Added by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2018 at 9:59am — 8 Comments
मां, गुजराती चादर दे दे!
मैं 'फ़ादर' सा बन जाऊं!
जनता अपने राष्ट्र की
स्वामियों, बापुओं सा आदर दे दे!
अंग्रेज़ों सा व्यापारी बन कर,
तोड़ूं-फोड़ूं और मारूं-काटूं
विदेशी सूट पहन इतराऊं!
मां किसी 'गांधी' सी 'चादर' ओढ़ाकर
तस्वीरें, मूर्तियाँ मेरी सजवादे
मैं भी जिंदा लीजेंड, किंवदंती कहलाऊं!
मुग़ल, अंग्रेज़, हिटलर, कट्टर
सब से शिक्षायें ले लेकर
आतंक कर आतंकी न कहलाऊं !
मां 'धर्म' की बरसाती दे दे
बदनामियों सा न भीग जाऊं!
मां…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2018 at 6:38am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2018 at 7:59pm — 11 Comments
किसी बुरी शै का असर देखता हूं ।
जिधर देखता हूं जहर देखता हूं ।।
रोशनी तो खो गई अंधेरों में जाकर।
अंधेरा ही शामो शहर देखता हूं ।।
किसी को किसी की खबर ही नहीं है।
जिसे देखता हूं बेखबर देखता हूं ।।
ये मुर्दा से जिस्म जिंदगी ढो रहे हैं।
हर तरफ ही ऐसा मंजर देखता हूं ।।
लापता है मंजिल मगर चल रहे हैं।
एक ऐसा अनोखा सफर देखता हूँ।।
चिताएं चली हैं खुद रही हैं कब्रें।
मरघट में बदलते घर देखता हूं ।।
परेशां हूं दर्पण ये क्या देखता…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on August 1, 2018 at 9:56pm — 4 Comments
क्षण-प्रतिक्षण,जिंदगी सीखने का नाम
सबक जरूरी नहीं,गुरु ही सिखाए
जिससे शिक्षा मिले वही गुरु कहलाये
जीवंत पर्यन्त गुरुओं से रहता सरोकार
हमेशा करना चाहिए जिनका आदर-सत्कार
प्रथम पाठशाला की गुरु माँ बनी …
ContinueAdded by babitagupta on July 27, 2018 at 1:00pm — 2 Comments
बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से
बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागोई में
लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में
भटकती थी अपने आपको तलाशने में
उलझती थी, अपने सवालों के जबाव ढूँढने में
तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की
उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की
दासता की जंजीरों को तोड़
,लालायित हूँ मुक्त आकाश में उड़ने को
लेकिन अब उठ गए इन्क्लाबी कदम
बेखौफ हूँ,कोइ…
ContinueAdded by babitagupta on July 26, 2018 at 6:00pm — 4 Comments
सबको तो
डस रहे हैं, फंस रहे हैं
असरदार या बेअसर?
नकली या असली?
देशी, विदेशी या एनआरआई?
मुंह में सांप
हाथों में सांप
बदन में सांप
गले पड़े सांप
सिर पर सांप
सांपों के तालाबों से!
मानव समाज में
शब्दों, जुमलों, नारों,
फैशन, गहने या हथियार रूपेण!
या प्रतिशोध लक्षित
मानव-बम सम!
पर कितना असर
जनता पर, सरकार पर?
केवल घायल लोकतंत्र
सपेरों के मंत्र
यंत्र, इंटरनेट
और सोशल मीडिया!
पनीले या…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 22, 2018 at 12:00pm — 2 Comments
कई दिनों से तलाश रहा हूँ
एक भूली हुई डायरी
कुछ कहानियाँ
जो स्मृतियों में धुंधली हो गई हैं |
कई सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद
मुड़ कर देखता हूँ
कदमों के निशान
जो ढूढें से भी नहीं मिलते हैं |
कामयाबी के बाद बाँटना चाहता हूँ
हताशा और निराशा
के वो किस्से
जो रहे हैं मेरी जिंदगी के हिस्से |
पर उसे सुनने का वक्त
किसी पे नहीं है
और ये सही है की
नाकामयाबी सिर्फ अपने हिस्से की चीज़ है…
ContinueAdded by somesh kumar on July 17, 2018 at 8:30am — 1 Comment
जिंदगी यूँ तो लौट आएगी
पटरी पर
पर याद आएगा सफ़र का
हर मोड़
कुछ गडमड सड़कों के
हिचकोले
कुछ सपाट रस्तों पर बेवजह
फिसलना
और वक्त-बेवक्त तेरा
साथ होना |
याद आएगा एक पेड़
घना छाँवदार
जिसके आसरे एक पौधा
पेड़ बना |
मौसमों की हर तीक्ष्णता का
सह वार
पौधे को सदा दिया
ओट प्यार |
निश्चय ही मौसम बदलने से
होगा कुछ अंकुरित
पर वो रसाल है मेरी जड़ो…
ContinueAdded by somesh kumar on July 16, 2018 at 10:30am — 6 Comments
हँसमुखी चेहरे पर ये कोलगेट की मुस्कान,
बिखरी रहे ये हँसी,दमकता रहे हमेशा चेहरा,
दामन तेरा खुशियों से भरा रहे,
सपनों की दुनियां आबाद बनी रहे,
हँसती हुई आँखें कभी नम न पड़े,
कालजयी जमाना कभी आँख मिचौली न खेले,…
ContinueAdded by babitagupta on July 8, 2018 at 5:00pm — 9 Comments
नींद आँखों से खफा –खफा है /
चली है ठंडी हवा वो याद आ रह है /
लिखा था मौसम किसी कागज़ पे/
टहलती आँख लफ्ज़ फड़फड़ा रहा है /
सिलवटें बिस्तरों पे नहीं सलामत /
दिल का साँचा हुबहू बचा हुआ है/
नक्ल करके नाम तो पा सकता हूँ /
पर मेरा वजूद इसमें क्या है?
वो आज भी रहता है मेरे आसपास /
मेरे बच्चे में मुस्कुरा रहा है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित…
ContinueAdded by somesh kumar on July 5, 2018 at 7:24am — 5 Comments
घुमड़-घुमड़ बदरा छाये,
चम-चम चमकी बिजुरियां,छाई घनघोर काली घटाएं,
घरड-घरड मेघा बरसे,
लगी सावन की झड़ी,करती स्वागत सरसराती हवाएं........
लो,सुनो भई,बरखा बहार आई......
तपती धरती हुई लबालव,
माटी की सौंधी खुश्बू,प्रफुल्लित बसुन्धरा से संदेश कहती,
संगीत छेड़ती बूंदों की टप-टप ,
लहराते तरू,चहचहाते विहग,कोयल मधुर गान छेड़ती.......
लो सुनो भई,वरखा बहार आई.......
छटा बिखर गई,मयूर थिरक उठा-सा,
सुनने मिली झींगरों की झुनझुनी,पपीहे…
ContinueAdded by babitagupta on June 28, 2018 at 8:30pm — 9 Comments
संवेदनाओं की पथरीली चोटी पर बैठकर
अपने रिसते हुए घावों को देखता हुआ
ये कौन है
जो कभी कुत्ते की तरह
जीभ से उन्हें चाटता है
तो कभी मुट्ठी में नमक भर कर
उनमें उड़ेल देता है
और फिर एक तपस्वी की तरह
ध्यान लगाकर सुनता है
अपनी आहों और कराहों को?
पत्थरों को उठा कर
अपने लहू में डुबा कर
भावनाओं की लहरों पर बैठे हुए
कौन लिख रहा है उनसे
अपना मृत्यु लेख?
किसी फन्दे पर लटक कर
एक पल में शान्ति से गुज़र जाने की अपेक्षा…
Added by Mahendra Kumar on June 27, 2018 at 9:03am — 4 Comments
विकास के नाम पर
व्यापार के दाम पर,
धनाढ्य, नेता, मंत्री,
बाबाजी सब काम पर!
इंसानियत होम कर,
अनुलोम-विलोम सा
हेर-फेर कर!
बच्चों, नारी,
ग़रीब, किसान
घेर कर!
पड़ोसियों से बैर कर,
रिश्ते-नातों को
तजकर, बेच कर!
या रिश्तों के नाम
जाम, दाम, नाम
लगाकर,
दूर के आभासी
अनजाने से
रिश्ते थाम कर,
मर्यादाओं को लांघ कर,
मानव-अंग उघाड़ कर,
येन-केन-प्रकारेण
अंग-निर्वस्त्रीकरण कर,
निज-स्वतंत्रता,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 27, 2018 at 6:00am — 2 Comments
माता की ममता की तुलना , कभी कोई कर सकता नहीं | |
जग में जो खुशी माँ से मिले , कोई और दे सकता नहीं | |
हर कोई माँ से ही आया , मां बिना कोई आया नहीं | |
ये ज़िंदगी जो माँ से मिली , कोई कर्ज भर पाया नहीं | |
प्रसव में जो पीड़ा माँ सहे , पिता उसे कहाँ बाँट पाये | |
सटा कर रखे जो सीने से , ये मजा शिशु को कहाँ आये | |
अपने गीले में… |
Added by Shyam Narain Verma on June 14, 2018 at 3:51pm — No Comments
क्षण क्या हैं??????
एक बार पलक झपकने भर का समय....
पल-प्रति-पल घटते क्षण में,
क्षणिक पल अद्वितीय,अद्भुत,बेशुमार होते,
स्मृति बन जेहन में उभर आये,वो बीते पल,
बचपन का गलियारा,बेसिर - पैर भागते जाते थे,…
ContinueAdded by babitagupta on May 28, 2018 at 4:17pm — No Comments
दहक रहा हर कोना कोना , सूरज बना आग का गोला | |
मुश्किल हुआ निकलना घर से , लू ने आकर धावा बोला | |
तर बदन होता पसीने से , बिजली बिना तरसता टोला | |
बाहर कोई कैसे जाये , विकट तपन ने जबड़ा खोला | |
पशु पक्षी ब्याकुल गरमी से , जान बचाते हैं छाया में | |
चले राही लाचार होकर , आग लगी है जब काया में | |
तेज… |
Added by Shyam Narain Verma on May 26, 2018 at 3:30pm — 2 Comments
डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
शारीरिक नुमाइश हुई बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
योग ग़ज़ब के हो रहे वैश्वीकरण में
मकड़जाले छाते रहे सशक्तिकरण में
छाले पड़े आहारनलिकाओं में
ताले संस्कृति और संस्कारों में
अधोगति, पतन सतत् रहे बहुआयामी
हैरत है, कहें किसमें खामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
शिक्षा, भिक्षा, रक्षा सभी बहुआयामी
लेन-देन, करता-धरता, कर्ज़दाता भी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 9:00pm — 4 Comments
मुंह अँधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी,
घंटी सुन फुर्ती आ गई,नही तो,उठाने वाले की शामत आ गई,
ड्राईंग रूम की शोभा बढाने वाला,कचड़े का सामान बन गया,
जरूरत अगर हैं इसकी,तो बदले में कार्डलेस रख गया,
उठते ही चार्जिंग पर लगाते,तत्पश्चात मात-पिता को पानी पिलाते,…
ContinueAdded by babitagupta on May 17, 2018 at 12:00pm — No Comments
छोटा-सा,साधारण-सा,प्यारा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,
अपने पन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,
परिवार के वो दो,मजबूत स्तम्भ बावा-दादी,
आदर्श गृहणी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,
बुआ-चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,
बुजुर्गों की नसीहत…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:48pm — 1 Comment
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