For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माल संस्कृति जिंदाबाद (व्यंग्य)

व्यंग्य

नया युग आ गया है, अरे भई पुराना जब और पुराना होगा तो नया नया युग तो आएगा ही, नए पैंतरे, नया दांव, नई उठापटक, और तरीके भी नए-नए। पुराने दौर में फिल्मों की नायिका गाती थी फूल तुम्हें भेजा है खत में ...क्या ये तुम्हारे काबिल है, अब की हीरोईन डांस कम एक्सरसाईज करते हुए सीधे किस पर आ जाती है, ओ बाबा लव मी, ओ बाबा किस मी। न फूल ढूंढने की जरूरत न खत लिखने की झंझट, मैगी नूडल्स की तरह, फटाफट तैयार, बस दो मिनट। बीच में न आशिक से मिलने के सपने न ही बाबुल से कोई बहानेबाजी, कि मैं तुझसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने। पहले बाग-बगिया, खेत-खलिहान, छत के चैबारे और गलियों के फेरे गुलजार थे। अब पब, रेस्तरां, डांस फ्लोर, पार्क और माॅल में यह जलवा रौषन होता है। सब कुछ नया-नया है, तुरंत, फटाफट। किशोर कुमार का गाना तब की बजाय अब तर्कसंगत लगता है नाच मेरी जान फटाफट-फट, ये जमाना है दीवाना नया फटाफट-फट।
नया युग और भी ज्यादा खुला-खुला सा है। क्यों न हो लोकतंत्र में जब खुलापन बढ़ता जा रहा है तो ज्यादा खुला होना सुहाता भी है। पब, रेस्तरां, माॅल हर जगह खुलापन है। खुलापन का मतलब गलत नहीं समझना, मेरे लिखने का मतलब स्वतंत्रता है। अब लोग इंसाफ के नाम पर गाली गलौज और अश्लील टिप्पणियां सुनने में ज्यादा आनंद महसूस करते हैं, जैसा राखी का इंसाफ में दिखता है। हाॅट स्वीटीज और हैंडसम ब्वायज को खिलखिलाते हुए माॅल में देखकर दिल तो जलता ही है न, कि कहां वो जमाना जब हम सुबह से रात तक अपने दिल की प्यास मिटाने, दीदार को तरसते थे और उसके घर के सामने से कई फेरे लगाते थे और दिल गुनगुनाता था बिन फेरे हम तेरे। अब नया जमाना देखिए मोबाईल उठाया मैसेज किया, कि फलां माॅल में इतने बजे मिलेंगे। न माशूक के बाप को पता, न ही किसी भाई-बंधु को खबर और इठलाती हुई माशूक टाप-स्कर्ट में नियत समय पर माॅल में उपलब्ध, जैसे आंगनबाड़ी का रेडी टू ईट, यानि सबकुछ तैयार। न कोई डर न कोई भय। लोकलाज का जमाना ही नहीं रहा, क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
एक दिन हमें भी मिल गया माल जाने का मौका, पहुंचे तो विशाल इमारत में रौनक शुरू थी, लोग आ रहे थे जा रहे थे, कुछ हसीन चेहरे हर दो तीन मिनट में नजर आ ही जाते थे। टाप-स्कर्ट, लेगीज-कुर्ता, सलवार सूट, जींस-टी शर्ट आदि-आदि में लकदक हुस्नो-हसीनाएं और मजनूओं की जमात यहां-वहां तफरीह करते हुए टहल रहे थे। कुछ लोग एक दूसरे को छेड़ते हुए चल रहे थे। अरे यार, वो तेरी वाली अभी तक नहीं आई। मैसेज तो किया था न। यस माई डियर, मैसेज तो किया था, पर वो बोल रही थी कि कहीं और भी पार्टी में जाना था, अरे वो देखो आ रही है। हम भी उनकी बातों का मजा ले रहे थे। साथ ही सोच रहे थे कि हमारे जमाने में कितना संघर्ष करना पड़ता था प्रियतमा की एक झलक पाने को। ऐसे में बीस बरस पहले जन्म लेना अखर रहा था। अब पैदा होते तो हम भी मजे ही करते। हे भगवान, तूने ये कैसी बेइंसाफी की मेरे साथ। फिलहाल हमने भी माल में अपना दिल बहलाया, क्या करते, मर्द और घोड़ा कभी बूढ़ा तो होता नहीं, यही सोचकर खुद को तसल्ली दी। उसके बाद माल के रेस्टोरेन्ट में एक हल्के अंधेरे वाले कोने की सीट पर बैठकर उन्हीं युवा जोड़ों ने क्या-क्या किया, यह लिखने में मुझे शर्म आ रही है, अरे भाई आखिर मुझमें तो थोड़ी-बहुत शर्म बाकी तो है न। लेकिन समझ जाईए कि उन लोगों ने जवानी का भरपूर आनंद लिया।
लौटते वक्त बस यही खयाल आ रहा था कि जिस खुलेपन के लोग हिमायती होने लग गए हैं, उससे परिवार के सदस्यों के बीच की मर्यादा शून्य तो हो रही है। टीवी चैनल्स पर परोसी जा रही अश्लीलता अब शर्म का विषय रही नहीं, इसलिए मां-बाप, बच्चे साथ में बैठकर कुछ भी देख सकते हैं, देखते ही हैं। क्योंकि हमारे मशहूर फिल्म अभिनेता आमिर खान ने भी 3 इडियट में बलात्कार शब्द का इतनी बार प्रयोग करवाया कि फिल्म देखने वाले 8-10 बरस के बच्चे भी इससे वाफिक होने लगे हैं। आखिर उन्हें भी मालूम होना चाहिए कि जिस देश में लोग खुलेपन के नाम पर संस्कृति से बलात्कार करने में लगे हुए हैं, वह चीज क्या है। इस उम्र में जान जाएंगे तभी तो भविष्य में सोच समझकर कदम उठाएंगे। सोच में डूबा हुआ मैं अचानक ही धरना दे रहे हड़तालियों की तरह चिल्ला पड़ा, माल संस्कृति जिंदबाद, माल संस्कृति जिंदाबाद। बाईक चला रहा मित्र हड़बड़ाया अरे क्या कर रहा है यार, पागल हो गया है क्या। सच तो यही है कि नए युग की नित नई संस्कृति, संस्कृति की दुहाई देने वाले हम जैसों को पागल करके ही छोड़ेगी।

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by rajendra kumar on March 5, 2011 at 1:28pm
माल संस्‍कति ने पूरी तरह से आपकी आंखे खोलकर रख दी है, कि अब पुराना जमाना मसलन आपका जमाना नहीं रह गया है, अब के बच्‍चे यानी देश के भविष्‍य कुछ ज्‍यादा ही होनहार हो गए है, कुल मिलाकर कहा जाए तो वर्तमान आधुनिक परिवेश में देश के भविष्‍य पहले अपना भविष्‍य सुधार ले, इसके बाद ही वे देश की भविष्‍य संवारे, खैर मां बाप भी चाहते है कि उनके बच्‍चे तरक्‍की करें, तो इससे हमें क्‍या, देश के हजारों अंधों की तरह हम भी आंख मूंदकर जीने को तैयार है, ताकि देश के भविष्‍य का भविष्‍य न बिगडे,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 9:41pm
रतन जैसवानी जी, आपने माल संस्कृति का जो चित्रण किया है, उसे पढ़ कर बहुत लोग सोचने पर मजबूर हो जायेंगे कि यार सचमुच थोड़ा जल्दी जन्म ले लिया, हा हा हा हा , बहुत ही बेहतरीन कलम चलाई है आपने , बधाई है इस व्यंगात्मक शैली मे लिखने के लिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service