For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश
कि उसी वक्त देख लेता
पलट कर पन्ने
उस किताब के ,
जो तुमने वापस कर दी
भीगी आँखों के साथ !
और मैंने उसे इंकार समझा
अपने प्रणय निवेदन का !
.
और जब आज
हम दोनों ने थाम रखे है
दो अलग अलग सिरे
जिंदगी के !
तो अनायास ही
हाथों में आई वो किताब !
थरथरा गया अस्तित्व !
जैसे कोई रेल गुज़री हो
किसी पुराने पुल से !
बिखर गए किताब के पन्ने !
और पन्नों के बीच
एक सुख चुका गुलाब
जो मैंने नही रखा था !
.
काश
कि उसी वक्त देख लेता
पलट कर पन्ने
उस किताब के !


....................... अरुन श्री !

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:27pm

सौरभ सर , आपकी दृष्टि पड़ी मैं धन्य हुआ !

और इतनी प्रशंसा तो संभालना मुश्किल है ! :)) :))
इस बधाई में आप भी हिस्सेदार हैं ! सादर

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:25pm

रोहित शर्मा जी , कोई बात नही ये सबक दूसरी बार गलती नही करने नही देगा ! :)) :))
बहरहाल आपको धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:22pm

प्राची मैम , मेरे एहसास आप तक पहुच सके तो शब्दों में उन्हें बांधना सफल रहा ! आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:21pm

अरुन पाण्डेय सर , आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:20pm

संदीप जी , आपकी सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 11:27pm

kis naye andaj se abhivyakti, badhai.

Comment by MAHIMA SHREE on April 18, 2012 at 5:46pm
अरे वाह !! अरुण जी आप तो चकित कर देते है...
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति.......
बहुत-२ बधाई आपको....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 18, 2012 at 4:10pm

vaah kitne sundar bhaav jab vo ghadi nikal jaati hai bas pachhtaane ke siva kuch bhi nahi rahta kaash us din ek panna palat kar dekh liya hota. 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:42pm

तो अनायास ही
हाथों में आई वो किताब !
थरथरा गया अस्तित्व !
जैसे कोई रेल गुज़री हो
किसी पुराने पुल से !
बिखर गए किताब के पन्ने !
और पन्नों के बीच
एक सुख चुका गुलाब
जो मैंने नही रखा था !

क्या बात है अरुण जी बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...ऐसा भी होता है ...खूबसूरत ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2012 at 11:30pm

अद्भुत ! अद्भुत !!

अरुणजी, आपकी इस कविता को मेरी पढ़ी हुई आपकी सबसे सशक्त कविताओं में से एक समझता हूँ. कथ्य को आपने जिस ढंग से प्रतिरोपित किया है वह कचोटते हृदय की टीस की तीव्रता और बढ़ा जाता है.  बहुत-बहुत बधाई हो.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
13 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service