For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

राज़ दिल का छुपाया बहुत है
आंसुओं को सुखाया बहुत है

मै समझता था जिसको शनासा
आज वो ही पराया बहुत है

मैंने जिसको हसाया बहुत था
उसने मुझको रुलाया बहुत है

अब कोई और खेले न दिल से
ये किसी ने सताया बहुत है

कर चला है वो नाराज़ मुझको
मैंने जिसको मनाया बहुत है

उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै
वैसे उसने भुलाया बहुत है

तेरी संजीदगी कह रही है
तू कभी मुस्कुराया बहुत है

क्या हुआ जो समर अब नहीं है
इस शजर का तो साया बहुत है

तुम "हिलाल"अपने दिल को टटोलो
कोई इसमें समाया बहुत है

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hilal Badayuni on October 10, 2010 at 10:28pm
shukriya deep zirvi sahab
Comment by DEEP ZIRVI on October 9, 2010 at 11:55pm
क्या हुआ जो समर अब नहीं है
इस शजर का तो साया बहुत है..waaah
Comment by Hilal Badayuni on October 9, 2010 at 9:30pm
shukriya bhai ratnesh ye sab kuch aap logo k liye hi hai mai ummed kerta hu isi tarah aap mere kalaam pe apne comments dete rahenge
Comment by Ratnesh Raman Pathak on October 9, 2010 at 9:29pm
bhai hilal jee apki ye gajal mujhe bahut achhi lagi,apke is gajal se dard bhari aaawaje aa rahi hai.thanks a lot---
ratnsh raman pathak
Comment by Hilal Badayuni on October 9, 2010 at 9:17pm
shukriya bhai preetam aur rakesh ji
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 9, 2010 at 9:00pm
राज़ दिल का छुपाया बहुत है
आंसुओं को सुखाया बहुत है

मै समझता था जिसको शनासा
आज वो ही पराया बहुत है
BAHUT KHUB HILAL BHAI...LAJAWAB PANKTI HAI YE......BAHUT BAHUT BADHAI IS GAZAL KE LIYE...AISEHI LIKHTE RAHEN...
Comment by Hilal Badayuni on October 9, 2010 at 10:24am
shukriya ganesh bhai baagi ji

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2010 at 9:10am
मै समझता था जिसको शनासा
आज वो ही पराया बहुत है,
वाह वाह हिलाल भाई , बहुत खूब , बढ़िया ग़ज़ल पढ़ा है आपने, किसी ने शायद ठीक ही कहा है ....................
मुझे तो अपनों ने मारा गैरों मे कहा दम था,
मेरी किस्ती वही डूबी जहाँ पानी कम था ,

बधाई हिलाल भाई इस खुबसूरत ग़ज़ल पर ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service