२२१/२१२१/१२२१/२१२
मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया 
फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१। 
***
हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले
होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।
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वादे सियासती  ही  सही  हम को भा गये
फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।
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खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक
यूँ पाँच साल  बाद  भी  आने  का शुक्रिया।४।
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पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो
आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments
 जहाँ पर रोशनी होगी
 वहीं पर तीरगी होगी।१।
 *
 गले तो  मौत  के लग लें
 खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
 *
 निशा  आयेगी  पहलू  में
 किरण जब सो रही होगी।३।
 *
 उबासी  छोड़  दी  उस ने
 यहाँ  कब  ताजगी  होगी।४।
 *
 धुएँ के साथ विष घुलता
 हवा भी दिलजली होगी।५।
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 कली जो खिलने बैठी है
 मुहब्बत  में   पगी  होगी।६।
 *
 न आया  साँझ  को बेटा
 निशा भर माँ जगी होगी।७।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2021 at 7:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद  में  तो  उछाला सँभाल कर।१।
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कोई  बुरी  निगाह  न  पलभर  असर  करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
*
बरतन घरों के  माज  के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
*
सोये अगर  तो  हाल  भी  चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
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माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया  एक  शिवाला सँभाल कर।५।
*
सुख दुख में राह देता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
 किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत
 हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।
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 जो पेड़ शूल  वाले  थे  मट्ठे से सींचकर
 पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।
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 भूले से अपनी ओर  न  आँखें उठाए वो
 जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।
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 धनवान मौका  मार  के  ऊँचा चढ़ा मगर
 निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।
 *
 बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये
 ऐसे भी  बाजी  मान  की …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments
 किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
 देश बेबस को  निवाला  कर रहे हो।१।
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 रंग पोते धर्म  का  बाहर से अपने
 आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
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 निर्वसनता  चन्द  लोगों  को सुहाती
 इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
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 कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
 खून के छींटों से क्योंकर  डर रहे हो।४।
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 व्यर्थ है  उम्मीद  पिघलोगे  कभी ये
 है पता  हर  जन्म  में  पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चिन्ता करें जो आम की शासन नहीं रहे
कारण इसी के लाखों के जीवन नहीं रहे।१।
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हर कोई खेल सकता है पैसों के जोर पर
कानून  आज  देश  में  बन्धन  नहीं  रहे।२।
*
अब हो गये हैं आँख वो भूखे से गिद्ध की
जो थे  बचाते  लाज  को  यौवन नहीं रहे।३।
*
आई हवा नगर की  तो दीवारें बन गयीं
मिलजुल जहाँ थे बैठते आगन नहीं रहे।४।
*
जीवन का दर्द आँखों में उनकी रहा जवाँ
बेवा हो जिनके  हाथों  में  कंगन नहीं रहे।५।
*
तकनीक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 12:48pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने किसी को हर्ष का इक पल नहीं दिया
सूखी धरा को  जैसे  कि  बादल  नहीं दिया।१।
*
रूठे तो उससे रोज ही लेकिन मनाया कब
आँसू ढले जो आँखों से आँचल नहीं दिया।२।
*
गंगा से  भर  के  लाये  थे  पुरखों  को तारने
जलते वनों की प्यास को वो जल नहीं दिया।३।
*
कहने पे मन को आपके बंदिश में क्यों रखें
यूँ जब किसी भी द्वार को साँकल नहीं दिया।४।
*
कालिख लगी है इनमें जो सौगात जग की है
आँखों में हम ने एक  भी  काजल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2021 at 12:36pm — 6 Comments
 कौन आया काम जनता के लिए
 कह गये सब राम जनता के लिए।१।
 *
 सुख सभी रखते हैं नेता पास में
 हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
 *
 देख पाती है नहीं मुख सोच कर
 बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
 *
 छाँव नेताओं  के हिस्से हो गयी
 और तपता घाम जनता के लिए।४।
 *
 अच्छे वादे और बोतल वोट को
 हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
 *
 न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
 भोर नेता  साम …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 10:01pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
 हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
 बोली जवानी क्रोध  में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
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 घर के बड़े  भी  काट  के  पेड़ों  को  खुश हुए
 बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
 *
 तस्कर तमाम  आ  गये  गुपचुप  से  मोल को
 माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
 *
 आँखों से उस की धार  ये  रुकती नहीं है अब 
 भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
 *
 वो  सब  विहीन  रीड़  के  श्वानों  से  बन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२
 सादगी से  घर  सँभाला कीजिए
 लालसा को मत उछाला कीजिए।१।
 *
 यह धरा  तो  रौंद  डाली  जालिमों
 चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।
 *
 करके सूरज से उधारी आब की
 चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।
 *
 जब नया देने की कुव्वत ही नहीं
 मत फटे में  पाँव  डाला कीजिए।४।
 *
 गर तबीयत  जाननी  है  देश की
 सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।
 *
 चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो
 झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
कोई गर रंग डाले  तो  न खाना खार होली में
 भिगाना भीगना जी भर बढ़ाना प्यार होली में।१।
 *
 मिलन का प्रीत का सौहार्द्र का त्योहार है ये तो
 न हो ताजा  पुरानी  एक  भी  तकरार होली में।२।
 *
 मँजीरे ढोल की  थापें  पड़ा करती हैं फीकी सच
 करे पायल जो सजनी की मधुर झन्कार होली में।३।
 *
 जमाना भाँग ठंडायी पिलाये पर सनम तुम तो
 दिखाकर मदभरी आँखें करो सरशार होली में।४।
 *
 चले हैं  मारने  हम  तो  दिलों  से  दुश्मनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2021 at 2:00pm — 8 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
कभी रिश्ते मन से निभाकर तो देखो
 जो  रूठे  हुए  हैं  मनाकर  तो  देखो।१।
 *
 खुशी  दौड़कर  आप  आयेगी साथी
 कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो।२।
 *
 बदल लेगा रंगत जमाना भी अपनी
 कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो।३।
 *
 कभी  रंज  दुश्मन  नहीं  दे  सकेगा
 स्वयं से स्वयं  को बचाकर तो देखो।४।
 *
 सदा  पुष्प  से  खिल  उठेंगे  ये रिश्ते 
 कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।
 *
 कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2021 at 6:15pm — 7 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
 चाहे कमाया खूब  हो धन आपने जनाब
लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।
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 तारीफ  पायी  नित्य  हो  दरवार  में भले
 मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।
 *
 ये  सिर्फ  सैरगाह  रहा  हम  को  है पता
 माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।
 *
उँगली उठायी नित्य  ही  औरों के काम पर
 देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।
 *
 देखो लगे हैं  लोग  ये  घर  अपना फूँकने
 ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।
 *…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 8:30am — 9 Comments
 तात के  हिस्से  में  कोना आ गया
 चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।
 *
 नींद  सुनते  हैं  उसी  की  उड़ गयी
 भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।
 *
 खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी
 कह रहा वो  बीज  बोना आ गया।३।
 *
डालकर  थोड़ा   रसायन ही  सही
उसको आँखें तो भिगोना  आ गया।४।
*
पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो
एक दिल जिनको भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 5:00pm — 12 Comments
२२१/ २१२१/१२२१/२१२
 पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ
 जैसे नशेड़ी  देता  है  औरत  को गालियाँ।१।
 *
भाती हैं सब को आज ये चतुराइयाँ बहुत
 यूँ ही न मिल रही हैं शराफ़त को गालियाँ।२।
*
 ये दौर नफरतों को फला इसलिए जनाब
देते हैं सारे लोग मुहब्बत को गालियाँ।३।
*
 दूल्हे को बेच सोचते खुशियाँ खरीद लीं
 देता न कोई ऐसी तिजारत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2021 at 5:30am — 8 Comments
 दीप की लौ से निकलती रौशनी भी देख ली  
 और उस की छाँव  बैठी  तीरगी भी देख ली।१।
 *
 वोट देकर मालिकाना हक गँवाया हमने यूँ
 चार दिन में  सेवकाई  आपकी भी देख ली।२।
 *
 दुश्मनी का रंग हम ने जन्म से देखा ही था
 आज संकट के समय में दोस्ती भी देख ली।३।
 *
 आ न पाये होश में क्यों आमजन से दोस्तो
 दे के उस ने तो  हमें  संजीवनी भी देख ली।४।
 *
 खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2021 at 2:09pm — 20 Comments
२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय  मिलेगी  प्यार लेकर।१।
*
युद्ध  नित   बर्बाद  करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
*
जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा  किस  द्वार लेकर।३।
*
इस भवन का क्या करूँगा
तुम  गये   आधार   लेकर।४।
*
नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
*
बोझ सा हरपल है लगता
दब  गये  आभार  लेकर।६।
*
कर गया कंगाल सब को
हर  भरा  सन्सार  लेकर।७।
*
टूटती  रिश्तों  की माला
जोड़ ले कुछ तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
 वैसे तो उसके  मन  की  बातें  बहुत सरस हैं
 पर काम  इस  चमन  में  फैला  रहे तमस हैं।१।
 *
 पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की
 अब  राम  के  मुखौटे  कैसी  लिए  हवस  हैं।२।
 *
 ये दौर  कैसा  आया  मर  मिट  गये  सहारे
 चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।
 *
 पसरी  जो  आँगनों  में  उन से  हवा लड़ेगी
 इन से लड़ेंगे  कैसे  जो  मन  बसी उमस हैं।४।
 *
 उस गाँव में हैं  अब  भी  बेढब सुस्वाद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
 बेड़ियाँ टूटी  हैं  बोलो  कब स्वयम् ही
 मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
 *
 बाँधकर  उत्साह  पाँवों  में चलो बस
 पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
 *
 पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
 है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
 *
 अब न आयेगा  यहाँ  अवतार हमको
 करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
 *
 कल जो सेवक  हैं कहा करते थे देखो
 हो गये है  आज  वो  साहब  स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
 काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
 आ जाते हम  यार  ठाँव को धीरे धीरे।१।
 *
 कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
 सूरज छलता  अगर  छाँव को धीरे धीरे।२। 
 *
 खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
 निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
 *
 कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
 पेट देश के लगी  आँव को धीरे धीरे।४। 
 *
 जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
 जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
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