For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा

सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये

 

चली तंज़  की लातादाद सब हवाएँ  मगर 

नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:33pm

प्रिय प्रतिभा जी,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित किये ये मेरे लेखन के प्रति आश्वस्ति का कारण बना मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका सस्नेह शुभकामनायें . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:31pm

आ० श्याम मथ पाल जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:30pm

महर्षि त्रिपाठी जी ,आपकी सराहना से मेरा उत्साह दुगुना हुआ लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ 

Comment by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 9:15pm

Aadarniya Rajesh Kumari,

Bahut  hi sundar rachna ke dheron  badhai.

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 6:04pm

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 ........वाह !!शानदार ,,,आ.राजेश कुमारी जी इस हृदयस्पर्शी गजल पर ढेरों बधाइयाँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 2:20pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी ,आपकी सराहना से ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,तहे दिल से आभार आपका सादर.  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 9, 2015 at 12:29pm

महनीया

 बहुत सुन्दर गजल

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 9:18am

प्रतिभा त्रिपाठी जी का कमेन्ट ,मेल में तो दिख रहा है यहाँ नहीं दिख रहा न जाने क्यूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 9:16am

आ० डॉ० विजय शंकर जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ,  

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 8, 2015 at 9:49pm
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
बहुत खूब, बधाई ,आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, दूसरी प्रस्तुति भी अति उत्तम हुई है। हार्दिक बधाई।"
33 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहावली रची है। हार्दिक बधाई।"
57 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छे दोहे हुए। कुछ शब्द सामान्य प्रचलन के नहीं हैं जैसे रूख, पटभेड़ और पिलखन। अगर इनके अर्थ भी साथ…"
57 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छी ग़ज़ल हुई, विशेषकर चौथा शेर बहुत पैना है।"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"यह टिप्पणी गलत जगह पोस्ट हो गई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. प्राची बहन , सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति, स्नेह व मनोहारी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छी ग़ज़ल हुई। विशेषकर चौथा शेर बहुत पैना है।"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आपने कविता में संदर्भ तो महत्वपूर्ण उठाए हैं, उस दृष्टि से कविता प्रशंसनीय अवश्य है लेकिन कविता ऐसी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service