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बारिशो के 

मौसम में 
मन जब 
चाहे किसी के 
साथ दूर तक 
ठहल आने को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
किसी अंजान
शहर में 
घूमते हुए 
नजरें जब 
किसी अजनबी 
चेहरे में 
तलाशने लगे 
किसी खास 
शख्स को 
मेरा ख्याल तो 
नहीं आता न 
तुम को 
या फिर 
निपट अकेलेपन में 
चाह हो 
किसी कंधे की 
किसी स्पर्श की 
दिल खोल के रखने को 
जी चाहे जब 
मैं जानती हूँ 
फिर भी 
जाने क्यूँ 
होता है ये यकीं 
तुम्हारे ख्यालो में 
मैं भी कहीं तो 
महकती होंगी न.... 

मौलिक एंव अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 2:56pm

आपका लेखन काफी अच्‍छा है, लिखते रहें और खूब लिखें पर अपनी शैली को मत छोड़ें, ढेरों शुभकामनाएं

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:38pm

रौशनी जी 

हकीकत बड़ी कड़वी है इस लिए ख्वाबो का जहाँ सजाते हैं अपने ख्यालो से खूबसूरत बनाते हैं :) 
हमारे ख्यालो की खूबसूरती को पंसद करने के लिए आप का आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:34pm

दिव्या जी 

बहुत खूबसूरत ख्याल ...

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:27pm

आदरणीय ब्रिजेश जी, 

आप को उम्र ओर अनुभव दोनों में बड़े हैं क्षमा मांग के शर्मिंदा मत कीजिये | जिन कमियों को आपने इंगित किया है आगे प्रयास करुँगी वो दूर हो सके .... 
आप का ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:06pm

आदरणीया प्रज्ञाजी एंव श्याम वर्मा जी, सरहाना के लिए आप का ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:00pm

आदरणीय विजय निकोर जी,
 आप की सरहाना के लिए ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:52am

आदरणीय विजय मिश्र जी, 

आप का ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:45am

आदरणीय रविकर जी, 

बहुत खूब दो पंक्तियों में ही सब समा गया "गागर में सागर" 
आप का ह्रदय से आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 11:42am

आदरणीय  सौरभ पांडये जी, 
प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया ओर शुभकामनाओ के लिए आप का ह्रदय से आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 11:42am
आदरणीया..दिव्या जी, सादर आभार आपका 'आपकी पंक्तियां बहुत सुंदर है '..आदरणीया..शुभकामनाऐं स्वीकार करें...

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