व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*
सबके अपने-अपने मठ हैं
दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,
और कहीं पर वे तिरसठ हैं
*फेसबुक
रंग निराले, ढंग अनोखे,
ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments
मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के’ किले सारे, हमको ही’ ढहाना है
जो हाथ मिलाया है, तो दिल भी’ मिलाना है
यूँ रोज हमें खलती, पानी की’ कमी बेशक…
Added by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 4:49pm — 8 Comments
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