For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये दुनिया मेरी सल्तनत राजगी है-------ग़ज़ल

122 122 122 122
तेरे हुश्न में इक गज़ब ताज़गी है
भरूँ साँस में आस मन में जगी है।

नये काफियों की नई इक बह्र तुम
ग़ज़ल खूबरू जिसमें पाकीज़गी है।

तुम्हें चाँदनी से सजाया गया तो
अमावस को ईश्वर से नाराज़गी है

सिवा तेरे कोई भजन ही न भाये
यहाँ मन पे बस तेरी ही ख्वाजगी है

मेरे हाथ गर थाम कर तुम चलो तो
ये दुनिया मेरी सल्तनत राजगी है

मौलिक-अप्रकाशित

Views: 783

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 14, 2016 at 10:44am
ख्वाजगी'का अर्थ सही लिया है आपने ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 14, 2016 at 12:24am
आदरणीय बाउजी प्रणाम।

बह्र को बहर ही लिखना ठीक होगा, स्वीकार।
हुश्न को हुस्न कर दूंगा।
ख्वाजगी का अर्थ-मालिकाना हक़ के संदर्भ में है।
Comment by Samar kabeer on September 12, 2016 at 2:29pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल उम्दा हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
सही शब्द तो बह्र ही है, और आपने लिखा भी सही है,लेकिन लय में उसी तरह आएगा जिस तरह जनाब गिरिराज भंडारी जी ने कहा है,आपका मिसरा मात्रा गणना के हिसाब से सही भी है, मगर रवानी में नहीं है,देखिये ।
मतले के ऊला मिसरे में 'हुश्न' को "हुस्न" कर लें ।
चौथे शैर में "ख्वाजगी"का क्या अर्थ लिया है आपने ?
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2016 at 12:21am
जी अवश्य, सादर आभार गिरिराज सर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:49pm

आदरणीय आपने ग़लत नही कहा , लेकिन जब आप बह्र  स्वयम लिख देंगे तो मात्रा 21 ही गिनी जायेगी -- आप बहर ही लिखें  , ताकि मात्रा 12 गिनी जाये

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 11, 2016 at 3:46pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम।
सुझाव उत्तम है, लेकिन-----
1. ग़ज़ल की मात्राएँ- उच्चारण आधारित होती हैं?
2. मैं शहर को श-हर पढ़ता हूँ।
2. मैं बहर को ब-हर पढ़ता हूँ।

जिस शब्द का जैसा उच्चारण करता हूँ, वैसी ही मात्रा भी होगी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 3:20pm

आदरणीय पंकज भाई , अच्छी गैर मुरद्दफ गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।
इस् मिसरे फिर से देख लें - लय से भटका हुआ है -

1- नये काफियों की नई इक बह्र तुम    -- बह्र को 21 लेना चाहिये  , इसे यूँ कर लें -
नये काफियों की नई बह्र हो तुम

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
4 minutes ago
Aazi Tamaam posted blog posts
13 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service