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जयनित कुमार मेहता's Blog – October 2015 Archive (3)

जिगर से पूछकर देखो,नज़र से पूछकर देखो (ग़ज़ल)

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मज़ा क्या है सफ़र का,हमसफ़र से पूछकर देखो

है मंज़िल दूर कितनी,ये डगर से पूछकर देखो

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सुनाएँगी दरो-दीवार,खिड़की रोज़ ही तुमको

कहानी अपने पुरखों की तो घर से पूछकर देखो

-

बिताई जिस के साये में थी तुमने धूप जीवन की

कि अब तो हाल उस बूढ़े शजर से पूछकर देखो

-

पता चल जाएगा, किसने फ़िज़ा में है ज़हर घोला

हवाओं से,ये बू आती किधर से..पूछकर देखो

-

वफ़ा के ज़ख्म कितने हैं,बहे कितने मेरे आँसू

जिगर से पूछकर… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on October 18, 2015 at 5:00pm — 10 Comments

श्याम से तो श्वेत सबका तन हुआ है (ग़ज़ल)

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श्याम से तो श्वेत सबका तन हुआ है..

लोभ से संत्रास लेकिन मन हुआ है..



अब कली भौरों से शर्माती नहीं है,

बेशरम अब सारा ही उपवन हुआ है..



खटने में ही बीतती है उम्र सारी,

कोल्हू के इक बैल सा जीवन हुआ है..



दिल के ग़म चहरे तलक आते नहीं क्यूँ,

सोच कर हैरान ये दर्पण हुआ है..



सूखी धरती की दरारें पूछती हैं,

तू भी धोखेबाज़ क्यूँ सावन हुआ है..



आजकल की फिल्मों में तो कुछ नहीं..बस,

'काम' का विस्तार से… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on October 2, 2015 at 9:00pm — 6 Comments

हल चलाना जानता हूँ (गीत)

है कला,मिट्टी से मैं,

सोना उगाना जानता हूँ।

पुत्र हूँ किसान का,

मैं हल चलाना जानता हूँ।।



ताप से दिनकर के मैं

तपकर कभी पिघला नहीं

रोक सकती हैं नहीं

मुझको मचलती भी बयारें



प्रात हो या रात,रहता

मैं सदा ही मस्तमौला

बरखा मूसलाधार चाहे

हलकी-फुल्की हों फुहारें



काल के भी गाल से,

मैं लौट आना जानता हूँ..!



लहलहाती है फसल जब

मैं ख़ुशी से झूमता हूँ

संग मेरे झूमते हैं

प्रकृति के सब नज़ारे



ये… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on October 2, 2015 at 7:40pm — 9 Comments

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