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मिथिलेश वामनकर's Blog (122)

बुनियाद (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर [अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस पर ]

“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”

“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”

“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”

“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”

“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”

“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments

बिगड़ता है किसी का क्या?---(मिथिलेश वामनकर)

1222--1222—1222--1222

 

लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या?

निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या?                                 

 

अगर दो वक़्त की…

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Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments

मज़बूत बुनियाद - (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

“मम्मा मेरे लिए ब्रेकफास्ट में केवल फ्रूट सलाद बनाना.”

“आज फ्रूट्स नहीं है... कुछ और बना दूं ?”

“नहीं” - परी ने मना कर दिया क्योकिं पार्टी में हैवी डाईट के कारण ब्रेकफास्ट लाईट करना चाहती थी. तभी बेडरूम से पापा बाहर आये. अपनी इकलौती बेटी को देर रात से घर आने के लिए समझाते रहें और मॉर्निंग-वाक के लिए निकल गए.

“मम्मा... ये पापा सुबह-सुबह चालू हो जाते है, ये करो, ये मत करो.... ये लेट नाईट पार्टीज हमारा कल्चर नहीं है. ब्ला ब्ला ब्ला.......”

“तुम्हारी केयर करते है पापा, इसलिए…

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Added by मिथिलेश वामनकर on July 29, 2015 at 2:58am — 23 Comments

ग़ज़ल--पागल! वहाँ से दूर रख (मिथिलेश वामनकर)

2122 / 2122 / 2122 / 212     (इस्लाही ग़ज़ल)

 

बेबसी को याख़ुदा मुझ नातवाँ से दूर रख        

या तो ऐसा कर मुझे मुश्किल जहाँ से दूर रख

 

उस परीवश को घड़ी भर आज जाँ से…

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Added by मिथिलेश वामनकर on July 26, 2015 at 11:58pm — 37 Comments

अदृश्य भय - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

“आज बहुत लेट हो गई ? ’मम्मा ऑफिस से कब आएगी’, पूछ-पूछ कर परी ने कबसे परेशान कर रखा है..”

सासू माँ की बगल में सुनंदा की तीन साल की बेटी चुपचाप अपनी गुड़िया के साथ खेल में मग्न थी.

“मधुकर भैया है न, इनके दोस्त, उनके यहाँ बेटी हुई है, बस हॉस्पिटल गई थी. इनका फोन आया था कि वो नहीं जा पाएंगे इसलिए मुझे जाना पड़ा.” - सुनंदा की आवाज़ सुनकर परी दौड़ती हुई अपनी मम्मा से लिपट गई.

“अरे उसकी तो पहले ही एक लड़की है न ?... काश इस बार लड़का हो जाता.. अच्छा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 3:30am — 34 Comments

बाबुल - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

इस बार वह अकेली मायके आई थी. वो जब भी आती, बाबा से लिपट जाती. बाबा खूब दुलारते. बाबा की परी थी वो.

लेकिन इस बार बाबा बस ससुराल वालों की खैर-खबर पूछकर बाहर चले गए. माँ ने भी उसकी पसंद का भोजन पकाया था. तृप्त तो हो गई वो, मगर उसे घर के माहौल में आये बदलाव को भांपते देर न लगी. आज पूरे पंद्रह दिन हो गए थे उसे यहाँ आये हुए. बाबा बेटे की बेरोजगारी और आवारागर्दी से अब अधिक ही परेशान दिखने लगे थे. उसकी उलटी सीधी मांगों को इसी भय से मान लेते कि कहीं कुछ कर न ले. उसे भी भइया को देख कर…

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Added by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 10:30pm — 27 Comments

जो पढ़ेंगे आप वो साभार है

2122 / 2122 / 212

 

आजकल जो मित्रवत व्यवहार है

एक धोखा है नया व्यापार है

 

सर्जना भी अब कहाँ मौलिक रही

जो…

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Added by मिथिलेश वामनकर on July 8, 2015 at 5:51pm — 23 Comments

ग़ज़ल -- एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर)

मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन/  मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन  (इस्लाही ग़ज़ल)

2 1 1 2 /  1 2 1 2 /  2 1 1 2 /  1 2 1 2

 

गम दे, ख़ुशी दे ज़िन्दगी, कितनी किसे हिसाब क्या              

दरिया फ़ना हयात का,   मुझसा वहां हुबाब क्या                    …

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Added by मिथिलेश वामनकर on May 25, 2015 at 9:30am — 39 Comments

इस्लाही ग़ज़ल -- मिथिलेश वामनकर

1222---1222---1222---1222

 

करो मत फ़िक्र दुनिया की, जो होता है वो होने दो

जिन्हें कांटें चुभोना है, उन्हें कांटें चुभोने दो

 

हमारी तिश्नगी नादिम, अजी ये चाहती…

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Added by मिथिलेश वामनकर on May 20, 2015 at 10:30am — 29 Comments

ग़ज़ल -- बह्र-ए-शिकस्ता में एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर)

फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन (बह्र-ए-शिकस्ता)

1121 - 2122 - 1121 - 2122

 

मेरे नाम से न चाहे तू अगर तो मत सदा दे  

मुझे देख के मगर तू, कभी हाथ तो हिला दे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:00pm — 25 Comments

ग़ज़ल - जलता रहा रात भर... (मिथिलेश वामनकर)

212---212---212---212

 

तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर

दीप मन का भी जलता रहा रात भर

 

पा पटक के गया आज पंछी कोई…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 19, 2015 at 10:30am — 15 Comments

ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है (मिथिलेश वामनकर)

22-22-22-22-22-2

जो रह-रहकर इस सीने में उठता है

तेरा मेरा दर्द पुराना किस्सा है

 

उनकी आँखों से उतरे हर आँसू से

ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 15, 2015 at 10:30am — 17 Comments

ग़ज़ल -- अंततः विदा पाई (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते

दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते

 

प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 12, 2015 at 10:30am — 14 Comments

ग़ज़ल - लफ्ज़ सजाना पड़ता है.... (मिथिलेश वामनकर)

22—22—22—22—22—2

 

पलकों से हर लफ्ज़ सजाना पड़ता है

आँसू पीकर गीत बनाना पड़ता है  

 

मंहगाई में  झूठा रौब जताने को…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 1:30am — 16 Comments

ग़ज़ल-- 21122---21122---2112 (मिथिलेश वामनकर)

21122---21122---2112 

 

हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस

बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस

 

हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी …

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 12:56am — 31 Comments

ग़ज़ल - मैं रैक बना हूँ...... (मिथिलेश वामनकर)

22—22—22—---22—22--22

 

मीलों  पीछे सच्चाई को छोड़ गया हूँ

हत्थे चढ़ जाने के भय से रोज दबा हूँ

 

दीवारों पर अरमानों के  ख़्वाब टंगे हैं…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 5, 2015 at 7:30pm — 37 Comments

ग़ज़ल : रंगमंच ये सारा उसका, उसके ही तो है .... (मिथिलेश वामनकर)

22-22--22-22--22-22—2 

 

तुम बिन सूने-सूने लगते  जीवन-वीवन सब

साँसें-वाँसें, खुशबू-वुशबू, धड़कन-वड़कन सब

 

आज सियासत ने धोके से, अपने बाँटें…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 11:00pm — 38 Comments

ग़ज़ल-- कई पत्थर उछाले हैं....(मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

सभी खामोश बैठे हैं, सदा पर आज ताले हैं

हमारी बात के सबने गलत मतलब निकाले हैं  

 

उजड़ते शह्र का मंजर न देखें सुर्ख रू साहिब…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 10:00pm — 22 Comments

ग़ज़ल-- मैं ही फ़क़त नादान हूँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2212---2212---2212---2212

 

देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ

क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ

 

ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 25, 2015 at 11:00am — 36 Comments

ग़ज़ल -- बूँद भी नहीं मिलती...... (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती

ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती

 

ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 9:17am — 38 Comments

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