For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (504)

कभी गम के दौर में भी हुई आखें नम नहीं पर- लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

गजल

2121    1221    1212    122



मेरे  रहनुमा  ही   मुझसे  मिले  सूरतें  बदल  के

भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।

न सितारे बोले  उससे  मेरा  हाल क्या है या रब

न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।



खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं

जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।

कहूँ लाल कह के  उसने न  गले  लगाया क्यों मैं

न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।



बड़ा ख्वाब  था  खिलाऊँ  उसे मोल की भी रोटी

न खरीद…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments

ललक दिल को रिझाने की -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ (ग़ज़ल)

ग़ज़ल



1222 1222 1222 1222

ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी

किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।

सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को

न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।

हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए

मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।

हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो

किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।

नहीं उसको…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments

बचा है खोट से जब तक - (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222    1222    1222    1222



जुबाँ पर वो  नहीं चढ़ता मनन उसका नहीं होता

जो बाँटा खौफ करता हो भजन उसका नहीं होता।1।



जो करता बात जयचंदी  वतन उसका नहीं होता

जिसे हो प्यार पतझड़ से चमन उसका नहीं होता।2।



जिसे लालच हो कुर्सी का जो करता दोगली बातें

वतन हित में कभी लोगों कथन उसका नहीं होता।3।



गगन उसका हुआ करता जो दे परवाज का साहस

जो काटे पंख  औरों  के  गगन उसका नहीं होता।4।



समर्पण  माँगता है प्यार  निश्छल  भाव वाला बस

नजर हो सिर्फ दौलत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:21am — 6 Comments

परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’(ग़ज़ल)

1222    1222    1222    1222



जफा कर यूँ  मुहब्बत में  कभी ऊपर  नहीं होते

वफा के  खेत दुनियाँ  में कभी  बंजर नहीं होते।1।



खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती

जहाँ  राहों में मंजिल की  पड़े पत्थर नहीं होते।2।



परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो

किसी की सादगी से बढ़  कोई जेवर नहीं होते।3।



नहीं चाहे बुलाता  हो उसे फिर तीज पर नैहर

न छोड़े गर नदी  नैहर  कहीं सागर नहीं होते।4।



यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी

पहाड़ी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:25am — 11 Comments

दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी - ( गजल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2222    2222    2222    222

*********************************

यौवन  भर  देखी  है  हमने  कैसी  कैसी  छाँव घनी

कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1



धूप अगर  होती  राहों  में तो  साया  भी मिल जाता

लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2



हमको तो  आदत  सहने की  सर्दी गर्मी बरखा सब

दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3



छाया अच्छी तो है  लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके

कड़ी  धूप से  भी बदतर  है यारो  ऐसी छाँव घनी।4



फसलों…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments

पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी -ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन

हर तरफ  छाया  हुआ है  आज बाजारों का फन

कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी

क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन

हौसला  देते  जरा  तो  क्या  गजब  करती  सुई

आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन

पुल  बने  हैं  कागजों  पर  कागजों पर ही नदी

क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन

पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता

आपने देखा न होगा यार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments

वफा उस पार से रखते मगर इस पार गद्दारी - गजल - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222 1222 1222 1222

कहाँ तक  नाव  जाएगी करे पतवार गद्दारी

गजल लय में रहे कैसे करें असआर गद्दारी ।1।

भले कहना सरल है ये यहाँ हर नींव पक्की है

सलामत  छत  रहे  कैसे  करे  दीवार  गद्दारी ।2l

कहा करते हैं दुर्जन भी ये तो तहजीब का फल है

सुहाती है किसी  को  ढब  किसी  को भार गद्दारी ।3l

न जाने यार क्या होगा चमन में हाल फूलों का

अगर करने  लगे यूँ  ही  कसम  से खार गद्दारी ।4l

जुड़े जब स्वार्थ ही केवल…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 12:00pm — 2 Comments

बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222    1222    1222    1222



बिछड़ कर भी  कहाँ  तुझसे तेरी बातों को भूले हैं

कहाँ उस  झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।



कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में

तेरे काँधें  पे हम  अपनी  सनम  रातों को भूले हैं।2।



बजा करती  हैं कानों  में तुम्हारी पायलें अब भी

खनकती  चूडि़यों  वाले  न उन  हातों को भूले हैं।3।



न  छत  पर  चाँद तारों से  हमारा हाल तुम पूछो

तपन की याद किसको है  कि बरसातों को भूले हैं।4।



अगर है याद जो थोड़ा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments

बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222    1222    1222    1222



उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते

कि दादुर  कूप के यारो  कभी बाहर नहीं होते ।1



समर्थन पाक  को हासिल हमारे बीच से वरना

कभी  कश्मीर पर  इतने कड़े  तेवर नहीं होते।2



पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है

कभी  मासूम हाथो  में लिए  पत्थर  नहीं होते।3



बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में

कभी जयचंद जाफर  तब छिपे भीतर नहीं होते।4



समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता

हमेशा  इस सियासत में  भरे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments

कौन सी कौम उसे फिर से दुशाला देगी - ग़ज़ल

212         2112          2112     222



सोच अच्छी हो तो मस्जिद या शिवाला देगी

तंग  हो  और अगर  खून का  प्याला देगी।1।



लाख  अनमोल  कहो  यार  ये हीरे लेकिन

पर हकीकत  है कि मिट्टी  ही निवाला देगी।2।



जब हमें भोर में आँखों ने दिया है धोखा

कौन कंदील जो  पावों  को  उजाला देगी।3।



आशिकी यार तबायफ की करोगे गर जो

स्वर्ग से घर में नरक सा ही बवाला देगी।4।



आप हम खूब लडे़ खून बहाना मकसद

राहेरौशन तो जमाने  को  मलाला देगी।5।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 3:00pm — 3 Comments

आपके तो पर परिंदों -ग़ज़ल -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

*******************************

दुश्मनों के डर को उसने अपना ही डर कर लिया

और दामन  दोस्तों  के  खून  से  तर कर लिया ।1।



जब  नगर  में  रह न पाए  दोस्तो  महफूज हम

आदिमों  के  बीच  हमने दश्त  में घर कर लिया ।2।



चोट  खाकर भी  हँसे  हैं   आँख  नम  होने न दी

सब गमों  को आज  हमने देखिए सर कर लिया ।3।



आपके तो  पर  परिंदों  फिर  भी  क्यों लाचार हो

हर कठिन परवाज  भी यूँ  हमने बेपर कर लिया ।4।



कह न  पाए  बात कोई…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2016 at 12:31pm — 10 Comments

पहन पोशाक गांधी की - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

1222    1222    1222    1222

**********************************



जिसे  राणा सा  होना था  वो  जाफर बन गया यारो

सियासत  करके  गड्ढा भी  समंदर बन गया यारो ।1।



हमारी  सीख कच्ची  थी  या उसका रक्त ऐसा था

पढ़ाया  पाठ  गौतम  का सिकंदर  बन गया यारो ।2।



करप्सन  और  आरक्षण  का  रूतबा   देखिए ऐसा

फिसड्डी था जो कक्षा में वो अफसर बन गया यारो ।3।



तरक्की  है कि  बर्बादी  जरा  सोचो नए  युग की

जहाँ बहती नदी  थी इक वहाँ घर बन गया यारो ।4।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2016 at 10:48am — 18 Comments

मत जाओ रात बाहर - ग़ज़ल

221    2122    2212    122

**************************************

मत पूछ  किस लिए  वो तेवर बदल रहे हैं

शह पा के  दोस्तों  की  दुश्मन उछल रहे हैं  l1l



होगी वफा वतन  से यारो  भला कहाँ अब

हुंकार  जाफरों   की   शासन   दहल  रहे हैं l2l



हमको पता  है  लोगों  शैलाब बढ़ रहा क्यों

दरिया के प्यार में कुछ पत्थर पिघल रहे हैं l3l



आँखों को सबकी यारों चुँधिया न दें कहीं वो

तम  के   दयार  में  से  तारे  निकल  रहे हैं l4l



ताकत विरोध की तज अपनायी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:15am — 14 Comments

धूप का होना - ग़ज़ल

गजल/धूप

*************

1222 1222 1222 1222

**************************

करो  तय दोस्तो  थोड़ा  जिगर में  धूप का होना

मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1



दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो

अखरता क्यों तुझे  है अब डगर में धूप का होना /2



जहाँ  देखो  वहीं  जलवा  करें  साए  इमारत के

पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3



चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब

जरूरी   है  बुढ़ापे   की   उमर  में   धूप   का  होना…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2016 at 11:52am — 18 Comments

सोच असुरों सी करो मत दोस्तो - ग़ज़ल

2122    2122    212

**********************  

कब   यहाँ   पर्दा  उठाया  जाएगा

कब  हमें  सूरज दिखाया  जाएगा /1



थक गए हैं झूठ  की उँगली पकड़

सच का दामन कब थमाया जाएगा /2



सब   परेशाँ   तीरगी   से   दोस्तो

कब  दिया  कोई  जलाया जाएगा /3



है  सुरक्षा  खाद्य  की   कानून में

पर अनाजों  को  सड़ाया  जाएगा /4



दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर

इक  निवाला  बाँट  खाया जाएगा /5



यह समय है झूठ का कहते है सब

राम  को  रावण  बताया  जाएगा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 12:09pm — 16 Comments

भले ही रंग कुछ भरते - ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222

************************************

उसे तो मुक्त होना  बस उसी की काहिली से है

कमी जो जिंदगी में यार  वो उसकी कमी  से है /1



जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को

अगर है दूर मंजिल तो  समझ लो बुुजदिली से है /2



मनुज सब  एक से  ही हैं नहीं  छोटा बड़ा कोई

सभी का वास्ता  केवल उसी  इक  रोशनी से है /3



जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी

उसी  को  छोड़  आया  वो  बहुत  ही  बेदिली से है /4



हकीकत आप समझो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2016 at 10:55am — 8 Comments

चले हैं छोड़ घर अपना - ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222     1222



हुनर की बात है सबको गमों में यूँ हँसाना तो नहीं आता

सभी के हाथ यारो ये मुहब्बत का खजाना तो नहीं आता



है हसरत तो  हमारी भी  लगाएँ दिल  हसीनों से जमाने में

हमें पर नाज कमसिन का जरा भी यों उठाना तो नहीं आता



हमेशा  लौट आता कारवाँ गर्दिश  का जैसे दोस्तों फिर फिर

कि वैसे लौटकर फिर  से  बुलंदी का जमाना तो नहीं आता



लगेगी जिंदगी कैसे  सजा से हट   किसी ईनाम के जैसी

सभी को यार होठों पर तबस्सुम को सजाना तो नहीं…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2016 at 10:57am — 15 Comments

महज इक हार से जीवन नहीं बुनियाद खो देता -ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222

**************************************

न कोई दिन बुरा गुजरे  न कोई रात भारी हो

जुबाँ को  खोलना  ऐसे न कोई बात भारी हो /1



दिखा सुंदर तो करता है हमारा गाँव भी लेकिन

बहुत कच्ची हैं दीवारें  न अब बरसात भारी हो /2



न तो धर्मों का हमला हो  न ही पंथों से हो खतरा

न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो /3



पढ़ा विज्ञान  है  सबने  करो  तरकीब  कुछ ऐसी

न तो  हो तेरह का खतरा न साढ़े  सात भारी हो /4



महज इक हार से जीवन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2016 at 11:29am — 12 Comments

दवाई पेड़ पौधे हैं -ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222

न जाने  हाथ में  किसके है ये पतवार  मौसम की

बदल पाया  न  कोई भी  कभी  रफ्तार मौसम की /1



सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की

समझ  चालें  न  आएँगी कभी  अय्यार मौसम की /2



अभी है पक्ष  में तो  मत  करो  मनमानियाँ इतनी

न जाने कब  बदल जाए  तबीयत यार मौसम की /3



उजाड़े  जा  रहा क्यों तू  धरा   से  रोज ही इनको

दवाई  पेड़  पौधे  हैं  समझ   बीमार  मौसम की /4



न आए  हाथ उतने  भी   लगाए  बीज थे जितने

पड़ी कुछ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:55am — 13 Comments

बदजुबानी क्या कहें-ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

2122    2122    2122    212

*********************************

प्यार के  इस  माह  की यारो  कहानी क्या कहें

बिन किसी  के थम  गयी है जिंदगानी क्या कहें /1



यूँ  कभी  खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी

दर्द  से  हट  आँसुओं  के  अब  तो  मानी  क्या कहें /2



आजकल बैसाखियों पर वक्त जाने क्यों हुआ

थी कभी किससे जवाँ वो इक रवानी क्या कहें /3



आप कहते  हो  अकेलापन  सताता  है  बहुत

साथ  अपने  तो सदा  यादें  पुरानी  क्या कहें /4



खुश रहे बस हो …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:27am — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service