हरे भरे ये वृक्ष हमारे
  देते ठंडी ठंडी छांव |
 सबको जरूरत रहती इनकी 
  नगर हो या हो गाँव  ||
 
बसंत के प्यारे मौसम में 
 नई -नई पत्ती जब आती हैं  |
 थोड़ी सी ही जब चले पवन 
 झूम झूम ये लहराती हैं  ||
 
 आते हैं जब इन पर फल 
 इनकी डालें झुक जाती हैं |
 ना करो तुम घमंड कभी 
 बिन बोले ये कह जाती हैं  ||
 
 वृक्ष सूखकर भी देखो 
 कितने काम हमारे आते हैं |
 स्वयं जलकर आदमी को देते रोटी 
 परमार्थ का पाठ हमें पढ़ते हैं  ||
Comment
bahut bahut dhanywad shri ajay kumar bohat ji
बहुत बहुत धन्यवाद श्री भ्रमर साब ! सहयोग बनाये रखियेगा
बसंत के प्यारे मौसम में 
नई -नई पत्ती जब आती हैं  |
थोड़ी सी ही जब चले पवन 
झूम झूम ये लहराती हैं  ||
आते हैं जब इन पर फल 
इनकी डालें झुक जाती हैं |
ना करो तुम घमंड कभी 
बिन बोले ये कह जाती हैं  ||
प्रिय योगी जी सुन्दर सन्देश देती रचना काश सब हरा भरा रहे ....भ्रमर ५
आदरणीय श्री रक्ताले जी सादर नमस्कार ! बहुत बहुत शुक्रिया ! आपका आशीर्वाद मिला !
योगी जी 
        सादर नमस्कार, 
              आते हैं जब इन पर फल 
        इनकी डालें झुक जाती हैं |
              ना करो तुम घमंड कभी 
        बिन बोले ये कह जाती हैं  ||
 बहुत सुन्दर सन्देश देती काव्य रचना. यदि मानव इनसे कुछ सीख सके तो क्या बात हो. बधाई.
bahut bahut dhnywad adarniya shri dr. surya baali ji . aapka aashirwad mila , khushi hui !
adarniya shri dr, baali aapka aashirwad mila , bahut bahut dhnywad !
योगी जी सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !
आते हैं जब इन पर फल 
 इनकी डालें झुक जाती हैं |
 ना करो तुम घमंड कभी 
 बिन बोले ये कह जाती हैं  ||
खूबसूरत अभिव्यक्ति !
bahut bahut dhanywad , adarniya rekha joshi ji !
स्वयं जल कर आदमी को देते रोटी ,
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