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2122   1122   1122   22

किसको कितना है मिला माल,न हमसे पूछो।

हाँ!  करप्शन  का  ये  जंजाल न  हमसे पूछो।

तेरे  कारण  हुई  है, ये  जो  मेरी  हालत  है,

अब  तुम्हीं  आके  मेरा  हाल  न  हमसे  पूछो।

ज़ेह्न-ओ-दिल से तेरी यादों को मिटा डाला,अब

बीते  दिन, गुज़रे  हुए  साल  न  हमसे  पूछो।

कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,

कहाँ  ग़ायब  हुए  चौपाल, न  हमसे  पूछो।

जनवरी और दिसंबर के महीने में "जय",

सूर्य  तोड़ेगा  कब  हड़ताल  न  हमसे  पूछो।

=============================

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, तहे दिल से शुक्रिया आपको।।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 1:51pm

अच्छे अश’आर हुए हैं जयनित जी, दाद कुबूल करें।

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 10, 2016 at 11:17pm
आपका हार्दिक धन्यवाद,आदरणीय मिथिलेश जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 7, 2015 at 4:36am

आदरणीय जयनित जी, इस बेहतरीन प्रयास पर बहुत बहुत बधाई 

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 6, 2015 at 5:47pm
आदरणीय सौरभ जी,
मेरे हृदय में आपका स्थान एक गुरु के समकक्ष है..
आपके प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 6, 2015 at 5:44pm
आदरणीय अरुण कुमार निगम जी,
ग़ज़ल की त्रुटियों पर मेरा ध्यान आकृष्ट करने व ग़ज़ल की सराहना के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया।।
आप जैसे लोगों के योगदान से ही तो नौसिखिये अपना हुनर संवारते हैं.. :-)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2015 at 2:32pm

एक अच्छी और बेहतर कोशिश के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय जयनित जी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2015 at 1:06pm

अन्य प्रतिक्रियायें बाद में पढीं, आपकी गज़ल में ही बंध कर रह गया था, इस विषय पर पहले से ही चर्चा हो चुकी है.मैंने व्यर्थ ही पूर्व प्रतिक्रया लिख दी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2015 at 1:03pm

आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी, 

शानदार गज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिये .

तेरे  कारण  हुई  है, ये  जो  मेरी  हालत  है,

अब  तुम्हीं  आके  मेरा  हाल  न  हमसे  पूछो।

स्वयं के लिए एक ही स्थान पर "मेरा" और "हम" का संबोधन हिन्दी साहित्य में दोष माना जाता है, गज़ल के मामले में इसमें कितनी छूट है, मुझे इसकी जानकारी नहीं है, इस पर तो गज़ल के विद्वान ही प्रकाश डाल सकते हैं. चूंकि मुख्यतः हिन्दी से जुदा हूँ अत: क्षमा याचना सहित आपका इस पर ध्यान अवश्य ही चाहूँगा. 

कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,

कहाँ  ग़ायब  हुए  चौपाल, न  हमसे  पूछो।

इस अश'आर के लिए मेरी दिली दाद स्वीकार कीजिये. 

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 6, 2015 at 11:24am
आपका तहे दिल से आभार,आदरणीय गिरिराज जी..

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