For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ तुम मेरी सहेली हो

माँ तुम अबूझ पहेली हो 
माँ तुम मेरी सहेली हो 

स्नेह की  डोर से बंधी 

ममता की तुम मूरत हो 
हर लेती मेरे दुखो को 
उस ख़ुदा की ही सूरत हो 
मेरा सोता हुआ चेहरा भी 
जाने कैसे पढ़ लेती हो 
कितनी अलाओं बलाओं से 
मुझ को रोज बचाती हो 
निकलती हूँ जब भी घर से 
नजर का टीका  लगाती हो 
भर के नए जज़्बे मुझ मे
हार को जीत बनाती हो,
दे के प्यारा सा एक बोसा
माथे पर तिलक लगाती हो,
नेह भरे स्पर्श से तुम
सारे दुःख हर जाती हो..
माँ तुम अबूझ पहेली हो 
माँ तुम मेरी सहेली हो .....

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिव्या on May 16, 2013 at 5:04pm

 आदरणीय जनों, को अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और समय देंने के लिए ह्रदय से आभार

  

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 12:34am

 बहुत ही सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 4:21am

दिव्या बहन, सादर!

चित्र और शब्द चित्र दोनों ही अनमोल है, माँ का तो कोई मोल हो ही नहीं सकता! बधाई!  

Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 1:42pm

बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकारें!

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:41pm

नेह भरे स्पर्श से तुम
सारे दुःख हर जाती हो..

माँ तुम अबूझ पहेली हो 

माँ तुम मेरी सहेली हो .....
बधाई हो दिव्या जी इस सुन्दर रचना हेतु।

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2013 at 8:58am
ममता की तुम मूरत हो 
हर लेती मेरे दुखो को 
उस ख़ुदा की ही सूरत हो .........वाह! बहुत खूब! 
आदरणीया दिव्या जी सादर, बहुत सुन्दर रचना. 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 10, 2013 at 7:15pm

सरल शब्दों में भावपूर्ण प्रस्तुति पर बधाई! प्रवाह पर ध्यान दें पद्य निखर कर सामने आएगा!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 5:12pm

स्नेही दिव्या जी 

सादर 

पूरा द्रश्य आँखों के सामने से गुजर गया 

मां सब कुछ है 

बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2013 at 1:05am
bahut sundar likha hai apne divya g hardik badhai
Comment by coontee mukerji on May 9, 2013 at 10:58pm

दिव्या जी , बहुत सुंदर माँ से अच्छी सहेली और कोई नहीं. भाव संचय अच्छा है .  लिखती रहें ./ सादर / कुंती .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
21 minutes ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
49 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
1 hour ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
1 hour ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service