायेंगी, होटल बनाने के लिए ।

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
       
             {* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित }
                                 -   अभिनव अरुण 
                                []may-june-july2013[]

 
                         - 

Views: 993

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 24, 2013 at 11:18am

एक से बढ़ कर एक शेअर रचे हैं आदरणीय अरुण भाई जी, किसी एक शेअर की तारीफ करना बकिया अशआर के साथ बेइंसाफी होगी. इस मुकम्मिल कमाल के लिए मेरी दिली दाद हाज़िर है, कबूल फरमाएं. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 24, 2013 at 10:36am

आदरणीय अभिनव जी, आपकी इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए मेरे पास अल्फ़ाज़ नही हैं, क्या कहूँ बेहतरीन ग़ज़ल आपकी, एक एक शेर असरदार बन पड़ा है, तारीफ़ क़ुबूल फरमाएँ, 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:19am

क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए ।

 

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,

तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।

वाह वाह वाह

इन दो अशार ने क्या हामी ली है ! बधाई अभिनव अरुण भाई, बहुत बहुत बधाई.

मतला भी पुरअसर है.

अन्य अशार पर थोड़ा और समय देते तो तथ्य ही नहीं तब उनका कथ्य भी बेहतर होता.

कहना न होगा सभी अशार ख़याल से हमेशा की तरह बहुत ऊँचे हैं.  देखिये न,  मेसेज   को  मेसज कर दिया होता !  इसके से को गिराना कितना मुआफ़िक होगा, यह देखने की बात है.

बहरहाल, बधाई स्वीकार करें, भाईजी.

Comment by Vinita Shukla on July 24, 2013 at 8:59am

"अब खबर में खेल में और ख़्वाब में बन्दूक हैं,
 कौन आगे आएगा बचपन बचाने के लिए ।" आज के हालातों को, ख़ूबसूरती से उकेरने वाली गजल. बहुत बहुत बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on July 23, 2013 at 11:47pm

पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
 बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।

 क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
 हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए । बहुत खूब आदरणीय अभिनव जी हर एक शेर एक से बढ़ कर एक है बधाई स्वीकार करें /

Comment by shubhra sharma on July 23, 2013 at 11:17pm

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।

       
...........................क्या खूब गजल लिखी है आपने ,हर पंक्ति अपने आप में मस्त है भाई अरुण जी ,बहुत बहुत बधाई 
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on July 23, 2013 at 11:12pm

पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।..  वाह वाह  !!!

 उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
 एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।..  क्या कहने, वाह  !!

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।... बड़ा समसामयिक शेर बन पड़ा है |

बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
3 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
3 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service