For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हां, मैं हत्यारा हूं /प्रदीप नील

मैं खड़ा हूं आपकी अदालत में सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है ।
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।
पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं निर्दोष हूं, बेचारा हूं
सच तो ये है कि मैं हत्यारा हूं,
हां मैं हत्यारा हूं


मैं हत्यारा हूं अपने बेटे के मासूम बचपन का
मैं हत्यारा हूं अपनी बेटी के खिलते हुए यौवन का
मैं हत्यारा हूं मां-बाप की बूढ़ी आस का
मैं हत्यारा हूं अपनी पत्नी के कमज़ोर से विश्वास का
मैं हत्यारा हूं ,
हां मैं हत्यारा हूं


है कोई परमात्मा की बेटी इस पूरे ग्लोब पर ?
जो अपना हाथ उठाए और गर्व से मुझे बताए
कि आज तक एक भी पुरूष ने उसे नहीं छेड़ा या सताया ?
लेकिन मेरी पत्नी ने घर आकर कभी नहीं बताया
कि आज फिर शहर के जंगल में, किसी भेडि़ए ने उसे दबोचा
पूरा ही चबा डाला या बस ज़रा सा नोंचा
वो जानती है मैं कमज़ोर पुरुष भाषण देने लगूंगा
उसे छेड़े जाने का इलज़ाम भी उसी के सर धरूंगा
अरे फैशन करके जाओगी तो ऐसा ही होगा
लोगों से नयन मिलओगी तो ऐसा ही होगा
लेकिन वह जानती है कि भेडि़ए सिर्फ भेडि़ए हैं और नोंचना उनकी फितरत
शिकार चाहे चार साल की बच्ची हो,सत्तर साल की बुढिया या सर पे पांव तक बुर्के में ढंकी औरत
भेडि़ए श्रृंगार नहीं शिकार देखते हैं।
हर तकलीफ वो रहे छुपाती, मुझे एक भी नहीं बताती
क्योंकि नहीं चाहती कि उसके और मेरे बीच कमज़ोर से विश्वास की डोर टूट जाए
लेकिन नर्क में भी ज़गह नहीं उस पति के लिए जिसकी पत्नी का उस से विश्वास उठ जाए।
तो ही तो खड़ा हूं आपके सामने सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है.
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।


बेटियां चाहे अमीर की हो या गरीब की
अपने पिता की बहुत प्यारी होती हैं,दुलारी होती हैं
वो बेशक ना भी जन्मी हों किसी राज़ा के घर
बेटिया़ तो ज़न्म से ही राजकुमारी होती हैं
उनके सपनों में राजकुमार आते हैं
नीले घोडे पर होकर सवार आते हैं
तब वे अपने बालों में फूल टांकती हैं
और अपने पिता से चांद मांगती हैं
लेकिन मेरी बेटी ने चांद तो क्या, धुंधला सा सितारा भी नहीं मांगा
खुद सपना बुनना तो दूर, सपना उधारा भी नहीं मांगा
वो जानती है , उसका बाप बहुत बौना है
लाख चाहकर भी चांद को नहीं छू पाएगा
नहीं उगाती वो गुलाब की क्यारी, अपनी आंखों में
जानती है उसे लेने कोई राजकुमार नहीं आएगा
उसकीआंखों के दीए मैंने बुझाए, रोज यही एक बात कहकर
तू लाट की बेटी नहीं लड़की है, लडकी की तरह रहा कर
मैंने उसके सपनों को चुन चुनकर मारा,फिर भी उसे मैं प्यारा हूं
तो ही तो मैं कहता हूं कि मैं हत्यारा हूं
इसीलिए खडा हूं आपके सामने सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।


वो बेटा ही क्या जो पडौसी का कांच ना तोड़े
मां का लहू ना पिए, बाप की मूंछ ना मरोड़े
घर से पैसे ना चुराए, और दोस्तों से उधार ना मांगे
गर्लफ्रेंड को घुमाने के लिए बाईक या कार ना मांगे
लेकिन मैंने अपने बेटे को, हाथ के नीचे दबाके रखा
कभी डांट के कभी मार के, राजा बेटा बना के रखा
और मेरा बेटा नालायक नहीं मैं गर्व से सबको बताता रहा
ड्राइंगरूम में बैठे मेहमानों को बेटे के गुण गिनवाता रहा
लेकिन मैं अच्छा पिता नहीं बन पाया ऐसा मुझे आज लगता है
क्योंकि बेटा सिर्फ बाईस का है मगर बासठ का दिखता है
उसने बचपन नहीं देखा,जवानी नहीं देखी
रगों में बहते खून की रवानी नहीं देखी
धरती पर ऐड़ी मारकर पानी नहीं निकाला
शेर के जबड़ों में कभी भी हाथ नहीं डाला .
वो कभी कुछ भी नहीं मांगता मुझसे
उसे पता है कि अभावों मे जीना उसका नसीब है
लेकिन इससे बडा कलंक नहीं होता किसी पिता के लिए
जिसका बेटा बचपन से ही जान जाए कि उसका बाप गरीब है.
बेटा बड़ा होकर नहीं रहता किसी का
और वो आज भी कहता है मैं तुम्हारा हूं
इसीलिए तो मैं कहता हूं कि मैं हत्यारा हूं
तो ही तो खड़ा हूं आपके सामने सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है ।


मेरे मां बाप ने कभी उलाहना नहीं दिया
कि मैं जवान हुआ हूं उनका लहू पीकर
वो ये भी नहीं चाहते कि मै उन्हे तीर्थ कराऊं
श्रवण कुमार की तरह कांधों पे बिठाकर
वो सिर्फ इतने चाहते हैं कि तेईस घंटे छप्पन मिनट कहीं भी रहूं
दिन में सिर्फ चार मिनट उनके पास बैठूं
खाने को छप्पन पकवान बेशक ना परोसूं
कुत्तों की तरह उनके आगे दो वक्त के टुकडे़ भी ना फेंकूं
जो हाथ सहारा देते रहे मुझे बचपन में
वो बूढे हाथ मेरे कांधों का सहारा मांगते हैं
जो दीपक जलाया था उन्होने सारी उम्र मेरे लिए
अब उस दीपक का ज़रा सा उजियारा मांगते हैं
लेकिन मैं इतना भी नहीं कर पाता
उलझा रहता हूं खुद के जीवन के जाल में
कभी बीवी, कभी बच्चों की जि़म्मेवारियां
और कभी दो वक़्त की रोटी के सवाल में
गंगा जमुना बहती रहती, आज उन बूढी आंखों में
और फिर भी वो बूढी आंखें कहतीं , मैं तो उनका का तारा हूं
तो ही तो मैं कहता हूं कि मैं हत्यारा हूं
तो ही तो खडा हूं आपके सामने सर झुकाए
हांलाकि मेरे सर एक भी इलज़ाम नहीं है
और ये भी सच है कि दुनिया भर के पुलिस थानों में
किसी भी एफ आई आर में मेरा नाम नहीं है
पर ये सच नहीं कि मैं निर्दोष हूं,बेचारा हूं
सच तो ये है कि मैं हत्यारा हूं,
हत्यारा हूं ।
हत्यारा हूं , मैं
हां, मैं हत्यारा हूं

.
( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1221

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 6, 2015 at 8:43am
आदरणीय प्रभाकर जी , आपने मेरी रचना की मुक्त- कण्ठ से प्रशंसा की , हार्दिक आभार । मंच की बात आपने सही कही । माँ सरस्वती से डर कर कहता हूँ मैंने इस कविता के श्रोताओं को बहुधा अपनी भीगी पलकें पोंछते देखा है । इन पलकों को देख मैंने कई बार सोचा है कि किसी को रुला देने वाली कविता फाड़ कर फैंक दूँ । फिर सोचता हूँ शायद दुःख का उदात्तीकरण होने से किसी का मन हल्का होता है तो कोई बुरी बात नही ।
बहरहाल शुक्रिया प्रभाकर जी ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 4, 2015 at 5:52pm

बढ़िया कविता है आ० प्रदीप नील जी I ह्रदय के उद्गाए उभर कर सामने आये हैं I ऐसी रचनाएँ मंचों पर बेहद सराही जाती हैं, इस अनुपम कृति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें I

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 4, 2015 at 3:45pm
आदरणीय मिथिलेश जी , जान कर प्रसन्न हूँ कि आपको मेरी यह प्रस्तुति भी प्रभावी लगी ।
वर्तनी कहीं ठीक नही होती तो यह मेरे लिए ग्लानि की बात होती है । मैं तो खुद भाषा के अशुद्ध प्रयोग पर टोक देता हूँ । ऐसे में आपकी टिप्पणी के लिए आभारी हूँ । हाँ कुछ पंक्तियों की पुनरावर्ती सायास है सर । असल में यह मंचों से पढ़ी जाती है और वहां इनका प्रभाव और होता है । आपने समय दिया बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2015 at 10:47pm

आदरणीय प्रदीप नील जी, आपकी दूसरी रचना से गुजर रहा हूँ. यह भी एक प्रभावकारी रचना हुई है. इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई स्वीकारें. कुछ पंक्तियों की पुनरावृत्ति और कुछ शब्दों की वर्तनी, रचना के सौन्दर्य में बाधक लग रही है. सादर  

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 3, 2015 at 4:51pm
अज़ीज़ कबीर शुक्र गुजार हूँ कि आपने इधर आकर रचना पढ़ी और हौसला अफजाई की । मेहरबानी आपकी
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 3, 2015 at 4:46pm
आपने मेरी रचना की कुछ ज्यादा ही तारीफ कर दी सुनील भाई । मैं बहुत ही प्रफुल्लित महसूस कर रहा हूँ । बस आप यूँ ही परमात्मा से मेरे लिए प्रार्थना करते रहिएगा। करेंगे न ?
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 3, 2015 at 4:33pm
अज़ीज़ शेख साहब , बहुत शुक्रिया । रचना पढ़ने और टिप्पणी देने में आपको जितना समय लगा वह मुझ पर क़र्ज़ रहा । आते रहिएगा मेरे ब्लॉग पर
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 3, 2015 at 4:28pm
प्रिय सतविंदर भाई आपको मेरी यह रचना भी पसन्द आई , मुझे यह जान कर बेहद प्रसन्नता हुई । मैं आप जैसे गुण ग्राही भाई बहनों के लिए ही लिखता हूँ । शुभ कामनाएं देते रहिएगा
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 3, 2015 at 4:25pm
आदरणीय तेज वीर जी , मेरी कविता पर आपकी टिप्पणी ने मुझे जो सम्बल दिया उसके लिए आपका ऋणी हूँ । आप जैसे अग्रज का आशीर्वाद ही ऐसी रचनाएँ करवा देता है ।
मैंने जिस गहन अनुभूति में डूब कर यह रचना लिखी उससे भी कहीं बहुत ज्यादा अनुभूति आपकी टिप्पणी में है । धन्यवाद सर ।
Comment by Samar kabeer on December 2, 2015 at 10:57pm
जनाब प्रदीद नील जी,आदाब,अच्छा लिखते हैं आप,आपकी कविता पसंद आई,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service