For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (886)

पावस रुत में ....

तृण तृण भीगा

प्रीत पलों का

सावन की बौछारों में

तड़पन भीगी

तन-मन भीगा

सावन की बौछारों में

बीती रैना

भीगे बैना

सावन की बौछारों में

पावस रुत में

नैना बरसे

सावन की बौछारों में

निष्ठुर पिया को

पल पल तरसे

सावन की बौछारों में

बादल गरजे

बिजली चमकी

सावन की बौछारों में

भीगी चौली

भीगी अंगिया

सावन की बौछारों में

चूड़ी खनकी

मिलन को तरसी

सावन की बौछारों में …

Continue

Added by Sushil Sarna on July 16, 2017 at 1:30pm — 6 Comments

नेम प्लेट ...

नेम प्लेट ...

कुछ देर बाद
मिल जाऊंगा मैं
मिट्टी में
पर
देखो
हटाई जा रही है
निर्जीव काल बेल के साथ
लटकी
मेरी ज़िंदा
मगर
उखड़े उखड़े अक्षरों की
एक अजीब सी
चुप्पी साधे
पुरानी सी 
नेम प्लेट

मुझसे पहले 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 14, 2017 at 3:30pm — 24 Comments

आसक्ति …….

आसक्ति …….

परिचय  हुआ  जब   दर्पण से
तो  चंचल  दृग   शरमाने  लगे 
अधरों  पे कम्पन्न  होने   लगा 
पलकों  में  बिंब  मुस्काने  लगे ll


काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग  निशा  से  बढ़ाने लगे 
कच क्रीडा में लिप्त समीर  से
मेघ  अम्बर  में  शरमाने  लगे ll


लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे 
फिर  जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी  की काया पे
मधुप  आसक्ति  दर्शाने  लगे ll

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 12, 2017 at 4:30pm — 15 Comments

जरा जी कर देखें ...

चलो

जिन्दगी को

ज़रा करीब से देखें

दर्द को ज़रा

महसूस करके देखें

क्या खबर

कोई लम्हा

अपना सा मिल जाए कहीं

चलो

उस लम्हे को

जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी

बाद मुद्दत के आई है

जिन आँखों में

अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है

जिस आंगन में

धूप अब भी

सहमी सहमी आती है

उस आंगन के

प्यासे रिश्तों से

जरा रूबरू होकर देखें

चलो!

जिन्दगी को

जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास

किसी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 9, 2017 at 4:30pm — 10 Comments

तिरंगे की लाज के लिए ....

तिरंगे की लाज के लिए ....





मैं अब तुम्हें

मुड़ के न देखूँगा

अपने बढ़े कदम

विछोह के डर से

न रोकूंगा

जानता हूँ

कितना मुशिकल है

अपनी प्रीत को

दूर जाते हुए देखना

कतरा कतरा

अपने प्यार को

बिखरते हुए देखना

अपने सपनों को

अनजानी भोर की

बलि चढ़ते हुए देखना

पंखुड़ी की जगह

ओस को शूलों पर

सोते देखना

कितनी आँखों से तुम

अपने बहते दर्द को छुपाओगी





सब कुछ जानते हुए भी

मैं न…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 8, 2017 at 2:30pm — 8 Comments

यारियां .../रूठे ...



1. यारियां ...

एक ही पल में कितनी दूरियां  हो जाती हैं

हर नफ़स अश्कों से यारियां  हो  जाती  हैं

धड़कनें ख़ामोश ज़िस्म बेज़ान हो जाता  है

गिरफ़्त में हालात के खुद्दारियां हो जाती हैं

....................................................

2. रूठे ...

न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है

न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है

कैसे चले जाएँ भला हम उठ के अभी मैखाने से 

बेवज़ह रूठे हर सवाल का जवाब अभी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 7, 2017 at 9:30pm — 8 Comments

प्रेम ...

प्रेम ...

अनुपम आभास की

अदृश्य शक्ति का

चिर जीवित

अहसास है

प्रेम

मौन बंधनों से

उन्मुक्त उन्माद की

अनबुझ प्यास है

प्रेम

संवादहीन शब्दों की

अव्यक्त अभिव्यक्ति

का असीमित

उल्लास है

प्रेम

निःशब्द शब्दों को

भावों की लहरों पर

मुखरित करने का

आधार है

प्रेम

अपूर्णता को

पूर्णता में परिवर्तित कर

अंतस को

मधु शृंगार से सृजित कर…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 4, 2017 at 9:22pm — 10 Comments

तुम्हारे हृदय में ....

तुम्हारे हृदय में ...

ये

समय ठहरा था

या कोई स्मृति

वाचाल बन

मेरी शेष श्वासों के साथ

चन्दन वन की गंघ सी

मुझे

कुछ पल और

जीवित रखने का

उपक्रम कर रही थी

ये

समय का कौन सा पहर था

मैं पूर्णतयः अनभिज्ञ था

अपनी क्लांत दृष्टि से

धुंधली होती छवियों में

स्वयं को समाहित कर

अपने अंत को

कुछ पल और

जीवित रखने का

असफ़ल

प्रयास कर रहा था

शायद किसी के

इंतज़ार में

तुम…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 3, 2017 at 6:00pm — 8 Comments

ज़िंदगी के सफ़हात...

ज़िंदगी के सफ़हात ...

हैरां हूँ

बाद मेरे फना होने के

किसी ने मेरी लहद को

गुलों से नवाज़ा है

एक एक गुल में

गुल की एक एक पत्ती में

उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है

नाज़ुक हाथो की नरमी है

कुछ सुलगते जज़्बात हैं

कुछ गर्म लम्हों की सौगात है

काश

तुम मेरे शिकवों को समझ पाते

जलते चिराग का दर्द समझ पाते

मेरी पलकों को

इंतज़ार की चौखट में

कैद करने वाले

कितना अच्छा होता

साथ इन गुलों के

तुम भी आ जाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 9:30pm — 4 Comments

पीते हैं ...

पीते हैं ...

सब 

कुछ न कुछ

पीते हैं //



रजनी

सांझ को

पी जाती है

और सहर

रजनी को

फिर सांझ

सहर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //

अंत

आदि को

पंथ

पथिक को

संत

अनंत को

घाव

भाव को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //



नयन

नीर को

नीर

पीड़ को

समय

प्राचीर को

सरोवर

तीर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 7:22pm — 4 Comments

सौगंध के बंधन ....

सौगंध के बंधन ....

मुझे

सब याद है

समय की गर्द में

कुछ भी तो नहीं छुपा

न तुम

न तुम्हारी

आँखों में आंखें डालकर

सात जन्मों तक

साथ निभाने की

सौगंध

चलते रहे

चलते रहे

साथ साथ

इक दूजे के दिल में

पुष्प भाव से गुंथे हुए

अर्थपूर्ण तृषा

और अर्थपूर्ण तृप्ति की

अभिलाष के साथ

इक दूसरे  के

अंतर्मन को छूते हुए

कब यथार्थ की नदी पर

एक किनारे ने

दूसरे किनारे को जन्म…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 4:21pm — 8 Comments

अनकहा ...

अनकहा ...

कुछ तो

रहने दिया होता

मन की कंदराओं में

करवटें लेता

कोई भाव

अनकहा

क्या

ज़रूरी था

स्मृति पृष्ठ की

यादों को

नयन तीरों का

पता देना

आखिर

पता लग गया न

ज़माने को

सब कुछ

जो दबा के रखा था

दिल में

इक दूजे से

बांटने के लिए

सांझा दर्द

अनकहा

सांझ

कब तलक

तिमिर को रोकती

प्रतीक्षा की रेशमी डोरी

प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments

तुम्हारी कसम ...

तुम्हारी कसम ...

सच

तुम्हारी कसम

उस वक़्त

तुम बहुत याद आये थे

जब

सावन की फुहारों ने

मेरे जिस्म को

भिगोया था

जब

सुर्ख़ आरिज़ों से

फिसलती हुई

कोई बूँद

ठोडी पर

किसी के इंतज़ार में

देर तक रुकी रही

जब

तुम्हारे लबों के लम्स

देर तक

मेरे लबों से

बतियाते रहे

जब

घटाओं की

कड़कती बिजली में

मैं काँप जाती

जब

बरसाती तुन्द हवाओं से…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 15, 2017 at 9:35pm — 6 Comments

1 . नटखट नज़र .../2 . भीगी सौगातें ...

1 . नटखट नज़र ...

हो जाती बरसात तो गज़ब  होता
फिर वो भीगी हया का क्या होता
वो उड़ती चुनर पे नटखट  नज़र
भटक जाती अगर तो क्या  होता

2 . भीगी सौगातें ..

.

सावन की रातें हैं सावन की बातें है 

सावन में भीगी सी चंद मुलाकातें है
इक दूजे में सिमटे वो भीगे से  लम्हे
साँसों की साँसों को भीगी सौगातें हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 14, 2017 at 1:30pm — 4 Comments

मैं तस्वीर हो गया ...

मैं तस्वीर हो गया ...

क्यूँ

मेरी तस्वीर को

दीवार पर लगाते हों

एक कल को

वर्तमान बनाते हो

आज तक

कोई मेरे चेहरे को

पढ़ न पाया था

हर अपने ने मुझे

अपने स्वार्थ का

मोहरा बनाया था

मेरी हंसी भी मज़बूर थी

मेरा अश्क भी पराया था

यूँ जीवित रहने का

मैंने हर फ़र्ज़ निभाया था

चलो अच्छा हुआ

मैं एक अनकही तहरीर हुआ

बेगानों से अपनों की

ज़ागीर हुआ

अब मेरा सम्मान मोहताज़ नहीं

किसे से छुपा कोई राज़ नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 12, 2017 at 3:00pm — 5 Comments

बाज़ुओं में ....

बाज़ुओं में ....

कौन रोक पाया है

समय वेग को

अपने गतिशील चक्र के नीचे

हर पल को रौंदता

चला जाता है

और लिख जाता है

धरा के ललाट पर

न मिटने वाली

दर्द की दास्तान

शायद

तुमने मेरे चेहरे की लकीरों को

गौर से नहीं देखा

तुमने सिर्फ

मुहब्बत के हर्फ़ पढ़े हैं

उन हर्फों को

बेहिजाब होते नहीं देखा

किर्चियों से चुभते हैं

जब ये हर्फ़

समय के अश्वों की

टापों के नीचे

बे-आवाज़ फ़ना हो जाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 3:52pm — 4 Comments

स्पंदन....

1,स्पंदन......(२ मुक्तक)  :

व्यर्थ व्यथा है हार जीत की
निशा न जाने पीर  प्रीत की
नैन बंध सब शुष्क  हो  गए
आहटहीन हुई राह मीत की
.... ..... ..... ..... ..... ..... ..... ....

2.

गंधहीन हुए चन्दन  सब
स्वरहीन हुए क्रंदन  सब
स्मृति उर से रिसती रही
मौन हो गए स्पंदन  सब

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 12:54pm — 6 Comments

श्वासों का क्षरण ...

श्वासों का क्षरण ...

मैं

बहुत रोयी थी

अपने एकांत में

तेरे बाद भी

कई रातों तक

तेरे अंक में सोयी थी

तेरा जाना

एक घटना थी शायद

दुनियां के लिए

मगर

असंभव था

तुझे विस्मृत करना

मैं तेरे गर्भ के अंक की

पहचान थी

और तू

मेरे स्मृति अंक की श्वास

सच

कोई भी नहीं देख पाया

मेरे रुदन को

तूने कैसे देख लिया

शुष्क पलकों में

तू मुझसे कल

मिलने आयी थी

अपने अंक में

तूने मुझे सुलाया…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 7, 2017 at 4:14pm — 6 Comments

खूंटी पर टंगी कमीज़ को ....

खूंटी पर टंगी कमीज़ को ....

जब जब

मैं छूती हूँ

खूंटी पर

टंगी कमीज़ को

मेरा समूचा अस्तित्व

रेंगने लगता है

उस स्पर्शबंध के आवरण में

जहां मेरा शैशव

निश्चिंत सोया करता था

अब

जब आप नहीं रहे

मैं इस कमीज़ में

आपको महसूस करती हूँ

सामना करती हूँ

हर उस दूषित दृष्टि का

जो मेरे शरीर पर

अपनी कुत्सित भावनाओं की

खरोंचें डालती है

मेरी दृष्टिहीनता को

मेरी कमजोरी मानती है

न, न

आप…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 5, 2017 at 4:11pm — 7 Comments

तृषित ज़िंदगी ...

तृषित ज़िंदगी ...

गाँव की
उदास और चुप शाम

टूटे छप्पर
हवाओं से
बिखरे तिनके
बयाँ कर रहे थे
ज़ुल्म आँधियों का

बिखरे 

रोटियों के टुकड़े
और
टूटे हुए मटके में
दो हाथों के इंतज़ार में
ठहरा
तृप्ति को तरसता
अतृप्त पानी
कह रहा था
चली गयी
शायद
कोई  ज़िंदगी

तृषित ही 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on May 31, 2017 at 2:00pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service