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अपवाद(लघुकथा)राहिला

पूरे गाँव से कुल पंद्रह लोग ऐसे गरीब थे जो कि उस सरकारी योजना के तहत प्रथम दृष्टिया लाभान्वित होने योग्य थे ।और अब तक सात नियम ,शर्तों में सभी खरे भी उतर गए थे।
"आठवां नियम ,अब जरा ध्यान से सुनना मैं कुछ सामान गिनवा रहा हूँ यदि ये सामान आपके घर में हो तो हाथ उठा दियो ।"सेकेट्री की आवाज पंचायत भवन में गूंजी। उसने जैसे ही कुछ समान गिनवाये ।
"अरे ओ महाराज !जो सामान तो शादी सम्मेेलन से मोड़ा खों मिलो,तो का हम अमीर हो गये वा से।"
"काका!सिरकारी नियम हैं इसमें हम का कर सकें।" इस नियम के पढ़ते ही पंद्रह में से ग्यारह पात्र बचे।

"नौवां नियम यदि वार्षिक आय निम्नानुसार हो तो वह भी इस योजना के अंतर्गत नहीं आएगा ।"
"अरे तो खावे वाले मुँह भी तो बिलात हैं और कमाने वाला एक ।इतनी तनखा से मंहगाई में का हो रओ?" लेकिन नियम तो नियम था तो तीन बड़े परिवार वालों को मायूस होना पड़ा।
" फिर दसवां ,ग्यारहवां इसी तरह कुछ ही देर में तेरहवें नियम तक आते ,आते बैठे सभी पंद्रह गरीब ,अमीर हो गये ।

"लो इस योजना का तो आज खाता ही नहीं खुला ।"पास बैठे एक कर्मचारी ने सेकेट्री से कहा।
"खुलेगा साहब!खुलेगा ,जैसे सैंकड़ो अन्य योजनाओं का खुला है इसका भी खुलेगा ।अपवाद तो हर जगह होते है।" पान की पीक से दीवार रंगते हुए सेकेट्री बोला।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on July 11, 2017 at 6:59am
आदरणीय सभी वरिष्ठ सुधीजनों को मेरा नमस्कार, आप सब को रचना ठीक लगी ।इसके लिए सादर आभार ।शुक्रिया
Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2017 at 11:50am

भाषा की चुस्‍ती, उपयुक्‍त शब्‍दों का उपयुक्‍त स्‍थान पर प्रयोग, वाक्‍यों के संदर विन्‍यास से सुसज्‍िजत यह लघुकथा सरकारी तंत्र पर एक अर्थपूर्ण व तीक्ष्‍ण व्‍यंग्‍य कसने में पूर्णरूपेण सफल सिद्ध हुई है । लघुकथा सरीखी महीन विधा में चंद वाक्‍य कथा में प्राण फूँक सकने की क्षमता रखते है जैसा कि - अपवाद तो हर जगह होते है।" पान की पीक से दीवार रंगते हुए सेकेट्री बोला। इस वाक्‍य में 'पान की पीक से दीवार रंगते'  का कलात्‍मक प्रयोग लेखिका की कुशलता का द्योतक है। सादर शुभकामनाएं स्‍वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on June 10, 2017 at 10:02pm
आदरणीय राहिला जी आदाब,सरकारी योजनाओं ,अफ़सरों और भ्रष्टाचार पर अच्छा तंज़ । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आदरणीय महेंद्र कुमार जी की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2017 at 5:05pm

आ. राहिला जी, सरकारी अफ़सर, योजनाओं और उससे जुड़े भ्रष्टाचार पर अच्छा व्यंग्य है. मेरी तरफ़ से इस उम्दा लघुकथा हेतु दिल से बधाई स्वीकार कीजिए. 

दृष्टिया = दृष्ट्या

उसने जैसे ही कुछ सामान गिनवाये।

सेकेट्री = सेक्रेटरी

देख लीजिएगा. सादर.

Comment by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 3:13pm

आदरणीय राहिला जी सरकारी योजनाओं की आपने यथार्थ तस्वीर चित्रित की है। इस सार्थक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

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