For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Somesh kumar's Blog (121)

दीवारों में दरारें-2 सोमेश कुमार

साल पहले विद्यालय दफ्तर में

“सर, मैं अंदर आ सकती हूँ ?”

“बिल्कुल !” मि.सुरेश एक बार उस नवयुवती को ऊपर से नीचे तक देखते हैं और फिर उसकी तरफ प्रश्नसूचक निगाह से देखते हैं |

“सर ,मुझे इस स्कूल में नियुक्ति मिली है |” वो बोली

“बहुत बढ़िया !बैठो अभी प्रधानाचार्य आते हैं तो आपको ज्वाइन करवाते हैं |” प्रफुल्लतापूर्वक मि.सुरेश बोले

“वैसे कब और कहाँ से की है बी.एड.?” उन्होंने अगला सवाल किया

“इसी साल,कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से - -“उसने बड़ी सौम्यता से जवाब…

Continue

Added by somesh kumar on March 13, 2015 at 11:18am — 17 Comments

दीवारों में दरारें

दीवारों  में दरारें-1  

दीवारे  और दरारें-1  

“कभी सोचा था कि ऐसे भी दिन आएँगे |हम लोग इनके फंक्शन में शामिल होंगे !”मि.सुरेश ने कोलड्रिंक का सिप लेते हुए पूरे ग्रुप की तरफ प्रश्न उछाला |

“मुझे लग रहा है इस वाटिका की सिचाईं नाले के गंदे पानी से करते हैं |कैसी अज़ीब सी बदबू आ रही है !”नाक पे हाथ रखते हुए राजेश डबराल बोले |

“पैसे आ जाने से संस्कार नहीं बदलते जनाब !इन्हें तो गंदगी में रहने की आदत है|” मि.सुरेश ने जोड़ा |

“सी S S ई |किसी ने सुन लिया…

Continue

Added by somesh kumar on March 12, 2015 at 10:30am — 11 Comments

सामने आ रे !

सामने आ रे !

रात्रि-आकाश में अक्सर

तुम्हें निहारे

कहाँ छुपे हो प्रियम्वदा

होकर तारे ?

बचपन से कहते आए हैं

सब प्यारे

इस लोक से जाने वाले हो

जाते हैं तारे !

भीड़ भरे आकाश में नयन

खोज के हारें

शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो

करो  इशारे |

टूटता विश्वास का पुंज देख के  

टूटते तारे

है व्याकुल हृदय की क्रन्दना

सामने आ रे !

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

Added by somesh kumar on March 7, 2015 at 9:51am — 7 Comments

अभिव्यक्तियाँ

अभिव्यक्तियाँ

किस्से कहानी कविताएँ 

सब अभिव्यक्तियाँ जीवन की 

कहाँ तक साधू अपेक्षायें 

गुरुजन गुणीजन की ?

मन की बेकली है 

लिखने का प्रथम उदेश्शय 

हो जाऊ सफल जो मानकों

पर चलूँ /दूँ गहन संदेश |

बिन पथों से डिगे 

होंगी कैसे राहे प्रशस्त 

नव सृजन की ?

अलंकारों से छंदों को साधना 

क्या संकुचित बस यहीं तक 

साहित्य की आराधना 

अर्थ क्या रह जाएगा 

जो ना हो इनमें 

जीवन-तत्व अवशिष्ट…

Continue

Added by somesh kumar on March 6, 2015 at 8:54am — 5 Comments

शादी की दावत -2

शादी की दावत-2

द्वार पर चुनमुनिया थी |

“भईया आप लोग बारात नहीं चलेंगे |उहाँ सब लोग तैयार हो गए हैं |बैंड-बाजा वाले भी आ गए हैं |सभी औरत लोग लावा लेने जा रही हैं |”

कितना बोलती है तू !क्या तू भी बारात चेलेगी ?मैंने कहा

“और क्या ?उहाँ चलकर फुलकी ,रसगुल्ला ,टिकिया खाने वाला भी तो चाहिए ना |”

“अच्छा तू चल ,हम लोग नया कपड़ा पहनकर आते हैं |”महेश भईया बोले

उसके मुड़ते ही महेश भईया ने कहा - “चलों जवानों ,कूच करते हैं |”

“मैं विद्रोह पर हूँ !शादी में…

Continue

Added by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:30pm — 4 Comments

शादी की दावत -1 (कहानी )

शादी की दावत -1

स्टेशन से सीधे हम अजय भईया के घर पहुँचे |मड़वा में स्त्रियाँ उन्हें हल्दी-उबटन मल रही थीं |बड़े बाउजी यानि की मानबहादुर सिंह परजुनियों को काम समझाने में व्यस्त थे |बीच-बीच में वे द्वार पर आ रहे मेहमानों से मिलते उनकी कुशल-खैर पूछते और आगे बढ़ जाते |

“अरे सीधे ,स्टेशन से आ रहे हो क्या ?” हमारा समान देखकर शायद उन्हें अंदाज़ा हो गया था |

“जी,हमनें आपस में बात कर ली थी |गाड़ी आने के समय में भी ज़्यादा फ़र्क नहीं था इसलिए हम सब स्टेशन पर ही - -- “बारी-बारी से…

Continue

Added by somesh kumar on March 2, 2015 at 11:03pm — 7 Comments

बहिष्कार (कहानी )

बहिष्कार

“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा

“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा

“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”

“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…

Continue

Added by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments

लोग

लोग(समीक्षार्थ गज़ल प्रयास )

मन के कितने छोटे लोग

रहते क्या-क्या ओटे लोग

गंद डालकर चिल्लाते हैं

जितने भी हैं खोटे लोग

मन की नंगाई ना छोड़ें

लड़ते पहन लंगोटे लोग

टोटे वालों को खोटा बोलें

जो हैं मन के खोटे लोग

नाक़ाबिल परवान चढ़ रहे

तब्दीले-सूरत में कोटे लोग

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by somesh kumar on February 28, 2015 at 9:35pm — 9 Comments

आवाज़ का रहस्य (कहानी )

आवाज़ का रहस्य (कहानी )

प्रशिक्षु चिकित्सक के रूप में दिनेश और मुझे कानपुर देहात के अमरौली गाँव में भेजा गया था |नया होने के कारण हमारी किसी से जान-पहचान ना थी इसलिए हमने अस्पताल के इंचार्ज से हमारे लिए आस-पास किराए पर कमरा दिलाने को कहा |उसने हमे गाँव के मुखिया से मिलवाया |

“ किराए पे तो यहाँ कमरा मिलने से रहा |तुम अजनबी भी हो और जवान भी | परिवार भी नहीं है !ऐसे में कोई गाँव वाला - - - “

“ ऐसे में ये लड़के चले जाएंगे |फिर गाँव वालों का ईलाज - - - - कितनी बार लिखने…

Continue

Added by somesh kumar on February 20, 2015 at 11:12am — 4 Comments

नाम के बहाने (कहानी )

“शुभम|”

“यस सर|”

“ज्ञानू|”

“यस सर|”

“दुर्योधन|”

“हाजिर सSड़|”

यूँ तो पंचम ब वर्ग का ये अंतिम नाम था |परंतु परम्परा से परे प्राचीन महाकाव्य खलनायक का स्मरण

कर और हाजिरी देने के उसके लहजे से ध्यान बरबस ही उसकी तरफ टिक गया |

“दुर्योधन मेरे पास आओ|” मैंने आदेशात्मक लहजे में कहा |

लंबे चेहरे वाला वो लड़का सकुचाता सा मेरे सामने खड़ा हो गया |मैंने अपनी तीसरी कक्षा और पंचम के छात्रों को कार्य दिया |इस बीच वो गर्दन झुकाए ,जमीन को देखता…

Continue

Added by somesh kumar on February 19, 2015 at 10:00am — 12 Comments

समुद्र में मछली

समुद्र में मछली

ट्रेन से उतरकर उसने चिट को देखा और बोला –“थैंक्यू भईया |”और फिर हम दोनों पुरानी दिल्ली स्टेशन के विपरीत गेटों की तरफ सरकने लगे |मुझे दफ्तर पहुंचने की जल्दी थी|फिर भी एक बार मैंने पलटकर देखा पर स्टेशन की भीड़ में,दिल्ली के इस महासमुद्र में वो विलुप्त हो चुका था |

दफ्तर पहुंचते ही बॉस ने मुझें मेरे नए टारगेट की लिस्ट थमा दी और मैं एक सधे हुए शिकारी की तरह अपने सम्भावित कलाइन्ट्स के प्रोफाइल पढ़ते हुए निकल पड़ा |

शालनी बंसल पेशे से अध्यापिका हैं |दो साल…

Continue

Added by somesh kumar on February 17, 2015 at 10:30am — 4 Comments

दोनों हाथ (कहानी )

अब तक आदित्य को लगता था कि पति-पत्नी क रिश्ते में पति ज्यादा अहम होता है | उसे ज्यादा तवज्जो, मान सम्मान  मिलना चाहिए | शायद इसमें उसका कोई दोष भी नही था जिस समाज में वह पला-बढ़ा वह एक पितृ-सत्तात्मक समाज है जहाँ पिता भाई व पति होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है |माँ-बहन व पत्नी ये हमेशा निचले पायदान पर ही रही हैं, बेशक वो समाजिक तौर पर कितनी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें |

बालक के जन्म लेने पर उसके स्वागत में उत्सव और कन्या जन्म पर उदासी |बालक को हर चीज़ में तरजीह और आज़ादी जबकि…

Continue

Added by somesh kumar on February 8, 2015 at 11:30pm — 10 Comments

चूहे (लघुकथा)

“हमारी मिट्टी और जड़ों को खोद-खोदकर ये चूहे हमारे हरे-भरे टापू को उजाड़ बना देंगे और फिर कहीं और बढ़ जाएँगे I“

एक हरे-भरे पेड़ ने चिंता व्यक्त की |

“सकरात्मक सोचों ! जहाज़ के डूबने से पहले इन्होनें बहुत-कुछ खाया-पचाया है, ये हमें पौष्टिक खाद देंगे |”

प्रसन्न मुद्रा में एक अन्य पौधा बोला |

जोर का आँधी-पानी आया | कई विशालकाय वृद्ध पेड़ों की जड़े बाहर आ गईं और कुछ वहीं गिर पड़े |कुछ समय पश्चात वहाँ नई प्रजति के बीज जमने लगे, टापू पर नया बसंत आ चुका था |

.

सोमेश…

Continue

Added by somesh kumar on February 1, 2015 at 10:30am — 12 Comments

घी (लघुकथा )

"यार,काव्य-गोष्ठी तो बहुत कर लीं पर काव्य-सम्मेलनों से बुलावा नहीं आता |"

"अरे मिट्टी के माध, अच्छी कविता लिखना–पढ़ना ही काफ़ी नहीं|"

"तो !"

"तोता बनना सीखो |"

"कैसे?"

"सज्जन के घर राम-राम |और चोर के घर-माल-माल |और फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में | "

.

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:00am — 16 Comments

घिर आई है शाम

घिर आई है शाम

 

यादें भटके जंगल-जंगल

नींद गई वनवास

अच्छे दिन परदेशी ठहरे

फ़ाग मिलन की आस |

बचपन यादें गहरी रंगी

खेले-कूदे   संग

यौवन की लाल चुनरिया

डूबी पीया के रंग |

नंदे-देवर निकले हरजाई

करें ठिठोली छेड़ |

माघ कली झुलस चली

आन करो ना देर |

कीरत अर्जित करते जाते

तीर्थ है किस धाम

छोड़ो-अपनाओं  दिल से

जब जोड़ा है नाम |

मीरा जैसा जीवन काटा

रुक्मणी बस…

Continue

Added by somesh kumar on January 28, 2015 at 8:50am — 10 Comments

अराजक

अराजक(लघुकथा )

“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा

“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”

“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया

“नहीं!”वो मायूस हो गया

“ तो भाई पीछे  जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला  

“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा

“…

Continue

Added by somesh kumar on January 26, 2015 at 6:30pm — 9 Comments

चूड़ियाँ (कहानी )

रात के ९ बजे थे |खाना खाकर विनीत बिस्तर पर लेट गया और radio-mirchi on कर दिया-  “चूड़ी मजा ना देगी,/कंगन मजा ना/देगा, तेरे बगैर साजन /सावन मजा ना देगा"

तभी खिलखिलाती हुई मुग्धा ने कमरे में घुसकर ध्यान भंग किया –“ चाचा-चाचा, अदिति दीदी कुछ कहना चाहती है

 “ हाँ बेटा बोल ,” विनीत ने कहा |

“ चाचा मुझे चाची के चूड़ीदान से कुछ रंग-बिरंगी चूड़ियाँ लेनी है वो सहमते हुए बोली |”

विनीत ने अदिति को देखा, एकबार आलमारी की तरफ देखा जहाँ निम्मा का चुड़ीदान रखा था | कुछ देर चुप…

Continue

Added by somesh kumar on January 24, 2015 at 11:30am — 14 Comments

चुनावी जिन्न

चुनावी जिन्न(कविता )

जांचे परखें और चुनें

चलों नया देश बुनें

रूढ़ परिपाटी हों छिन्न

सच्च हों ,अच्छे दिन |

ये भाषण का व्यवहार

और सतरंगी इश्तिहार

कायाकल्प हो सर्वांगीण

ना केवल चाय नमकीन |

बंद तोड़फोड़ और धरने

सियासी नफ़ा आमजन मरने

पहुंच जाएँगे बुलंदी पर

चटाकर हमें जमीन |

झाड़ू हाथी कमल हाथ

क्रांति जाति धर्म सब-साथ

एक थैली के ही चट्टे-बट्टे

देखों ना इन्हें भिन्न |

अज़ीब-अज़ीब…

Continue

Added by somesh kumar on January 22, 2015 at 10:30am — 8 Comments

अच्छे दिन

अच्छे दिन

दिखे हैं अभी इश्तिहारो में अच्छे दिन|

या सुनता हूँ  बस नारों में अच्छे दिन|

सड़क पर बेचता है खिलौना अभी भी बच्चा

तेल सस्ता हुआ तो कारों के अच्छे दिन|

दिहाड़ी- मजदूर चौराहे पर खड़ा बेरोजगार

सजी दूकानें हैं तो बाजारों के अच्छे दिन|

घोटालेबाज बरी , अफसर की तब्दीली

खूब समझते हैं इशारों के अच्छे दिन|

किसान करे खुदखुशी, हाथ बस मायूसी

 हैं खेत हड़पते सिसियाते  अच्छे दिन|

पी. के. पर विवाद, ऍम.एस.जी पर सेंसर…

Continue

Added by somesh kumar on January 18, 2015 at 1:31pm — 8 Comments

नाम तुम्हारे (गीत )

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला

बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला

जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |

नाम तुम्हारे ..........

खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…

Continue

Added by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
6 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
8 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service