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ग़ज़ल:इतना गुलज़ार सा..

इस टिप्पणी के साथ कि चाहें तो इसे अ-कविता की तरह अ-ग़ज़ल मान लें-

इतना गुलज़ार सा जेलर का ये दफ्तर क्यूं है,
आरोपी छूट गया और गवाह अन्दर क्यूं है.

सुलह को मिल रहें हैं मौलवी और पंडित भी ,
सियासी पार्टियों में भेद परस्पर क्यूं है.

अगर गुडगाँव नोयडा हैं सच ज़माने के ,
कहीं संथालपरगना कहीं बस्तर क्यूं है.

रंग केसर के जहां बिखरे हुए थे कल तक ,
उन्हीं खेतों में आज फ़ौज का बंकर क्यूं है.

जबकि बेटों के लिए कोई नहीं है बंदिश,
बेटी बाहर है तो सर पर उठाया घर क्यूं है.

वो तो जी जान से दौड़ा और ऊंचा कूदा भी,
फिर भी अफसर की नज़र उसकी जेब पर क्यूं है.

योजनाओं की लोरी सुनकर सो गए बच्चे ,
घर में खाली पड़ा हर टीन कनस्तर क्यूं है.

यूं तो हर शहर में होते हैं हादसे दस बीस,
धंस गयी दिल्ली में सड़क तो वो खबर क्यूं हैं.

तंग फ़िक्री की गली जबकि है आखिर में तय,
शहर के बीच दिखावे का गोलंबर क्यों है.

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 8, 2010 at 2:37pm
श्री आशीष जी हौसला बढाने के लिए दिल से आभार .तरही के दौरान मैं नहीं था पहले से कुछ शेर पोस्ट किये थे जल्दी में ,बाद में लगा जो लिखा है सामने लाऊँ.
Comment by आशीष यादव on October 8, 2010 at 2:19pm
Arun ji aap ka andaz hr baar mujhe pasand aata hai. Hr baar nya smawesh dekhne ko milta h. Ek alag dhang se aap kahte h. Ise aapne mushayare me kyo nhi dali.
Comment by Abhinav Arun on October 8, 2010 at 2:17pm
भाई जी ! आप सबको धन्यवाद मेरी " ग़ज़ल " पसंद करने के लिए .नवीन जी इस तरही मुशायरे के दौरान मैं अपने गांव गया था .नेट से दूर खेतों के पास . और तरही में भेजी गयी गज़ल मैंने एडमिन को समय से पूर्व ही पोस्ट करने के लिए भेज दिया था .अतः इस बार मैं लाइव नहीं रहा मुशायरे के दौरान .आने पर आप सबको पढ़ा आपने ढेर सारे कामयाब शेर कहे बधाई . अतः इस दौरान जो शेर कहे उन्हें बाद में भेजा .
Comment by DEEP ZIRVI on October 6, 2010 at 8:08pm
YE AGZL HAI TB BHEE GZL SE BEHTR , SAADHU SADHU

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2010 at 7:10pm
वोहो, क्या बात है,वाह वाह वाह, किस शेर को बहुत बढ़िया कहूँ, यहाँ तो सभी एक पर एक है, मतला ही बता दिया कि कुछ जबरदस्त हनी वाला है, आरोपी छुट गया और गवाह अन्दर है, बहुत खूब आज कि यही है हालत,

दूसरा शे'र तो बिलकुल ताजा है, सियासी पार्टियों का काला चेहरा दिखाता हुआ,
पूरी ग़ज़ल एक अलग रंग मे, बधाई कुबूल करे,

कृपया ध्यान दे...

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