For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )

ग़ज़ल ( अहदे वफ़ा चाहिए )
--------
फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल

न कुछ तुम से इसके सिवा चाहिए ।
हमें सिर्फ़ अहदे वफ़ा चाहिए ।

जो दौलत है ले जाओ तुम भाइयों
मुझे सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए ।

करे ऐब गोई जो हर शख़्स की
उसे दोस्तों आइना चाहिए ।

जो क़ायम करे एकता मुल्क में
हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।

कहीं दिल लगाना भी है लाज़मी
अगर दर्दे ग़म का मज़ा चाहिए ।

ज़रूरी है ख़िदमत भी मख़लूक़ की
अगर तुझको साजिद ख़ुदा चाहिए ।

वो तस्दीक़ मुल्के अदम को गया
तुम्हें जिस बशर का पता चाहिए ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 1286

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 5, 2016 at 9:31pm

मोहतरमा  कल्पना    साहिबा  ,  ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया --

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 9:22pm

वाह | बहुत खूब |

जो दौलत है ले जाओ तुम भाइयों
मुझे सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए ।

करे ऐब गोई जो हर शख़्स की
उसे दोस्तों आइना चाहिए ।

जो क़ायम करे एकता मुल्क में
हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।  बेहद खुबसूरत ग़ज़ल कही है | दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 3, 2016 at 7:25pm

मोहतरम जनाब अशोक कुमार  साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ----

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 3, 2016 at 7:25pm

मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ----

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2016 at 11:08am

जो क़ायम करे एकता मुल्क में
हमें सिर्फ़ वह रहनुमा चाहिए ।.......जरूर.

कहीं दिल लगाना भी है लाज़मी
अगर दर्दे ग़म का मज़ा चाहिए ।........वाह ! बहुत खूब.

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है. दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 9:27am

आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 1, 2016 at 7:41pm

मोहतरम जनाब समर कबीर  साहिब आदाब  , ग़ज़ल में गहराई से   शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 5:37pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 30, 2016 at 7:33pm

मोहतरम जनाब जयनित कुमार  साहिब ,ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया --- आपने मेरे नाम की जगह कालीपद साहिब का नाम लिख दिया है ----

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 30, 2016 at 7:31pm

मोहतरम जनाब कालीपद प्रसाद साहिब ,ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ----मख़लूक़ का मतलब है  दुनिया और मख़्दूम का मतलब है खिदमत किया गया ---सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service