जिसे उम्र भर मैं सुना किया , 
 जिसे चुपके-चुपके पढा किया , 
 मैं समझ सका न जिसे कभी , 
 मेरी हाथ की वो किताब हो ।।
 एक बाल था मिरी पलक का , 
 जो छुपा रहा मिरी आँख में , 
 मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी , 
 मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।
जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी , 
 जो सॅवर गया तेरा ख्याल था , 
 जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में , 
 वो ठण्डी छॉव हो ।।
 तेरे इन्तजार का सिलसिला , 
 कभी टूूटता तो मैं जानता , 
 मुझे मिला क्या मैंने खो दिया , 
 मेरी जिन्दगी का हिसाब हो ।।
तुझे भूलने से भी क्या मिला ,
 मैने करके देखा है ये बहुत , 
 वो जो जख्म दे के चला गया , 
 मेरी आँख को , वो ही ख्वाब हो ।।
मेरे साथ-साथ चला किया , 
 मेरी जिन्दगी बनके अजय 
 जिसे रख सका न सॅभाल कर ,
 मिरी जिन्दगी का वो खिताब हो ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अजय जी सुन्दर अभिव्यक्ति ... मैं समझ सका न जिसे कभी ,
मेरी हाथ की वो किताब हो ।।....हार्दिक बधाई !
आदरणीय अजय जी अच्छी रचना है सादर बधाई
जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी , 
 जो सॅवर गया तेरा ख्याल था ,
वाह बहुत खूब नज़्म हुई है
giriraj sir se hausala afzai ki mai to dhanya huya , laga ki kuch sarthak likha hai shayad
adarniya mithilesh ji se mutasir hokar kuch ban pada .....aap gunijano ko pasand aayi nawazishe
सुन्दर नज्म, बधाई .
नज्म ,ख्याल .गज़ल .गीत जो कुछ भी हो पर
तेरा ख्याल मन को भा रहा
तेरा गीत मैं गुनगुना रहा
तू बात ऐसी लिख रहा
मैं तेरा होता जा रहा |
आदरणीय अजय भाई , बढिया ख्याल है , नज़्म के लिये बधाई ।
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