For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर देंगे वे ठीक, ग़ज़ल की कक्षा में

पाने को कुछ सीख, ग़ज़ल की कक्षा में
हम भी हुए  शरीक़, ग़ज़ल की कक्षा में

पकड़ ही लेंगे  तिलकराजजी चूकों को
बड़ी हों या बारीक, ग़ज़ल की कक्षा में

भूल-भुलैया  भूलों की  जब देखेंगे
कर देंगे  वे ठीक, ग़ज़ल की कक्षा में

ढूंढ  रहे थे कहाँ कहाँ  हम रहबर  को
मिले यहाँ नज़दीक, ग़ज़ल की कक्षा में

"अलबेला"  ने त्याग दिया टेढ़ा रस्ता
चलेंगे सीधी लीक, ग़ज़ल की  कक्षा में 

जय हिन्द !

Views: 799

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:53am

आदरणीय अरुण श्रीवास्तव जी,
अब गुरू जी को पसन्द आये या उनके हाथों में डंडा आये,  भेन्ट तो हमने कर दी....
आपकी  दाद से  मन को  सुकून मिला ...शुक्रिया

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:50am

सम्मान्य "सूरज"जी,
सराहना के लिए शुक्रिया...मैंने  अब रहबर कर दिया है...
धन्यवाद

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 4, 2012 at 10:11am

बहुत उम्दा ग़ज़ल अलबेला जी ! बहुत बहुत बधाई !

* राहबर  और रहबर दोनों शब्द उर्दू में प्रयोग किए जाते हैं लेकिन यहाँ रहबर बहर के अनुरूप फिट बैठेगा ।

Comment by Arun Sri on June 4, 2012 at 9:54am

क्या बात है !!!!!!
इसे कहते है काव्य को जीना !
कुछ भी हुआ ........ बना दी कविता ! लिख दी गज़ल ! और गज़ब की लिखी ! अपने छात्र की ये अनमोल भेंट गुरु जी को जरूर पसंद आएगी ! शुभकामनाएँ ! :-)) :-))

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:11pm

ढूंढ  रहे थे कहाँ कहाँ  हम राहबर को
मिले यहाँ नज़दीक, ग़ज़ल की कक्षा में

बहुत खूब आदरणीय अलबेला जी .. बधाई स्वीकार करें

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 10:07pm

धन्यवाद संदीप पटेल जी,
आपका परचा लीक हो गया ........हे राम ! dr fixit  लगाना था न ?

योगराजजी से पूछो कि वह परचा
कैसे हो गया लीक, ग़ज़ल की कक्षा में
:-)


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2012 at 10:03pm

पाने को कुछ सीख, ग़ज़ल की कक्षा में 
हम भी हुए  शरीक़, ग़ज़ल की कक्षा में

सीख और शरीक में काफिया बनेगा कि नहीं यहाँ मुझे डाउट है , मुझे तो नहीं लगता, बाकी गुणी जन सहयोग करना चाहेंगे |

//जितनी भी त्रुटियाँ हैं अपने लेखन में
सब कर लेंगे ठीक, ग़ज़ल की कक्षा में//

इस शेर मे ऐब है , तकाबुले रदीफ़ का ऐब |

//ढूंढ  रहे थे कहाँ कहाँ  हम राहबर को
मिले यहाँ नज़दीक, ग़ज़ल की कक्षा में//

मेरे  समझ से राहबर गलत शब्द है सही शब्द रहबर(११११ या २२) होता है |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 9:47pm

बहुत बेहतरीन बात कही है आपने इस रचना में आदरणीय सर जी
बहुत अच्छा लगा की आप भी
आदरणीय सर की कक्षा में जाने लगे हैं
कुछ कुछ ग़ज़ल सा गुनगुनाने लगे हैं
बहुत बहुत बधाई सर जी

आपकी ग़ज़ल को थोडा आगे बढ़ाते हैं

ज्यों ही आया वक़्त परीक्षा देने का
परचा हो गया लीक, ग़ज़ल की कक्षा में

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 9:39pm

धन्यवाद.....सम्मान्य राजेश कुमारी जी,
आज  पहली प्रशंसा आपसे  मिली है अर्थात बोहनी आपने ही कराई है.........देखें....दिन कैसा जाता है....घाटा हुआ तो ठीक नहीं  होगा .....हा  हा हा हा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:07pm

हाहाहा .क्या खूब लिखा है मजा आ गया एक पंक्ति मैं भी जोड़ दूं 

 अच्छे बच्चे की तरह बैठेंगे ग़ज़ल की कक्षा में

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service