मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक .
वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक .
आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक .
उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक .
दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक .
deepzirvi 9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:57am —
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अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ
दरया होकर भी प्यासा हूँ ।
मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,
बेशक मै सब में हंसता हूँ ।
तू सेठानी बेशक बेशक ,
मैं याचक दर पर आया हूँ ।
दाज के लिए दरवाजे पर
बैठी बेटी का पापा हूँ ।
बूढे बाप के खाली बेटे की
लाश उठाते में हाफा हूँ ।
श्वासों की हूँ आवागमन मैं
लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।
--
deepzirvi9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:56am —
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चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?
हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .
था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,
तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .
खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,
मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .
मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है.
दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;
तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों…
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Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am —
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हमे आजमाने की कोशिश न कर
जरा दूर जाने की कोशिश न कर
अगर साथ चलने गवारा न हो .
(तो) बहाने बनाने की कोशिश न कर.
मेरा दामन तुम्हारे लिए ही बना ,
ये कह कर लुभाने की कोशिश न कर .
सिर्फ तेरे आंसू ही मांगे हैं ,अब,
देख ले भाग जाने की कोशिश न कर .
तेरा इतिहास का पोथा थोथा छोडो ,
'आज ' से भाग पाने की कोशिश न कर .
कल अँधेरे में थे; दीप अब है जला .
दीप से मुंह फिराने की कोशिश न कर.
दीप…
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Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am —
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हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है,
मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है.
मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर,
ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखता है.
पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी,
मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है.
सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस,
हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है.
"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम,
इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है.
Added by Pallav Pancholi on October 12, 2010 at 12:00am —
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शैतान अपना काम बनाकर चला गया
आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया
फिर आदतन वो मुझको सताकर चला गया
हँसता हुआ जो देखा रुलाकर चला गया
उल्फत का मेरी कैसा सिला दे गया मुझे
पलकों पे मेरी अश्क सजाकर चला गया
"जाने से जिसके नींद न आई तमाम रात"
वो कौन था जो ख्वाब में आकर चला गया
बदनाम कर रहा था जो मुझको गली गली
देखा मुझे तो नज़रें झुकाकर चला गया
कातिल को जब वफाएं मेरी याद आ गयीं
तुरबत पे मेरी अश्क बहाकर चला…
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Added by Hilal Badayuni on October 11, 2010 at 11:00pm —
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दूर तुम हो पास अब तन्हाई है
ज़िंदगी किस मोड़ पर ले आई है
हुस्न वाले चैन छीने दर्द दें
अक्ल अब जा के ठिकाने आई है
काटनी होगी फसल तन्हाई की
पर्वतों सी हो गयी ये राई है
रात आधी चाँद पूरा नींद गुम
चोट दिल की भी उभर सी आई है
आजकल क्यूँ गुम से रहते हो बड़े
मुझसे पूछे रोज मेरी माई है
तुम न हो तो फ़िक्र करते सब मेरी
दोस्त पूछे, ध्यान रखता भाई है
दिल न लगता है किसी भी अब जगह
दिल लगाने की सज़ा यूँ पाई…
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Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 11, 2010 at 1:00pm —
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ज़माना याद रखे जो ,कभी ऐसा करो यारो .
अँधेरे को न तुम कोसो, अंधेरों से लड़ो यारो .
निशाने पे नज़र जिसकी ,जो धुन का हो बड़ा पक्का ;
'बटोही श्रमित हो न बात जाये जो ' बनो यारो .
जगत में भूख है ,तंगी - जहालत है जहां देखो ;
करो सर जोड़-कर चारा चलो झाडू बनो यारो .
रखे जो आग सीने में, जो मुख पे राग रखता हो ;
अगर कुछ भी नही तो राग दीपक तुम बनो यारो .
नदी भी धार बहती है,लहू भी धार बहती है ,
जो धारा प्रेम की लाये वो भागीरथ बनो यारो…
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Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:59pm —
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खिलौना अपने दिल का हम तुम्हे फौरन दिला देते;
तुम्हे एस की जरूरत है;अगर तुम ये बता देते .
कभी इस से कहा तुम ने कभी उस से कहा तुम ने ;
मुझे अपना समझ क्र तुम कभी दिल की सुना देते .
deepzirvi@yahoo.co.in
Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:55pm —
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सूरजों की बस्ती थी, जुगनुओं का डेरा है ,
कल जहा उजाला था अब वहां अँधेरा है.
राह में कहाँ बहके, भटके थे कहाँ से हम ,
किस तरफ हैं जाते हम, किस तरफ बसेरा है.
आदमी न रहते हों बसते हों जहां पर बुत ,
वो किसी का हो तो हो, वो नगर न मेरा है.
रहबरों के कहने पर रहजनों ने लूटा है ,
रौशनी-मीनारों पे ही बसा अँधेरा है .
मछलियों की सेवा को जाल तक बिछाया है ,
आजकल समन्दर में गर्दिशों का डेरा है.
दीप को तो जलना है, दीप तो जलेगा ही…
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Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:30pm —
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याद जाने कहाँ खो गयी,
बात आयी गयी हो गयी .
दिन में हल मैं चलाता रहा,
रात में बीज वो बो गयी.
बंद थीं मछलियाँ जार में,
तितली पानी से पर धो गयी.
बाद मुद्दत के आयी खुशी ,
मेरे हालात पर रो गयी.
तुमने बच्ची को डाटा बहुत ,
लेके टेडी बीयर सो गयी.
उसकी यादों में खोया था मैं,
इसका तस्कीन कर वो गयी.
एक नौका नदी से मिली ,
और मंझधार में खो गयी.
माँ ने कुछ भी तो पूछा न था,
कैसे मन को मेरे टो…
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Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 10:00am —
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उसकी हद उसको बताऊंगा ज़रूर,
बाण शब्दों के चलाऊंगा ज़रूर.
इस घुटन में सांस भी चलती नहीं,
सुरंग बारूदी लगाऊंगा ज़रूर.
यह व्यवस्था एक रूठी प्रेयसी,
सौत इसकी आज लाऊंगा ज़रूर.
सच के सारे धर्म काफिर हो गए,
झूठ का मक्का बनाऊंगा ज़रूर.
इस शहर में रोशनी कुछ तंग है,
इसलिए खुद को जलाऊंगा ज़रूर.
आस्था के यम नियम थोथे हुए,
रक्त की रिश्वत खिलाऊंगा ज़रूर.
आख़री इंसान क्यों मायूस है ,
आदमी का हक दिलाऊंगा…
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Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 9:30am —
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कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,
शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.
मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,
सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.
लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,
बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.
ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,
आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .
मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,
सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.
बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,
कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.
मेरी…
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Added by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 8:30am —
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दराज़ पलकें, हसीन चेहरा, वो दिलकशी और वो जो नजाकत |
कोई अगर लाजवाब हो तो, वो आवे देखे जवाब अपना ||
न मयकदा कोई रहना बाकी, न मयकशी न कहीं हो साकी |
अगर पलट दे मेरा ये दिलबर, जरा रुखों से नकाब अपना ||
खनकती आवाज़ शीशे जैसी, लचकती सी चाल हाय रब्बा |
वो माथे पे झूले नाग बच्ची, समझ के जुल्फों को नाग अपना ||
किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है, किसी तस्सवुर की है हकीकत ||
अगर कभी उसको देख ले तो,…
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Added by DEEP ZIRVI on October 8, 2010 at 7:00am —
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राज़ दिल का छुपाया बहुत है
आंसुओं को सुखाया बहुत है
मै समझता था जिसको शनासा
आज वो ही पराया बहुत है
मैंने जिसको हसाया बहुत था
उसने मुझको रुलाया बहुत है
अब कोई और खेले न दिल से
ये किसी ने सताया बहुत है
कर चला है वो नाराज़ मुझको
मैंने जिसको मनाया बहुत है
उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै
वैसे उसने भुलाया बहुत है
तेरी संजीदगी कह रही है
तू कभी मुस्कुराया बहुत है
क्या हुआ जो समर अब नहीं…
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Added by Hilal Badayuni on October 7, 2010 at 11:05pm —
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सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे
आईने पर है जमी धुल जो सफा कर दे
नफस में कीना है ; सीने में है जलन नफरत ;
इन आफतों को क्रीम मौला तू दफा कर दे ..
नफस बीमार है चंगा तो बशर दीखता है ;
तू नफस और बशर दोनों को चंगा कर दे
अपने ही हाथों से कर डालें ना खुद को घायल ;
तू भले और बुरे से हमें आगाह कर दे
बन के मजनूं न फिरे कोई जख्म न खाए ;
सब कि आगोश में तौफीक की लैला कर दे
खुद से बेगाना हुआ फिरता है जो ,तू खुद ही ;
उन को खुद से मिला कर के तू…
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Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 10:43pm —
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तुम हम से मिले हो तो मिल के ही चले चलना ;
मेरे साथ साथ उगना मेरे साथ साथ ढलना .
मेरी बांसुरी मनोहर ,मनमीत मेरी श्यामा ;
मेरे श्वास श्वास लेकर बन रागनी मचलना .
पग बांध अपने नूपुर मृग नयनी चली आओ ;
आ झुलाओ अपने पी को तेरे प्रेम का ये पलना .
ओ रागनी मनोहर ,ओ दामनी ओ चपला ;
तेरे केश मेघ काले तेरा मुखड़ा चाँद-ललना.
घनघोर काली रैना में मधुर तेरे बैना;
मनमोर नाचते हैं तेरी ताल न बदलना .
DEEPZIRVI9815524600
Added by DEEP ZIRVI on October 6, 2010 at 8:03pm —
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ज़िन्दगी, बज्म तुम्हारी सजाने आये हैं .
किया था वादा वही तो निभाने आये हैं .
दरीचे खोल के बैठो हवा से बात करो ;
वस्ल के नामे अजी लो सुहाने आये हैं .
कभी भी आरजुओं को फरेब मत देना ;
फकीर रमता ये ही तो बताने आये हैं .
कभी कंगाली थी तेरे दीदार की छाई ;
तुम्हारे वस्ल के देखो खजाने आये हैं .
गई वो रात, अजी दिन सुहाने आये हैं.
सुहानी दीद के देखो बहाने आये हैं.
वस्ल की रात में जिसको जलाया जाता है ;
वही तो दीप जी हम भी जलाने आये हैं
दीप…
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Added by DEEP ZIRVI on October 6, 2010 at 8:02pm —
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सबके होते हुए वीरान मेरा घर क्यूं है,
इक ख़मोशी भरी गुफ़्तार यहां पर क्यूं है !
एक से एक है बढ़कर यहां फ़ातेह मौजूद,
तू समझता भला ख़ुद ही को सिकन्दर क्यूं है !
वो तेरे दिल में भी रहता है मेरे दिल में भी,
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मन्दर क्यूं है !
सब के होटों पे मुहब्बत के तराने हैं रवाँ,
पर नज़र आ रहा हर हाथ में ख़न्जर क्यूं है !
क्यूं हर इक चेहरे पे है कर्ब की ख़ामोश लकीर,
आंसुओं का यहां आंखों में समन्दर क्यूं है !
तू…
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Added by moin shamsi on October 6, 2010 at 5:44pm —
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इस टिप्पणी के साथ कि चाहें तो इसे अ-कविता की तरह अ-ग़ज़ल मान लें-
इतना गुलज़ार सा जेलर का ये दफ्तर क्यूं है,
आरोपी छूट गया और गवाह अन्दर क्यूं है.
सुलह को मिल रहें हैं मौलवी और पंडित भी ,
सियासी पार्टियों में भेद परस्पर क्यूं है.
अगर गुडगाँव नोयडा हैं सच ज़माने के ,
कहीं संथालपरगना कहीं बस्तर क्यूं है.
रंग केसर के जहां बिखरे हुए थे कल तक ,
उन्हीं खेतों में आज फ़ौज का बंकर क्यूं है.
जबकि बेटों के लिए कोई नहीं है…
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Added by Abhinav Arun on October 6, 2010 at 4:00pm —
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