For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लावणी छन्द,संपूर्ण वर्णमाला पर प्रेम सगाई

(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)

.

अभी-अभी तो मिली सजन से,
आकर मन में बस ही गये।
इस बन्धन के शुचि धागों को,
ईश स्वयं ही बांध गये।

उमर सलोनी कुञ्जगली सी,
ऊर्मिल चाहत है छाई।
ऋजु मन निरखे आभा उनकी,
एकनिष्ठ हो हरषाई।

ऐसा अपनापन पाकर मन,
ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,
और मेरे सपनों का राजा,
अंतरंग मालूम खड़ा।

अ: अनूठा अनुभव प्यारा,
कलरव सी ध्वनि होती है।
खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,
गहना हीरे-मोती है।

घन पानी से भरे हुए ज्यूँ,
चन्द्र-चकोरी व्याकुलता।
छटा निराली सावन जैसी,
जरा-जरा मृदु आकुलता।

झरझर झरना प्रेम का बरसे,
टसक उठी मीठी हिय में।
ठहर गया हो कालचक्र भी,
डर अंजाना सा जिय में।

ढम-ढम ढोल नगाड़े बाजे,
तनिक हँसी आ जाती है।
थपकी स्वीकृत मौन प्रेम की,
दमक नयन में लाती है।

धड़क रहा दिल स्नेहपात्र पा,
नव नूतन जग लगता है।
प्रणय निवेदन सर आँखों पर,
फाग प्रेम सा जगता है।

बन्द करी तस्वीर पिया की,
भरी तिजोरी मन की है।
महक उठी सूनी सी बगिया,
यही कथा पिय धन की है।

रहना है अब साथ सदा ही,
लगन लगी मन में भारी,
वल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,
'शुचि' प्रभु की है आभारी।

सकल सृष्टि सुखदायक लगती,
षधा डगर है जीवन ही,
हम बन जायें अब मैं-तुम से,
क्षणिक नहीं आजीवन ही।

त्रास नहीं,सुख की बेला है ,
ज्ञात यही बस होता है।
वर्णमाल सी ऋचा है जीवन,
भाव भरा मन होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित


Views: 1141

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on February 10, 2023 at 10:54am

शुचिताजी,

सादर वन्दे. सुदीर्घ अन्तराल उपरान्त OBO पर आया, इस सुन्दर रचना पर विलम्ब से ही सही, बधाई, "षधा" मेरे लिए नया ज्ञानवर्धक शब्द है.

मुझे लगता है, "टसक उठी मीठी हिय में" के स्थान पर "टीस उठी मीठी हिय में" अधिक उपयुक्त होता. कृपया अन्यथा न लें, मात्र मेरा विचार प्रकट किया.

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 9, 2021 at 8:10pm

युं तो आपके नाम के साथ् आपके साथी का नाम जुड़ा होने से सामाजिक रुप से आप सम्पूर्ण ही जान पड्ती है कोई कमी भी नही फिर भी न जाने मेरा भ्रम ही हो आपकी रचना में आप अपने स्वभाव को छुपा नही पाई , कुछ न कुछ किसी कोने में कुछ दवा हुआ सा लगा मुझे -
इन्सान जो अपने जीवन में महसूस करता है उसकी छाया उसकी अभिव्यक्ति में उतर ही आती है अन्जाने - 

रहना है अब साथ सदा ही,
लगन लगी मन में भारी,
वल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,
'शुचि' प्रभु की है आभारी।


Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 9, 2021 at 8:02pm

शृंगार रस का अनुभूत प्रयोग हुआ है इस रचना के म|ध्यम से शुचिता जी , एक लय है इस रचना में साथ् ही पढ़ते पढ़ते गुनगुनाने का मन करता है हाँ एक बात और एक छवि उभरती है अपने प्रियतम की जो इस रचना की सबसे खूब्सूरत पह्लू है शुचिता जी , बधाई  स्वीकार किजिये 

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 16, 2021 at 7:31am

आदरणीय सौरभ पांडेय जी, उत्साहवर्ध एवं सुझाव हेतु आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 11, 2021 at 1:43pm

आ. शुचिता बहन, रचना अच्छी हुई है । हार्दिक बधाई । छंद विषयक आ. सौरभ जी की बात का संज्ञान अवश्य लें । सादर..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 11, 2021 at 12:23am

आदरणीया शुचिता जी, वर्णमाला को  साधते हुए कथ्य की समरचना अपने आप में छंद परंंपरा का निर्वहन ही है. आपका यह एक श्लाघनीय प्रयास है. 

हार्दिक बधाई !

यह अवश्य है कि मात्रिका के निर्वहन प्रति भी सचेत रहना था. यह भी अभ्यास से संयत हो जाएगा. 

शुभातिशुभ 

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 10, 2021 at 9:43pm

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव भैया।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on June 10, 2021 at 6:20pm

शुचि बहन यह अनूठा प्रयोग करते हुए इस सुंदर छंद बद्ध सृजन की बहुत बहुत बधाई।

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 2, 2021 at 7:53am

अतिशय आभार आशीष यादव जी।

Comment by आशीष यादव on June 1, 2021 at 11:12pm

बहुत सुंदर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रूखे व्यवहार से मैं आहत हूँ । आदेशात्मक प्रवृत्ति किसी भी रचनाकार के …"
5 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"उभयमार्ग ही अभयमार्ग --------------------------- शांति की बात कर रही दुनिया युद्ध में फिर भी मर…"
6 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"उचित है आदरणीय गिरिराज....जी मतले में सुधार के साथ दो शेर और शामिल कर हूँ....सभी अग्रजों…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। दोहों के लिए हार्दिक बधाई।  भाई योगराज जी के कथन को अन्यथा न ले…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपके सुझाव से मूल दोहे…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।  इंगित दोहे में…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"प्रिय गिरिराज  हार्दिक बधाई  इस प्रस्तुति के लिए|| सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है सड़ा है…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई इस प्रस्तुति के लिए|| सदा प्रगति शान्ति का       …"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , विषय के अनुरूप बढ़िया दोहे रचे हैं , बधाई आपको मात्रिकता सही होने के बाद…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service