नगर बस में भीड़ के रेले में धकियाया गया एक बुढ्ढा बेचारा.
छोटे कद के कारण न तो छत पर लटके हैंडल पकड़ पा रहा था और न ही सीट पर सहारा पाने कि कोई उम्मीद ही दिख रही थी. नगर बस में कई जगह ' अपने से ज्यादा ज़रुरत मंदों को सीट दे ' के सूचना पट्टियाँ लगीं थी और उस बूढ़े कि खिल्ली उड़ा रहीं थीं .
अचानक एक सीट खाली हुई...आशा भरी द्रष्टि से बूढा उस सीट की ओर लपका. तभी एक बीस बाईस वर्ष का एक लड़का अपनी उम्र को दर्शाती फुर्ती के साथ सीट पर काबिज़ हो गया, और बुढ्ढा एक बार फिर निराश.
लोगों ने…                      
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 6:00pm                            —
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                      १.
आज़ादी मिली
आतंकवादियों को
जनता डरी.
२.
कुर्सी   पे जमे                              
ढीले से कर्णधार 
ऊबी जनता  
३.
मंहगाई पे
आंसू मत बहाओ
कुछ तो…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:30pm                            —
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                      १.
जूता गांठता
एक मोची आज भी सड़क के किनारे
ज़मीन पर बैठा है
यह बात अन्यथा है
कि  उसके वर्ग के नाम पर…
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 5:00pm                            —
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                      वो कौन है ...
यह तो एक पहेली है
उसकी अठखेली है...
दिखता वह अनजान है
पर हम सब की जान है
यह पहेली सुलझाने को 
युगों से अनेक ऋषि-मुनि 
हुए हैं अशांत
लेकिन वह तो हमेशा से ही
दिखता प्रशांत 
चैन की बंशी बजाता है
अपनी ही चलाता है
 नमस्कार बन्धु....
बहुत ठीक है तुम अपनी ही चलाओ 
सारी दुनिया को…
                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on January 21, 2011 at 8:30am                            —
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                      मित्र मुबारक हो तुम सबको नया वर्ष आगामी
स्नेह रहे कायम हम सबका गुम जाये गुमनामी
नए कीर्तिमानों का फिर से बने नया इतिहास
ख़ुशी असीमित हो हमसबकी मुख में हो परिहास
सोंचें भी न कोई नेता अब घपले की बात
दुश्मन भी कर सकें न कोई आतंकी आघात ...
आओ स्वागत करें सभी मिल नया वर्ष सुखकारी
टीम भावना से होते हैं सभी काम हितकारी
नया ईस्वी वर्ष 2011 मंगलमय हो
ब्रिजेश त्रिपाठी                                          
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 31, 2010 at 1:00pm                            —
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                      बीत गयीं हो सदियाँ जैसे 
ओपन बुक से बिछुड़े ...
मित्र हमारे याद कर रहे 
लेकिन उखड़े  उखड़े...
यहाँ एक अनजान शहर में 
मै  हूँ  एक बेगाना 
साथ मे मेरी रूग्ण संगिनी 
मार रही है ताना 
कैसे भूल न पाओगे अब 
ओ.बी.ओ. की बातें ..?
बैठोगे अब ज़रा पास में 
देख…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 29, 2010 at 1:30pm                            —
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                      यह प्यार का समंदर क्यों आंखो मे समाया है
एक ठंडी सी तपिस में क्यों दिल को डुबाया है
मत देखो इस तरह...कि एक तूफ़ान सा उठता है
मन पल में सहमता है क्षण भर में मचलता है
तुम आओ तो सही हम दीवानों की महफ़िल में
इस अंजुमन की रौ में कोई पतंगा जलता है                                          
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 3, 2010 at 10:19am                            —
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                      राजा सत्यकेतु की नींद मे व्यवधान पड़ा तो वे जग गये.अंधेरे मे देखने की कोशिश की तो एक सजी धजी अपरिचित महिला को महल से बाहर जाते देखा. पूछने पर उसने बताया,"मै इस राज्य की भाग्यलक्ष्मी हूँ.मै इस राज्य को त्याग कर जा रही हूँ.
राजा ने कारण पूछा तो भाग्यलक्ष्मी ने उत्तर दिया,"जिस राजा के राज्य मे धन का सम्मान नही होता मै वहाँ नही रहती".राजा ने चूंकि उन दिनो गरीबों, अपाहिजों और असमर्थों के लाभार्थ अपने खजाने खोल रक्खे थे और भाग्य लक्ष्मी उसे अपव्यय और अपना अपमान समझती थी,अतः राजा के रोकने और…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 19, 2010 at 11:00pm                            —
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                      देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर मेरे पूज्य पिताजी देवों को जगाया करते थे आज उनकी स्मृति को मन मे संजोए उनकी परंपरा का निर्वाह मै निम्न शब्दों से करता हुआ आप सबको देव- उठानी एकादशी की बधाई देता हूँ.
जागो मेरे स्वामी जागो...
तुम सोए तो सो जाती है...
इस जग की ममता अनजानी,
कहाँ... न जाने खो जाती है,
मेरी भी क्षमता अनचीन्ही..
तुम जागो तो विश्व जागेगा
मानवता..विश्वास जगेगा...
भेद भावना ,…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 14, 2010 at 9:30pm                            —
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                      दीपक की देखी बाती
तेल में डूबी निज तन जलाती
महा तमस में अकेले ही
उजियारा फैलाती
सबका हौसला बढाती
देखी दीपक की बाती...
एक सैनिक
जो युद्ध-भूमि में पड़ा है
मातृभूमि के लिए
आखिरी साँस तक लड़ा है
उसके सीने में देशभक्त का
गौरव जड़ा है ....
हम युद्ध जीतेंगे हर बार
दुश्मन से भी और
बुराइयों से भी...
ऐ मेरे रहबर !
समझौते की मेज़ पर
अपना मनोबल न गिराना
खुद के आत्म सम्मान के लिए
देश को दांव पर न…                      
Continue
                                          
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 7, 2010 at 11:00pm                            —
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                      सुख दिए हैं आपने
मन में बड़ा उत्साह है …
उत्साह से उल्लास को कैसे मिटाऊँ
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?
हर्ष जो उपजा हमारे ह्रदय में ,
मै छिपाऊँ या जताऊँ
किस तरह ?
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?
शोक में या क्रोध में ,
मै शांत हो जाऊं ,
बताओ किस तरह ?
क्या करूँ ?
कैसे तुम्हारा प्रिय बनूँ ?
शांत मन जो व्यक्ति हैं ,
वे , तुम्हारे सर्वदा ही प्रिय रहे हैं .
मांग कर जो नित्य ही…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 31, 2010 at 10:00pm                            —
                                                            3 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      आकाश के उस कोने मे जहाँ मेरी दृष्टि की सीमा है….
देखता हूँ किसी ना किसी पक्षी को नित्य ही ….
क्या यह मेरा अरमान है ?
एकाकी ही दूर तक उड़ते जाना.. सत्य की खोज मे….
क्या यह मेरे मन का भटकाव है ?
कभी उत्साह की बरसात होती है…
आशाओं का सवेरा
मन के अंधेरे को झीना कर जाता है…..
और तब दिखते हो तुम मुझे,
आनंद मे नहाए एकदम तरोताज़ा
सूरजमुखी का एक फूल…
यह नही है कोई भ्रम या भूल.
वर्जनाओं के कड़े पहरे मे
जब दीवाले कुछ मोटी होजाती…                      
Continue
                                          
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 29, 2010 at 9:00am                            —
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                      छुवन तुम्हारी यादों की भी न्यारी लगती है....
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है...
मन खोया रहता है तुम मे...
तुम हो मेरे अंतर्मन मे....
तुम से उत्प्रेरित मेरा मन...
तुमको करता नमन समर्पित
जीवन हो तुम. जीवन-धन भी,
सांसो मे तुम धड़कन मे भी...
दृष्टि तुम्हारी घोर तमस को झीना करती है...
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है...
क्या अंतर जो नही पास मे...
तुम हो मेरी सांस-सांस मे...
नेत्र बंद होते ही मेरे...
तुम…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 28, 2010 at 10:00pm                            —
                                                            1 Comment
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      चातक मन प्यासा फिरे, दोनों आँखें मूँद .
 पियूँ-पियूँ रटता रहे, पिए न एको बूँद ...
 प्यास कैसे बुझ पाय ?
 मन की मन में रह जाय...
 रूठा आज गुलाब है, मधुकर है बेचैन
 भूली सारी गायकी,कटे न काटे रैन
 कहाँ बोलो अब जाय..
 प्रीति को कैसे पाय?
 स्वाति टपके सीप में, मोती सी बन जाय
 रेत,पंक में जा गिरे , तो दलदल ही कहलाय
 संग का असर न जाय
 कोई कैसे समझाय ?
 मंहगाई सुरसा भई, अतिथि हुए हनुमान...
 सुरसा-मुख घटना नहीं,तुम्ही घटो मेहमान...
 कोई अब क्या…
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 10:30pm                            —
                                                            5 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      
छोटू है वह
होटल में बर्तन धोता है ...
सुबह-शाम भोजन पाने को
मालिक की झिडकी सहता है ...
गोरा है...पर हाथ-पाँव में मैल जमा है..
स्नान करे कब?बहुत व्यस्त है ...
हाथ-पैर-मुंह तक धोने का होश नहीं है .
"छोटू",मैंने एक दिन पूंछा उससे,
"स्कूल जाओगे?"
"अभी गया था..चाय बाँट कर आया हूँ मै"
बोला मुझसे,"फिर जाना है ...वापस जूंठे ग्लास उठाने.."
"नहीं...टांग कर बस्ता पीछे,
जाओगे क्या…                      
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 7:00am                            —
                                                            12 Comments
                                                
                                     
                            
                    
                    
                      
सावन की घटा घहराती हैं,
मन में हलचल कर जाती हैं ..
विरही मन छोड़ रूठना अब,
प्रियतम की याद सताती है...
काले पीले बादल आते,
वर्षा की आशा ले आते,
मन हरा भरा हो जाता तब,
प्रियतम फिर से घर को आते,
प्रियतम की यादों को सावन,
फिर घेर घेर ले आता है,
दर्शन की अमित चाह में अब,
जीवन उत्साह बढ़ाता है ...
मन व्याकुल है तन आकुल है,
है कंठ रुद्ध आशा अपूर्ण..
प्रिय आँखों में बस जाओ तो,
जीवन हो…                      
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm                            —
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                      आभार तुम्हारा कैसे माँ, मै व्यक्त करूँ....?
जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ....?
तेरी मिट्टी की खुशबू माँ ...
मेरे तन मन मे छाई है.....
तेरी आशीषें ले कर ही...
पुरवाई फिर से आई है....
सुख यश की इन सौगातों का उपकार मै कैसे व्यक्त करूँ...?
जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ...?
तेरी मिट्टी से जो उपजा ,
वह अन्न बड़ा बलदायी है...
तुझको छू कर ही पवन आज
शीतल है...व सुखदाई है...
इन सुंदर सुखद बहारों का मै मोल तुम्हे कैसे…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 23, 2010 at 8:30am                            —
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जो बातें प्यार की छूटीं हैं अब तक,
आज करनी हैं …
सुनो जी काम छोड़ो , पास बैठो…
शाम की गाड़ी पकड़नी है ….
वो पैंतीस साल पहले रात,
जो आई सुहानी थी…
वो गुजरी रात मे अभिसार की,
प्यारी कहानी थी ….
वो जो छूटीं रहीं इनकार मे थीं …
प्यार की बातें….
वो जो मूंदीं ढकीं इनकार मे थीं ,
प्यार की बातें….
वो जिनके बीच
मुन्नू और चुन्नू का बहाना था…
वो जो…                      Continue
                                           
                    
                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 21, 2010 at 9:30pm                            —
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                      कोहरे से और बर्फ से, मिला हवा ने हाथ!
 अबकी जाड़े में दिया, फिर सूरज को मात !! १
 
 काँप रहा है भीति से, लोक तंत्र का बाघ!
 संबंधों में शीत है, और फिजां में आग !!२
 
 रिश्ते नातों में लगा, शीतलता का दाग !
 काँप रही है देखिये, कैसे थर-थर आग !!३
 
 फिर पतझड़ की याद में, वृक्ष हो गए म्लान!
 छेड़ रहे हैं रात भर, दर्द भरी एक तान !!४
 
 धूप भली लगती कहाँ, याद आ रही रात !
 ऊष्ण वस्त्र तो हैं नहीं होना है हिमपात !!५
 
 पहरा देती है हवा,…
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 15, 2010 at 11:00pm                            —
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                      जिसके पैर न रुकना जाने ,
जिसके हाथ न थकना जाने
सुनो ध्यान से ;
हरदम उसका
भाग्य-लक्ष्मी पीछा करती...
सखा उसी का होता ईश्वर...
जग में वही सफल होता है .
और वही रोता है हरदम...
दुखी दरिद्री भी होता है
पाप उसी को सदा दबाते
कर्महीन जो नर होता है.
त्याग नींद आलस्य इसीसे
शुभ कर्मो को करो निरंतर ...
.......चलो निरंतर -१-
सोये पड़े व्यक्ति का देखो
सोया पड़ा भाग्य रहता है
उठ बैठे तो भाग्य उठेगा
चल पड़ने से चल निकलेगा…                      
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                                                        Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 12, 2010 at 11:00pm                            —
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