For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया ( गिरिराज भंडारी )

22    22    22    22    2

शहर ज़रा सा मुझमें भी तो आया है

यही सोच के गाँव गाँव शर्माया है

 

मुर्दों जैसा नया सवेरा है सोया

किस अँधियारे ने इसको भरमाया है

 

याराना कुह्रों से है क्या मौसम का

आसमान तक देखो कैसे छाया है

 

चौखट चौखट लाशें हैं अरमानों की

किस क़ातिल को गाँव हमारा भाया है

 

सूखी डाली करे शिकायत तो किस को

सूरज आँखें लाल किये फिर आया है

 

छप्पर चुह ते झोपड़ियों का क्या कहना

हाल पूछने नाला घर तक आया है  

 

किसी रोशनी को लूटा फिर अँधियारा

चौक चौक में फिर चर्चा गरमाया है

 

जिन सोचों की नदी बही है आंगन तक

देख उसे बूढ़ा बरगद थर्राया है

 

बाट जोहतीं गलियाँ राहें चौबारे

ख़बर मिले , कब भूला वापस आया है 

  

इन पथरीली राहों के उस पार कहीं

कुछ ख़्वाबों ने सच का घर बनवाया है

 

फिर से देखो हवा हुई है तूफानी

फिर से कोई दीप जलाने आया है 

******************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 973

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 10:39am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपका बहुत आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 11:40pm

आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 11:08pm

ज़रूर आदरणीय सौरभ भाई , यही तो सबका अंतिम लक्ष्य है , और होना भी चाहिये ॥ आमीन !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 4:22pm

जय हो...

आदरणीय, अनन्तावस्था में ही कैवल्यपद का भान होता है... :-)))

हम सभी कैवल्यपद का आभास करें..

:-)))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 4:12pm

आदरणीय सौरभ भाई , मै बहुत गणितीय न हो कर जल्दबाजी मे केवल अपनी उन्नति को रुकी हुई साबित करने का प्रयास कर रहा था , उदाहरण सही नही ले पाया इस  बात का अफसोस  है मुझे , क्योंकि मै खुद गणित मे बी एस सी किया था , इस लिये और भी अधिक शर्मनाक है । आपने सही कहा है ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 4:01pm

ये क्या समीकरण दिया आपने आदरणीय ?.. :-))

0*0 = 0 (चलिये मान लिया)
लेकिन, 0/0 कभी 0 नहीं हो सकता बल्कि यह अव्यक्त हुआ परिणाम (indetermined) कहलाता है.
:-))

हम पूर्ण में से पूर्ण या तो जोड़ सकते हैं या पूर्णसे पूर्ण घटा सकते हैं और परिणाम पूर्ण ही रहता है.
यही तो इहलोक और उहलोक के पारस्परिक सम्बन्ध की परिभाषा है - यानि पूर्ण इदं (पूर्ण इहलोक यानी धरती) पूर्ण अदः (पूर्ण उहलोक यानी आकाशलोक या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड) पूर्णात् (पूर्ण से) पूर्णमुदच्यते (हआ पूर्ण ही कहते हैं)
पूर्णस्य (पूर्ण से) पूर्णमादाय (पूर्ण घटाया जाय) पूर्णमेवाशिष्यते (पूर्ण ही शेष रहता है)
:-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 3:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया  आदरणीय सौरभ भाई , मौन को समझना वैसे भी कठिन काम है , इसलिये मै दो अर्थ लगा कर दोनो लिख दिया था , एक फैसला नहीं कर पा रहा था ॥ आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 3:38pm

निश्शब्दता अतिरेक में ही होती है, आदरणीय ! यहाँ तो मन उन्मुक्त हुआ उन्मन हो चला है..

आपकी ग़ज़ल के कई शेर बस हो गये हैं.

:-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 3:37pm

आदरणीय सौरभ भाई , गंभीरता से सोचने पर  जो जवाब आया वो निम्न है -- 

0  * 0  =  0 

0 / 0   =  0

-------------- 

योग =    0   --  अगर हिसाब सही हो तो बताइयेगा ॥  आपका आभार , इस प्रश्न के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:56pm

 हा हा हा ....  ब्लेंक चेक मिला , और वो भी दस्तखत के साथ , आदरणीय सौरभ भाई , मै सभी सराहना के  पुराने शब्द भर लूँ तो ?

सराहना के दुहराव के लिये आपका आभारी हूँ । अगर कुछ अधिक ले लिया हूँ , तो कम कर लीजियेगा ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
8 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
12 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service