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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – October 2020 Archive (5)

लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कहते हैं झूठ  ज़ुल्म  हिरासत  में आ गया

हाँ न्याय ज़ालिमों की हिमायत में आ गया।१।

*

लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब

उसका ही नाम दिन को सिकायत में आ गया।२।

*

अन्धा है न्याय  जानता  होगी सजा नहीं

बेखौफ जुल्मी यूँँ न अदालत में आ गया।३।

*

बचना था जेल जाने  से  ऊँँची पहुँँच के बल

शासन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 31, 2020 at 2:00pm — 12 Comments

नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो

ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।

**

नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी

हर वचन जाता रहा  बेकार उसका दोस्तो।२।

**

है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार

रास्ता जिस ने किया  तैयार उस का दोस्तो।३।

**

हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ

क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।

**

यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर

दे रहे हैं साथ लेकिन  ख़ार उसका दोस्तो।५।

**

भाण…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 10 Comments

उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२



हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना

उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।

**

किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर

एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।

**

मीत  अकेलेपन  सा  कोई  और  नहीं

लेकिन ये भी सब  को पाया तो जाना।३।

**

नींद  न  आये  तो  ये  कैसे  भूलें  हम

झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।

**

पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी

फूल के  बदले  पथ में  काँटे  बो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments

नेता कम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम

सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।

**

बाँट रहे  हैं  जाति-धर्म  में  दशकों  पहले जैसा ही

एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।

**

सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को

अब निर्धन की पीड़ाओं  को  सुनने वाले नेता कम।३।

**

ठाठ  पुराने  राजा  जैसे  अब  हर  नेता अपनाता

लाल …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments

जन के हाथों थमी थालियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं

भाषण  देने  वाले  नेता  सारे  यार  मवाली हैं

**

इन के दिन की  बातें  छोड़ो रातें तक मतवाली हैं

जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं

**

कहते  तो  हैं  नित्य  ग़रीबी  यार  हटाएँगे  लेकिन

जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं

**

देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को

पर  ख़र्चे  में  इन की  आदतें  हैराँ  करने वाली हैं

**

काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 4, 2020 at 11:01am — 6 Comments

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