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एक ख्वाहिश पूरी कर दे तू इबादत के बगैर

वो आ कर गले लगा ले मेरी इजाजत के बगैर

ऐ खुदा हुस्न और दौलत तो तेरी कुदरत है

मैं मानूँ अगर वो अपना ले मुझे इनके बगैर

बोल कर इज़हार क्यों करूँ अपने इश्क़ का

मैं मानूँ अगर वो जान जाये इशारे किए बगैर

यूँ तो आदत नही किसी को देखूं मुड़ कर

पर दिल करता है देखूं तुझे पलकें गिरे बगैर

शौक लगा उसी दिन मुहब्बत का मुझे यारों

दिल खो गया था जिस दिन खोये बगैर

कोई उम्मीद,दिलासा दे दे मुलाकात की

मैं इंतजार करूँगा तेरा शिकायतों के बगैर

मौलिक/अप्रकाशित

     मल्हार

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Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on October 5, 2017 at 12:11pm

सादर आभार rajesh kumari जी  मार्गदर्शन के लिए मै कोशिश करूँगा आगे से किसी विधा में लिख सकूँ

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on October 5, 2017 at 12:11pm

सादर आभार rajesh kumari जी  मार्गदर्शन के लिए मै कोशिश करूँगा आगे से किसी विधा में लिख सकूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2017 at 11:15am

रचना को देखकर लग रहा है कि आपने ग़ज़ल कहने की कोशिश की है .और ये एक ग़ज़ल का रूप अख्तियार कर  भी सकती है ,इसको ग़ज़ल के नियमों के दायरे में लाना होगा .ओबीओ पर ही ग़ज़ल विधा के विषय में समूह है वो ज्वाइन कर लें आप अच्छी ग़ज़ल कह सकते हैं |इस रचना हेतु बधाई आपको रोहित जी 

Comment by Mohammed Arif on October 3, 2017 at 2:35pm
प्रिय रोहित जी आदाब, अच्छी रचना का प्रयास । इस रचना को आप ग़ज़ल विधा में कहने का प्रयास करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे । बधाई स्वीकार करें ।

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