For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:
"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"
उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर उसका कन्धा झिंझोड़ कर पूछा:
"बताईये ना पापा भारत कहाँ हैं ?"
उसने एक लम्बी सी ठंडी आह भरी, और बेटी के सिर पर हाथ रख कर जवाब दिया:
"मेरी बेटी, जिस भारत कि बात तुम कर रही हो, वो भारत इस ग्लोब में नहीं है !"

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DEEP ZIRVI on October 19, 2010 at 4:13pm
"बताईये ना पापा भारत कहाँ हैं ?"...
Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on October 19, 2010 at 3:44pm
"मेरी बेटी, जिस भारत कि बात तुम कर रही हो, वो भारत इस ग्लोब में नहीं है !

hatss off ...........

bahut sahi vyang kiyaa hai, vyang bhi hai aur peerha bhi
Comment by Abhinav Arun on October 19, 2010 at 1:36pm
अत्यंत विचार परक रचना .बधाई. वास्तव में नयी पीढ़ी देश की जो तस्वीर देख रही है वो किताबों की आदर्श स्थिति से कोसों दूर है. जवाब देही से हम नहीं बच सकते और सवाल बहुत समीचीन है.
Comment by Priti Kumari on October 19, 2010 at 11:56am
बहुत खूब योगराज जी...आपने दिल के तारों को अंदर से झींझोड़ दिया....बच्ची का स्वाभाविक प्रश्न और प्रत्युत्तर की असमर्थता..पूरी कहानी लिख डाली आपने इस लघु कथा के माध्यम से....

कॉटिषः धन्यवाद.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2010 at 2:28am
कथ्य की आखिरी पंक्तियों की भेदक टीस पर मैं बहुत देर तक बावलों की तरह भन्नाया पड़ा रहा. इस भेदक टीस में किसी चीख की प्रबलता नहीं मर्म को छिन्न-भिन्न कर आहत कर देने वाला उपयुक्त पैनापन है. किसी उद्येश्यपरक निबंध में भी ’क्यों’ इस जोरदार तरीके से कम ही उभर कर आ पाता है. भले उस ’क्यों’ को संतुष्ट करने के क्रम में सारा प्रयास लग जाय. किन्तु यही ’क्यों’ इस लघुकथा के कथ्य में कहीं प्रत्यक्ष नहीं दीखता. किन्तु इसकी परोक्ष उपस्थिति ही पाठक के मानस को हिंडोल कर रख देती है.

हम भुक्त हैं. यह एक सच्चाई है. किन्तु निवाला या ग्रास वही हुआ करता है जो आसन्नरूप से कमजोर हो. इससे पार पाने में जिस ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसकी क्षमता के प्रति संदेह और असंतोष हो तो वह ’क्यों’ और भी ज्यादा चुभता हुआ महसूस होता है. हम तथाकथित रूप से ’शिक्षित’ हो गए न, भाईजी, सोही हम राष्ट्र को मिथक का नाम दे बैठे हैं. जिस ’भारत’ को वह नन्हीं बच्ची खोजती दर्शायी गई है उसे यह ’भारत’ संस्कार में मिला है. मगर वह बेचारी क्या जाने कि उसका संस्कार अपनी समस्त गरिमा के बावजूद आज हास्यास्पद हो चुका है. ’आरोपित शिक्षा’ का चश्मा सारा अतीत तिर्यक दिखाता है. कुछ और न दिखावे, अपने सर्व-समुच्चय पर ग्लानि कर अपने को हम न्यून समझें यह अवश्य दिखाता है.

लघुकथा के शिल्प को बेहतर ढ़ंग से सामने लाने के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें. मैं अभिभूत हूँ, योगराजभाई.
Comment by baban pandey on October 17, 2010 at 11:18am
सही है भाई ...अब अच्छी बाते बच्चो के मुह से ही सुनने को मिलती है ...

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 17, 2010 at 10:25am
नवीन भाई जी, आपकी ज़र्रा नवाजी का बहुत बहुत शुक्रिया !
गणेश बागी जी, ये लघुकथा मेरी ८० के दशक में पंजाबी भाषा में लिखी तकरीबन ७५ अप्रकाशित लघुकथायों में से एक है ! कुछ रोज़ पहले ही एक फाईल पुराने घर से मिली जिस में ये रचनाएँ थीं ! आपको रचना पसंद आई - मेरा श्रम सार्थक हुआ !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 10:08am
"मेरी बेटी, जिस भारत कि बात तुम कर रही हो, वो भारत इस ग्लोब में नहीं है !"
आदरणीय योगराज सर, आपकी ग़ज़ल से तो हम लोग परिचित थे पर यह हम लोगो को पता नहीं था की आप इतनी खुबसूरत लघु कथा भी लिखते है, बहुत ही संदेशपरक और विचारणीय लघु कथा है यह, बहुत सुंदर | इस कथा लेखन पर और विजय पर्व दशहरे पर बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service