For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२११--२११/२११--२११/२११ २

मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर

धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर

 

दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे   

इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर

 

जाम बुझायेगें क्या तिसना इस  मन की

गम को पिघला छलका गंगा अब शायर

 

आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें

फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर

 

चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को  

इस माटी का कण कण चमका अब शायर

 

अच्छाई को ढाल बुराई की मत कर  

सच्चाई को यूं मत झुठला अब शायर

 

मंचों पर सर पंची करने वालों को  

औसत जन की पीड़ा समझा अब शायर

 

छोड़ कलम को हँसिया ले कर चल साथी

खेतों में हल लेकर बढ़ जा अब शायर

 

घोर ग़रीबी पसरी है देहातों में   

कैसे उबरें इस से बतला अब शायर   

 

लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू  

चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर

 

गम को यूँ ‘खुरशीद’ पिरो कर ग़ज़लों में

कहलायेगा तू भी अच्छा अब शायर  

.

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 12:46pm

आदरणीय खुर्शीद साहब हर बार की तरह शानदार रचना

लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू 

चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर

 

गम को यूँ ‘खुरशीद’ पिरो कर ग़ज़लों में

कहलायेगा तू भी अच्छा अब शायर  .......बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 2, 2015 at 11:29am

बहुत उम्दा गजल (हिंदी गजल- गीतिका) रचने  के  लिए हार्दिक बधाई श्री खुर्शीद खैराडी जी - 

जाम बुझायेगें क्या तिसना इस  मन की

गम को पिघला छलका गंगा अब शायर - बहुत  खूब 

 

चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को  

इस माटी का कण कण चमका अब शायर -  सार्थक  भाव 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 10:48pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , क्या बेहतरीन ग़ज़ल कही है भाई , सराहना के लिये शब्द नहीं मिल रहे हैं । बस हर शे र पर वाह  करता जा रहा हूँ । दिली मुबारक बाद दे रहा हूँ क़ुबूल करें ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:12pm
बेहतरीन रचना है जनाब खुर्शीद साहब बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by ajay sharma on March 1, 2015 at 9:55pm

आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें

फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर........wah wah sir ,,,,aaj laga ki  ....bato'n se itar kuch is tarah bhi gazal ko bhi unchai bakshi ja sakti hai ...zaroorat to isi ki hai .....behatreen 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 8:18pm
ग्यारह के ग्यारह लाजवाब , किसका उल्लेख करूँ , दस से ज्यादती हो जाएगी , बहुत बहुत बधाई , आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , सादर।
Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 8:15pm

मंचों पर सर पंची करने वालों को  

औसत जन की पीड़ा समझा अब शायर

 क्या गहन बात कही है इस गीतिका के जरिए आपने काश शायर जो आह्वन किया गया है उसे लोग समझें और 

चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को  

इस माटी का कण कण चमका अब शायर

वाली बात साबित हो पर इसके लिए ज़रुरी है कि

लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू  

चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर

 उम्मीद है कुछ बदलाव आएगा |

 

Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 7:03pm

जवाब नही आपका ..आ. खुर्शीद जी ,,लाजवाब |हार्दिक बधाई आपको |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:01pm

आदरणीय खुर्शीद सर, बहुत उम्दा और खुबसूरत ग़ज़ल हुई है, आज की ग़ज़ल की श्रेणी में ये ग़ज़ल भी बेहतरीन है. 

मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर

धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर......... बेहतरीन मतला 

 

दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे   

इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर.... वाह वाह 

लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू  

चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर... बेहतरीन

शायर के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत .... बहुत खूब 

शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं ...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 1, 2015 at 1:21pm

सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने  

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

लोहे का घन हाथों में ले हँसकर तू  

चाँदी के ये तमगे ठुकरा अब शायर------------------behtareen. sublime . aa0 khursheed jee

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service