For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

 [listen on shikhakaushik06  ]
 

Stamp on Tulsidas

सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?

आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;
पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?

लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;
घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .

अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ;
पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?

आदिकवि सम देते जानकी का साथ ;
अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध .

लिखा कहीं जगजननी कहीं अधम नारी ;
मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

तुमको दिखाया पथ वो भी थी एक नारी ;
फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !

एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;
विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !

युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;
शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?

भूतल में क्यूँ समाई सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .

चूक गए त्रुटि शोधन होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .

हम लिखेंगे सिया के विद्रोह की कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

 

Views: 1015

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on September 5, 2012 at 8:12pm

हम लिखेंगे सिया के विद्रोह की कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!,बहुत खूबसूरत रचना शिखा जी ,सदियों से  पुरुष प्रधान समाज चला आ रहा है ,आपके लेखन में बखूबी नारी के दर्द और विद्रोह की झलक मिलती है ,हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2012 at 1:16am

इस विशेष प्रविष्टि के लिये साधुवाद, शिखाजी.

अबतक आपको मंच की दो विदुषियों का आनुनादिक विपुल समर्थन मिल चुका है, अतः मेरी पिपिहिरी की अब आवश्यकता नहीं.  :-)))

विश्वास है, आप मेरे कहे को समझियेगा. अन्यथा, अनर्थ हो जायेगा.

होता यह है, शिखाजी, कि ऐसी रचनाओं में अक्सर विधा, शिल्प या कहन-साधन आदि नहीं देखे जाते, क्यों कि कथ्य ही अंगार हुआ करता है जिसको साधने-सम्हालने में पाठक की समस्त ऊर्जा लग जाती है.

यह अवश्य है कि तुलसी के सामने मानस के होने का हेतु स्पष्ट था. वह राम की कथा लिख रहे थे, न कि राम की आत्मकथा. जैसा कि वाल्मिकि ने किया था. और, तुलसी के समय इस कथा का विशेष प्रयोजन भी था, जो स्पष्ट था. अतः, जब आप लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ; घटती राम-महिमा उनको था विश्वास  कहती हैं तो वस्तुतः आप उसी मंतव्य को स्वर देती हैं जिस मंतव्य को सामने रख कर मानस का होना संभव हो पाया था.

वैसे आपकी वैचारिकता को प्रणाम कर इस रचना हेतु आपको हार्दिक बधाइयाँ देता हूँ. सहयोग बना रहे.

सधन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2012 at 5:25pm

वाह...  वाह... वाह शिखा जी आपकी लेखनी को हार्दिक बधाई सच मच  आज की भारतीय नारी इतिहास को बदल देगी अपनी ये पोस्ट अब वर्ड वूमन और नारी पर पोस्ट कर सकती हो   

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 5:08pm

 शिखा कौशिक जी आपकी रचना पसंद आई हार्दिक धन्यवाद, मै आपसे सहमत हूँ किनारी कि साथ कालांतर से अन्याय हो रहा है |पर तुलसी बाबा की मजबूरी समझे, अगर विरोध का साहस सीता माता करती तो ८वा अध्याय अवश्य ही लिखा जाता | कृपया देखे :-

तुलसी बाबा ने वही लिखा जो घटित हुआ 
वरना कहते वो लिख दिया जो नहीं हुआ |
 
यह भी समझो सीता ने विरोध नहीं किया 
अग्नि परीक्षा का निर्णय स्वीकार किया |
 
मुखर स्वर जो होते, माता जानकी के,
माँ कौशल्या भी साथ दे जाती उनके |
 
विरोध के स्वर लक्ष्मणजी निकाले थे 
भक्त हनुमान जी भी कम दुखी नहीं थे  |
 
राम को राज धर्म निभाना जरूरी था, 
प्रजा में उठी बात पर न्याय करना था |
 
गर सीता विरोध में अपील जो करती,
नारी के साहस की तुलसी कलम कहती |
 
महाकवि का इसमें दोषी बताना ठीक नहीं 
पेड़ पर बैठ हनुमान बोंले लिखा ठीक वही |
 
फिर भी नारी जीवन अबला नहीं सबला है 
जनता मांग पर नौछावर उसकी क्षमता है |
 
सीता हो या उर्मिला त्याग उनका साहस है,
आपकी कविता लिखना भी एक साहस है |
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 
 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 4, 2012 at 4:56pm

वाह वाह शिखा जी, बहुत अहम् वेदना को स्वर दिए हैं आपने.
पुरुष प्रधानता की जड़ें कितनी गहरी हैं ये देखना बहुत कष्टकर है.
और शायद इस असमानता को समाज से दूर कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है..
पहले तो नारी ही यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होती कि..यह उसका शोषण है, क्या करे, बचपन से पालन पोषण ही इस प्रकार होता है..
लड़की को खेलने के लिए गुड़िया और घर घर के खिलौने थमा दिए जाते है, और लड़कों को क्रिकेट सैट और बंदूकें कारें..
स्कूलों में आज भी छोटे बच्चे पड़ते हैं, "मम्मी कि रोटी गोल गोल , पापा का पैसा गोल गोल"...
आध्यात्मिक गुरु भी राम सिया प्रकरण को कर्मों के सिद्धांत के अनुसार यथोचित ठहराते हैं....
ये स्त्री सुलभ सद्गुण खुद उसकी नियति के दुश्मन कैसे बन गए?, ये विकृत मानसिकता जिसने स्त्री-पुरुष को पूरक कि जगह असमान मापदंडों में इस कदर विभाजित कर दिया कि जाने कितनी पीढियां अभी इस संताप को अपने ऊपर झेलेंगी, जाने कैसे दूर हो पाएगी ?
इस चिंतन को जगाती, तुलसी कृत राम-चरित मानस के आठवें अध्याय के न लिखे जाने के कारणों को अपने मानस स्तर पर विवेचित करती रचना हेतु हार्दिक बधाई व साधुवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service