For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (दिलों से ख़राशें हटाने चला हूँ )

122 - 122 - 122 - 122

(भुजंगप्रयात छंद नियम एवं मात्रा भार पर आधारित ग़ज़ल का प्रयास) 

दिलों  में उमीदें  जगाने  चला हूँ 

बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ 

कि सारा जहाँ देश होगा हमारा 

हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ 

हवा ही मुझे वो  पता  दे गयी है 

जहाँ आशियाना बसाने चला हूँ

चुभा ख़ार सा था निगाहों में तेरी 

तुझी से निगाहें  मिलाने चला हूँ

ख़तावार  हूँ  मैं  सभी दोष  मेरे 

दिलों  से ख़राशें  हटाने चला हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1931

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2021 at 5:02pm

आदरणीय अमीरुद्दीन ’अमीर’ साहब, 

भुजंगप्रयात का नशा आप पर ऐसा तारी हुआ दीख रहा है कि आपने तो हमें चकित कर दिया है. यह सात्विक नशा है. इसका बने रहना अवश्य ही सारस्वत विकास का शुभ-कारण हो सकता है.

जय-जय. 

वैसे, इस ग़ज़ल को अरूज के लिहाज से न देखें यह संभव ही नहीं है.  सो, मतले को देखें - 

दिलों  में उमीदें  जगाने  चला हूँ 

बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ  

’आने’ के काफिया पर ’जग’ और ’चल’ पूर्ण शब्द निर्धारित हो रहे हैं जो इता के ऐब या दोष का कारण बना रहे हैं.

यह अरूज का दोष होने से मानना तो होगा ही. अगर आपकी तरफ से कोई और ही सूरत बन रही हो तो कृपया साझा करें. 

बाकी, इस बढ़िया कोशिश के लिए दिली बधाइयाँ. 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2021 at 9:41am

बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीय अमीरुद्दीन जी...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 9, 2021 at 12:24pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु आभार।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2021 at 9:08am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 1, 2021 at 7:21pm

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आपकी टिप्पणी दिल छू गई।

ये सच है जनाब सीखना कभी ख़त्म नहीं होता, मैं भी एक तालिब-ए-इल्म हूँ और हमेशा रहूँगा। सादर। 

Comment by AMAN SINHA on October 1, 2021 at 11:28am

जनाब अमिरुद्दिन साहब, 

आप लोगोंं को पढ कर समझ मे आता है की अभी कितना कुछ सिखना मेरे लिये बाकी है और जरूरी भी है।

रचना बहुत अच्छी और दिल को छुने वाली लगी।  

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 30, 2021 at 7:17pm

मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद मसर्रत-बख़्श है, हौसला अफ़ज़ाई और इस्लाह के लिए मशकूर हूँ। जी सही फ़रमाया मतले में 'लाने' की क़ैद हो रही है, दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ, 'ख़ताएं मिरी थीं ख़तावार हूँ मैं' पर भी कुछ और सोचता हूँ। सादर। 

Comment by Samar kabeer on September 30, 2021 at 3:07pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब, भुजंगप्रयात छंद आधारित ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I 

'दिलोंको दिलोंसे मिलाने चला हूँ 

बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ'

आपने ग़ज़ल में 'आने' क़वाफ़ी लिये हैं और मतले में 'लाने की क़ैद हप रही है देखिएगा I

'ख़ताएं मिरी थीं ख़तावार हूँ मैं'

इस मिसरे में आपने 'मेरी' शब्द को मात्रा पतन के साथ 'मिरी' लिखा है, छंद में इसकी इजज़त नहीं होती, मिसरा बदलने का प्रयास करें I  

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service