For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts Tagged 'व्यंग्य' (58)

व्यंग्य - फ्लैटों का आदर्श जुगाड़

वैसे देश में भ्रष्टाचार का बखेड़ा जहां-तहां छाया हुआ है। हर जुबान की शोभा केवल भ्रष्टाचार ही बढ़ा रहा है। कुछ महीनों पहले जब आदर्श सोसायटी के फ्लैटों का घोटाला उजागर हुआ, उसके बाद एक के बाद एक कई बडे़ भ्रष्टाचार हुए। जाहिर सी बात है, जब बात बड़ी-बड़ी हो रही हो तो छोटी बातें भला कहां ठहर सकती हैं ? खुद का नहीं, अपनों का फ्लैट के प्रति मोह ने बड़ी शख्सियतों की कुर्सी ले डूबी। ऐसा ही नजारा आदर्श सोसायटी घोटाले में दिखा। भ्रष्टाचार के बड़े भाईयों के पदार्पण बाद, कैसे कोई इन छोटे-मोटे घोटाले को याद करने… Continue

Added by rajkumar sahu on April 14, 2011 at 1:18am — No Comments

व्यंग्य - बेचारा भ्रष्टाचार !

देश, भ्रष्टाचार की आग में तप रहा है और भ्रष्टाचारी एसी की ठंडकता का मजा ले रहे हैं। इस छोर से लेकर उस छोर तक केवल भ्रष्टाचार ही छाया हुआ है। भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हो रहे हैं और हम हाथ पर हाथ धरे चुप बैठे हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार भ्रष्टाचार होने की बात उजागर हुई है, उससे भ्रष्टाचार का रूतबा बढ़ना स्वाभाविक लगता है, मगर जिनके कारण भ्रष्टाचार का जन्म हुआ है, उन्हें तो हम भुला दे रहे हैं ? केवल भ्रष्टाचार पर ही ठिकरा फोड़ रहे हैं, जबकि सब किया धराया तो उन सफेदपोशों का है, जो देश के… Continue

Added by rajkumar sahu on April 6, 2011 at 11:44pm — No Comments

व्यंग्य - फेकोलॉजी के फायदे

हाल के कुछ बरसों में अंग्रेजी ने अपनी खासी पैठ जमायी है, मगर वहीं हिंग्लिश का भी गुणगान चरम पर है। जहां देखें, वहां इंग्लिश नहीं, हिंग्लिश का जलवा। अंग्रेजी में कई लॉजीकल तथा लॉजी से जुड़े विषयों एवं तथ्यों के बारे में अक्सर पढ़ने को मिलता है। मसलन, सोशियोलॉजी, एस्ट्रोलॉजी, ऑडियोलॉजी, टेक्नालॉजी समेत तमाम इंग्लिश डिक्शनरी में शब्द हैं, जिनके हिन्दी में अपने मायने व अर्थ हैं। जब इंग्लिश के साथ हिंग्लिश का खुमारी चढ़े तो जाहिर है, कुछ तो संकर वर्ण पैदा होंगे ही। ऐसा ही एक शब्द लोगों की बोलचाल में… Continue

Added by rajkumar sahu on April 4, 2011 at 12:09am — 3 Comments

व्यंग्य - उफ ! ये क्रिकेट की किचकिच

अभी विश्वकप क्रिकेट का दौर चल रहा है। खिलाड़ी जो प्रदर्शन कर रहे हैं, वो जैसा भी हो, मगर हर कोई अपना राग अलाप रहा है। स्थिति तो ऐसी हो गई है कि जितने मुंह, उतनी बातें। विश्वकप कोई भी टीम जीते, लेकिन जुबानी जमा खर्च करने में हर कोई माहिर नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि क्रिकेट की किचकिच में देश का हर मुद्दा चर्चा से गायब हो गया है। फिलहाल क्रिकेट में सब उलझे हुए हैं। जब क्रिकेट की बात शुरू होती है तो क्रिकेटेरिया के हर बाहरी खिलाड़ी अपने तर्क का हथौड़ा लगाने तथा बातों-बातों में दो-दो हाथ आजमाने से… Continue

Added by rajkumar sahu on March 28, 2011 at 12:52am — No Comments

व्यंग्य - महंगाई का निचोड़पन

महंगाई का सिर दर्द लोगों में खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कोई दवा भी काम नहीं आ रही है और सरकार की अधमने उछल-कूद भी बेकार साबित हो रही है। एक समय दाल, भोजन की थाली से गायब हो गई। फिर बारी आई, प्याज की। प्याज ने तो इस तरह खून के आंसू रूलाए, जिसे न तो जनता भूल पाई है और न ही सरकार। जनता तो जैसे-तैसे प्याज के सदमे से उबर रही है, मगर सरकार, प्याज के दंभी रूख के कारण अभी भी विपक्ष के निशाने पर है। बेसुध महंगाई को चिंता ही नहीं कि सरकार से उसकी दुश्मनी, जनता पर कितनी भारी पड़ रही है ? सरकार के… Continue

Added by rajkumar sahu on March 15, 2011 at 1:52am — No Comments

व्यंग्य - कैसे-कैसे इनकम !

अभी कुछ दिनों से टैक्स चोरी का मामला छाया हुआ है और देश को खोखला करने वाले सफदेपोश चेहरे पर कालिख भी लगी, मगर यह बात मैं सोच रहा हूं कि देश में कैसे-कैसे इनकम के तरीके हो सकते हैं ? जब कोई टैक्स पर ही इनकम निकाल लेने की क्षमता रखता हो, वैसी स्थिति में इनकम की कोई सीमा निर्धारित करना, मुझ जैसे अदने से व्यक्ति के लिए मुश्किल लग रहा है। फिर भी एक बात तो है कि बदलते समय के साथ इनकम के दायरे बढ़ गए हैं और इनकम हथियाने वाले भी। कुछ नहीं बदला तो आम जनता की बदहाल जिंदगी और उनके हिस्से में आने वाली… Continue

Added by rajkumar sahu on March 13, 2011 at 1:20am — 1 Comment

व्यंग्य - बुखार के मौसम में...

जिस तरह परीक्षा के मौसम में छात्र, अभी दिमागी बुखार से तप रहे हैं, कुछ ऐसा ही देश-दुनिया में विश्वकप क्रिकेट का खुमारी बुखार छाया हुआ है। इन बुखारों के मौसम में शायद ही कोई बच पा रहा है और हर कोई किसी न किसी तरह से मानसिक तौर पर बुखार की चपेट में है। क्रिकेट की खुमारी तो ऐसी छाई है, जिससे सटोरियों की चल निकली है तथा वे हर गंेद व रन पर मौज कर रहे हैं। हालात यह है कि वे खाईवाली मैदान में नोटों की गड्डी की गरमाहट से तप रहे हैं। बेचारी तो देश की जनता है, जो न तो कुछ बोल सकती है और न ही हुक्मरानों… Continue

Added by rajkumar sahu on March 11, 2011 at 11:22am — 1 Comment

धनपशु का पुरस्कार

देश में अलग-अलग विधाओं व उपलब्धियों पर पुरस्कार दिए जाने की परिपाटी है। इन पुरस्कारों के लिए चुनिंदा नाम पर मुहर लगती है, मगर भ्रष्टाचार के दानव के मुखर होने के बाद इन दिनों मैं सोच रहा हूं कि देश में एक और पुरस्कार दिए जाने की जरूरत है और वो है, धनपशु पुरस्कार। देश में एक-एक कर भ्रष्टाचार की हांडी फूट रही है और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा इसरो घोटाला के भ्रष्टाचार लोक से धनपशुओं का पदार्पण हो रहा है। भ्रष्टाचार कर देश को खोखला करने वाले ऐसे धनपशुओं को… Continue

Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 12:11am — 1 Comment

विकीलिक्स ये भी बताएं

अमेरिकी वेबसाइट विकीलिक्स के क्या कहने, वह सब कुछ जानती है। किसने, किसके बारे में क्या कहा, उसे सब कुछ पता है। दुनिया में आज हर किसी की नजर जूलियन असांज की वेबसाइट पर टिक गई हैं, क्योंकि वह एक के बाद एक खुलासे करती जा रही है। बीते कुछ दिनों से ऐसा कुछ माहौल बन गया है कि जैसे कोई कुछ बता सकता है तो वह है, विकीलिक्स। यही कारण है कि मेरा भी ध्यान विकीलिक्स पर है कि अब वे क्या खुलासा करने वाली है ? वैसे विकीलिक्स, जो भी भीतर की बात बता रही है, उससे इन दिनों बड़े चेहरे माने जाने वाले कइयों की पाचन…

Continue

Added by rajkumar sahu on December 19, 2010 at 1:09pm — No Comments

काहे

नसबंदी कैम्प में आये

एक आगन्तुक को देख

डाक्टर साहब झल्लाए

उत्सुकता से चिल्लाये

और उससे पूछने लगे

भैया जहाँ तक मुझे याद है

तुम तो पिछले वर्ष भी कैम्प में आये थे

और हमसे ही अपना नसबंदी आपरेशन करवाए थे

आगन्तुक बोला डाक्टर साहब आपने ठीक फ़रमाया

मैं तो पिछले वर्ष भी आया था

और आपसे ही आपरेशन करवाया था

बदले में प्रोत्साहन राशी १५० रुपये भी पाया था

लेकिन इस बार आप प्रोत्साहन राशि काहे बढ़ाये

१५०… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 30, 2010 at 10:30am — No Comments

मालदार गरीब का मुखौटा

कई दिनों तक सोचने के बाद मेरे जेहन में ऐसा कोई विचार नहीं आ रहा था, जिसे मैं लिख सकता। पर अचानक ही सूझा कि देश में बढ़ती गरीबी पर लिखूं। सहसा ही ध्यान आया कि अब तो केवल मालदार गरीबों का ही बोलबाला है। ऐसे मालदार गरीबों से मेरा रोज ही पाला पड़ता है। जब मैं किसी गली से गुजरता हूं तो उनसे मेरा नमस्कार होता है, जिनके पास बंगला, कार समेत सभी एशोआराम के साजो-सामान हैं।

एक दिन मेरे पड़ोसी ने मुझे गरीब बनने की नसीहत दे डाली और वो सारे फण्डे बता डाले, जिससे मालदार होते हुए गरीबी का चोला ओढ़ा जा सके।… Continue

Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 1:56pm — 2 Comments

माल संस्कृति जिंदाबाद (व्यंग्य)

व्यंग्य



नया युग आ गया है, अरे भई पुराना जब और पुराना होगा तो नया नया युग तो आएगा ही, नए पैंतरे, नया दांव, नई उठापटक, और तरीके भी नए-नए। पुराने दौर में फिल्मों की नायिका गाती थी फूल तुम्हें भेजा है खत में ...क्या ये तुम्हारे काबिल है, अब की हीरोईन डांस कम एक्सरसाईज करते हुए सीधे किस पर आ जाती है, ओ बाबा लव मी, ओ बाबा किस मी। न फूल ढूंढने की जरूरत न खत लिखने की झंझट, मैगी नूडल्स की तरह, फटाफट तैयार, बस दो मिनट। बीच में न आशिक से मिलने के सपने न ही बाबुल से कोई बहानेबाजी, कि मैं तुझसे… Continue

Added by ratan jaiswani on November 15, 2010 at 9:00pm — 2 Comments

राजनीति की निराली कहानी

अभी हाल ही में मुझसे एक पुराने जान-पहचान का अरसे बाद मिला। बरसों पहले जब मैं उससे मिला करता था तो उसके पास खाने के लाले पड़े थे। वह कुछ एक आपराधिक कार्यों में भी लिप्त था। कई बार जेेेल की हवा भी खा चुका था। कल तक जो पूरे मोहल्ले को फूटी आंख नहीं सुहाता था, आज वही लोगों की आंख का तारा बना हुआ है। जब वह मुझे मिला तो मैंने उससे कुषलक्षेम पूछा। उसने बताया कि वह इन दिनों राजनीति में खूब कमाल दिखा रहा है। मैंने कहा कि ऐसा कर लिया, जो बिना किसी योग्यता के, नाम भी कमा लिया और पोटली भी भर ली, वह भी ऐसे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 7, 2010 at 2:49pm — No Comments

पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ी

आज का दौर बड़ा कठिन हो गया है। जब भी कोई भ्रष्टाचार करना हो या फिर कोई अपराध करना हो तो पहुंचे हुए होना बहुत जरूरी है। ऐसा काम कोई विशेष व्यक्ति ही कर सकता है, ऐसे महत्वपूर्ण काम करने की हम जैसे कायरों की हिम्मत कहां। बीते कुछ समय से पहुंच की महिमा बढ़ गई है, तभी तो जब भी किसी बड़े पदों पर किसी को काबिज होना होता है तो वहां उसकी योग्यता कम काम आती है, बल्कि पहुंच का पूरा जलवा होता है। पहुंच वाले का भला कोई बाल-बांका कैसे कर सकता है। हम तो अदने से और तुच्छ प्राणी हैं, जो पहुंच जैसी बात सोचकर खुश हो… Continue

Added by rajkumar sahu on November 6, 2010 at 3:08pm — No Comments

बाल्टी भर पसीने की अमर कहानी

बढ़ते तापमान और दिनों-दिन घटते जल स्तर से भले ही सरकार चिंतित न हो, मगर मुझ जैसे गरीब को जरूर चिंता में डाल दिया है। सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदें के लिए मिनरल वाटर है और कमरों में ठंडकता के लिए एयरकंडीषनर की सुविधा। ऐसे में उन जैसों के माथे पर पसीने की बूंद की क्या जरूरत है, इसके लिए गरीबों को कोटा जो मिला हुआ है। पसीने बहाने की जवाबदारी गरीबों के पास है, क्योंकि यही तो हैं, जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होते या फिर उन जैसे नुमाइंदों को फिक्र नहीं होती कि खुद की तरह तो नहीं, पर इतना जरूर सुविधा दे दे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 3, 2010 at 8:21pm — 1 Comment

सरकार के सरकारी पुलाव

सरकार के काम करने के अपने तौर-तरीके होते हैं और वह जैसा चाहती है, वैसा काम कर सकती है। भला आम जनता की इतनी हिम्मत कहां कि उन्हें रोक सके। सरकारी कामकाज में सरकार और उनके मंत्रियों की मनमानी तो जनता वैसे भी एक अरसे से बर्दाष्त करती आ रही है। जनता तो बेचारी बनकर बैठी रहती है और सरकार भी हर तरह से उनकी आंखों में धूल झोंकने से बाज नहीं आती। विकास के नाम पर सरकार के सरकारी पुलाव तो जनता पचा जाती है, मगर जब सुुरक्षा की बात आती है तो फिर जनता के पास रास्ते नहीं बचते। वैसे तो सरकार का दायित्व बनता है… Continue

Added by rajkumar sahu on November 2, 2010 at 11:37am — 1 Comment

दिखने वाले कलमकार के रूतबे

बदलते समय के साथ पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में कई बदलाव आए हैं और बाजार में जब से पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़ आई है, तब से लिखने वाले कलमकारों की रूतबे कहां रह गए हैं, अब तो दिखने वाले कलमकारों का ही दबदबा रह गया है। सुबह होते ही काॅपी, पेन और डायरी लेकर निकलने वाले कलमकारों के क्या कहने, वैसे तो ऐसे लोग अपनी पाॅकिट में कलम रखना नहीं भूलते, लेकिन यह जरूर भूले नजर आते हैं कि आखिर वे लिखे कब थे। लोगों को अपनी कलम की धार दिखाने उनके लिए जुबान ही काफी है, जहां से बड़ी-बड़ी बातें निकलती हैं। ऐसे में… Continue

Added by rajkumar sahu on October 30, 2010 at 11:54am — 1 Comment

हाय रे, भैंस की पूंछ..........

फिल्मकार भी कभी-कभी नहीं, अधिकतर अपनी फिल्मों के जरिए परिवार में परेशानियां ही पैदा कर देते हैं। बाॅबी देओल ने बरसात में नीला चष्मा पहना तो मेरा सुपुत्र ;फिलहाल सुपुत्र ही कहना पड़ेगाद्ध जिद पर अड़ गया कि उसे भी नीला चष्मा पहनना है, टीवी सीरियल पर कोमलिका नाम के कैरेक्टर को देखकर अर्धांगिनी ने चढ़ाई कर दी कि उसे भी कोमलिका जैसे गहने, सौंदर्य प्रसाधन चाहिए। इन सब परेशानियों से तो जैसे तैसे निपट लिया, पर सबसे बड़ी परेशानी पैदा की भैंस की पूंछ ने, अरे भई, मैं शाहरूख खान अभिनीत चक दे इंडिया की बात कर… Continue

Added by ratan jaiswani on October 16, 2010 at 11:30am — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service