For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाइरी माँगती है ख़ून-ए-जिगर (ग़ज़ल)

2122 1212 22

आसमाँ हम भी छू ही लेते,मगर
काट डाले गए हमारे पर

हमको काँटों की राह प्यारी है
आप ही कीजे रास्तों पे सफ़र

अपनी आँखों में जुगनू बसते हैं
हम पे होगा न तीरगी का असर

हम तो रहते हैं आप के दिल में
खुद का अपना नहीं है कोई घर

इस क़दर खो गया है होश-ओ-हवास
आजकल है न हमको अपनी ख़बर

मर्ज़ पहुँचा है उस मुक़ाम पे अब
हो गया खुद बिमार चाराग़र

नक़्श उसका बसा लिया दिल में
कौन मंदिर को जाए शाम-ओ-सहर

इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना,
शाइरी माँगती है ख़ून-ए-जिगर
=========================

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 10:03pm
आदरणीय सौरभ जी, आपके मार्गदर्शन से बहुत लाभ पहुँचा है मेरी शाइरी को।

आपकी उपस्थिति व अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए पुनः हृदय तल से आभारी हूँ।
सादर।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 10:00pm
आदरणीय डॉ सूर्या बाली जी,
बहुत बहुत धन्यवाद आपको।
सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 9:59pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी, सर्वप्रथम हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें।

फेलुन से समाप्त होने वाली बहर में 22 को 112 करने की छूट का उपयोग मैंने मतले में किया है। क्या मैंने ठीक नहीं किया है?
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 9:53pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 9:50pm
आदरणीय शेख़ साहब, बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका।
सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 9:49pm
आदरणीय सुशील सरना जी,
ग़ज़ल पर आपकी सरहनात्मक प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ।
हार्दिक धन्यवाद आपको।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 1:31pm

हाल में ही, इसी मंच पर कहीं टिप्पणियों के माध्यम से हो रही बातचीत के दौरान यह सुनने और जानने को मिला कि शेर उम्दा तभी हो जाते हैं जब उनका काफ़िया सर चढ़ कर न बोले, अर्थात, शेरों में काफ़िये पानी-चीनी से घुले-मिले हों. अन्यथा शेर मात्र काफ़िया केलिए कहा हुआ प्रतीत होता है और वहीं शेर हार जाता है. 

बाकी, ग़ज़ल पर आपका अभ्यास हम सभी देख रहे हैं. सतत प्रयास बना रहे. 

शुभेच्छाएँ

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 9, 2016 at 12:29pm

अच्छा है 

Comment by Ravi Shukla on June 8, 2016 at 3:31pm

आदरणीय जयनित जी बढि़या ग़ज़ल कही है आपने बधाई कुबूल करें  

मतले के उला को कुछ और समय दे सकते हैै अभी लय में थोड्री गुजांइश है 

अपनी आँखों में जुगनू बसते हैं
हम पे होगा न तीरगी का असर  बहुत अच्‍छा शेर कहा है 

अखिरी शेर ने गालिब की याद दिला दी 

ऐसा आसां नहीं लहू रोना 

दिल में ताकत जिगर में हाल कहां    पुन: बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 12:16pm

आदरणीय जयनित भाई , अच्छी ग़ज़ल के लिये बहुत बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service