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Manan Kumar singh's Blog – December 2019 Archive (5)

जांच की रिपोर्ट

लड़की को डायरिया थी।आज उसे इस तीसरे नामी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।रिपोर्ट की फाइलें साथ थीं।घरवाले परेशान थे,पर हॉस्पिटल तो जैसे देवालय हो।सब लोग बड़े आराम से अपनी अपनी ड्यूटी में लगे थे।डॉक्टर आया।सुना था कि बड़ा डॉक्टर है।उसने सरसरी निगाह से कुछ ताजा रिपोर्टें देखी।फिर दवाएं लिखने लगा।तीमारदारों में से एक ने यूरिन कल्चर की रिपोर्ट की तरफ इंगित करना चाहा,पर डॉक्टर ने कोई तवज्जो नहीं दी।दवाएं लिख दी।इलाज शुरू हुआ।लड़की की तबीयत बिगड़ती ही गई।पेट फूलता जा रहा था।फिर रात को घरवालों ने…

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Added by Manan Kumar singh on December 29, 2019 at 12:42pm — 2 Comments

गजल(वोटर.....)

वोटर पापड़ बेल रहे हैं

और मसीहे खेल रहे हैं।1

उम्मीदें जिनकी मुरझाईं

उट्ठक - बैठक पेल रहे हैं।2

मत देने पर स्याही सूखी,

दाग लगे, सब झेल रहे हैं।3

लड़ते - मरते लोग - लुगाई

नेता भरसक रेल रहे हैं।4

'अक्ल बड़ी कह भैंस लजाई,

अंधे गाड़ी ठेल रहे हैं।5

जिसकी पूंछ मिले,पकड़ें सब

बैतरणी को हेल रहे हैं।6

पाठ पढ़ाते चलते हैं वे

जो जीवन भर फेल रहे हैं।7

कुर्सी खातिर मिल…

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Added by Manan Kumar singh on December 14, 2019 at 4:44pm — 8 Comments

नागरिक(लघुकथा)



' नागरिक...जी हां नागरिक ही कहा मैंने ', जर्जर भिखारी ने कहा।

' तो यहां क्या कर रहे हो?' सूट बूट धारी लोगों ने उसे घुड़का।

' अपना सच ढूंढ रहा हूं ।'

' मतलब?'

' नहीं समझे?'

' नहीं।समझा दो।'

' सच यानी अपने यहां का होने का प्रमाण साहिब।'

' तुम यहीं के हो?'

' पीढ़ियां गुजर गईं यहीं।'

' फिर प्रमाण क्या?'

' अपने हाकिमों को दिखाना होगा न।वरना कहां भीख मांगूंगा?'

' तुम्हारा मतलब भीख मांगने के लाइसेंस से है क्या?'

' हे हे हे...नहीं समझे फिर…

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Added by Manan Kumar singh on December 12, 2019 at 9:44am — 3 Comments

एनकाउंटर(लघुकथा)

'कभी - कभी विपरीत विचारों में टकराव हो जाया करता है। चाहे - अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियां प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य - व्यवसाय के लोगों के बीच अपने - अपने कर्तव्य - निर्वहन को लेकर मरने - मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा कदा तो परस्पर की लड़ाई भिड़ाई में प्राणी इहलोक - परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहां हैं,तो तुरंत ऊपर पहुंच जाते हैं।पहुंचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुंह देखते रह गए।

'…

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Added by Manan Kumar singh on December 9, 2019 at 7:00am — 5 Comments

अप टू डेट लोग(लघुकथा)

'भूं  भूं...भूं' की आवाज सुन भाभी भुनभुनाई--

' भोरे भोरे कहां से यह कुक्कुड़ आ गया रे?'

'  कुक्कुड़ मत कहना फिर, वरना....', बगल वाली आंटी गुर्राई।

' अरे तो क्या कहूं, डॉगी?'

' नहीं।'

' तो फिर?'

' पपलू है यह।पप्पू के पापा इसे प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं।समझ गईं, कि नहीं?'

' बाप रेे..ऐसा?'

' और क्या?हमारे परिवार का हिस्सा है अपना पपलू। हमारे संग नहाता - धोता,खाता - पीता है यह।'

' और सब....?'

' और..?सब कुछ हमारे जैसा ही करता…

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Added by Manan Kumar singh on December 7, 2019 at 11:00am — 1 Comment

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