For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( अंधी गली के मोड़ पर.....)

 (221 2121  1221 212)

अंधी गली के मोड़ पे सूना मकान है

तन्हा-सा आदमी अब इस घर की शान है

हमसे उन्होंने आज तलक कुछ नहीं कहा

हर बार उससे पूछा है जो बेज़बान है

हालात-ए- माज़ूर यक़ीनन हुये बुरे

ऊपर चढ़ाई है वहीं नीचे ढलान है

बदक़िस्मती का ये भी नमूना तो देखिये

गड्ढे नहीं मिले थे जहाँ पर खदान है

मरने के बाद भी तो फ़राग़त नहीं मिली

सारे बदन पे बोझ है मिट्टी लदान है

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:50pm

आदरणीय समर कबीर साहब .

आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.आपके मार्गदर्शन और स्नेह 

की मुझे सख्त ज़रूरत है. आपकी इस्लाह पर तुरंत अमल कर आपको सूचित करता हूँ.ईद की मुबारकबाद कुबूल फरमायें.

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:44pm

आदरणीय भाई डा.छोटे लाल सिंह जी.
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 25, 2020 at 9:00am

सारे वदन पर बोझ है मिट्टी लदान हैं, हकीकत को बयां करती बहुत ही दमदार गजल आदरणीय गणवीर साहब बहुत बहुत बधाई

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 6:21am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'हर बार उनसे पूछा है जो बेज़बान है'

इस मिसरे में 'उनसे' की जगह "उससे" कर लें ,'उनसे' के कारण रदीफ़ 'हैं' हो रही है,ग़ौर करें ।

'माज़ूर की हालत का तमाशा बना दिया

ऊपर चढ़ाई है वहीं नीचे ढलान है'

इस शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,और शैर का भाव भी स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

Comment by सालिक गणवीर on May 24, 2020 at 11:38am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 9:00am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service