For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – December 2022 Archive (7)

कौन विदाई देगा बोलो- (गीत-१०)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

गीत-१०

----------

सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के

कौन विदाई देगा  बोलो, जाने वाले साल को।।

*

कितनी कड़वी मीठी  यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में

आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में

आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने

आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।

*

दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है

सुख पाने वाले  भी  कहते,  रुको न जाते काल को।।

*

माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन

कुछ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments

आना नूतन साल-( गीत -९)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( गीत -९)

**

हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।

निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।

*

धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।

नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।

हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।

स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।

*

अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।

महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।

*

शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।

झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments

गीत-८ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

गीत-८

--------

कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।

पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।

*

वेदना के बीज  से  ही, जन्म  लेता  है सुखद क्षण।

जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।

कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।

मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।

*

ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।

प्राण रहते पूछने  पर,  एक पल भी वह न आती।।

कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।

शेष करने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments

गीत -७ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।

जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।

*

तितली फूल हवा  को  भी  है इस का पूरा भान।

जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।

आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।

इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।

*

फागुन गाये फाग भला  क्या सावन धोये पाँव।

मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।

गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।

उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।

*

तपते सूरज से विनती की…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments

गीत -६ ( लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

रूठ रही नित गौरय्या  भी, देख प्रदूषण गाँव में।

दम घुटता है कह उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।

*

बीते युग की बात हुए हैं

घास-फूँस औ' माटी के घर।

सूने - सूने, फीके - फीके

खेतों खलिहानों के मञ्जर।।

*

अन्तर जैसे पाट दिया है, आज नगर औ' गाँव में।

दम घुटता है अब उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।

*

शेष हुए हैं देशी व्यञ्जन,

और  विदेशी  रीत  हुए।

तीजों - त्यौहारों से गायब,

परम्परा  के  गीत हुए।।

*

लगता  जैसे  आन  बसे  हों, किसी  विदेशी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2022 at 6:45am — 6 Comments

तिनका तिनका टूटा मन(गजल) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२/२२/२२/२



सोचा था हो बच्चा मन

लेकिन पाया  बूढ़ा मन।१।

*

नीड़  सरीखा  आँधी  में

तिनका तिनका टूटा मन।२।

*

किस दामन को भाता है

सारी  रात  बरसता  मन।३।

*

तन की मंजिल पास हुई

मीलों  लम्बा  रस्ता  मन।४।

*

शूल चुभा  सब  कहते हैं

मत रख पत्थर जैसा मन।५।

*

पीर  अगर  नाचे आँगन में

तब किसका घर होगा मन।६।

*

कहकर कितना रोयें अब

दुख में भी मुस्काता मन।७।

*…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2022 at 8:00am — 9 Comments

गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/ १२२२/१२२२

*

कठिन जैसे नगर में धूप के दर्शन

हमें  वैसे  तुम्हारे  रूप  के  दर्शन।१।

*

कभी वो नीर का साधन रहा होगा

मगर होते नहीं अब कूप के दर्शन।२।

*

सुना है नृत्य  करते  हैं तेरे आँगन

बहुत दुर्लभ हमें तो भूप के दर्शन।३।

*

कभी थोथा उड़ा कर सार गहते थे

नये युग  में  गुमें  हैं  सूप  के दर्शन।४।

*

जलन दूजे  से  होती  हो  जहाँ बोलो

किसी मुख पर हो कैसे ऊप के दर्शन।५।

*

यहाँ रूठी हुई छत नींव बागी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2022 at 12:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service